हिमखबर डेस्क
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘इसरो’ ने गुरुवार को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के प्रोबा-3 मिशन को लांच कर दिया है। यह मिशन सूर्य के बाहरी वातावरण कोरोना का अध्ययन करेगा। इस मिशन में दो उपग्रहों को एक साथ छोड़ा गया।
शाम चार बजकर चार मिनट पर लांचिंग होने के बाद कोरोनाग्राफ और ओकुल्टर उपग्रह 18 मिनट की यात्रा के बाद अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच गए। एक बार कक्षा में पहुंचने पर दोनों उपग्रह 150 मीटर की दूरी पर रहकर एकीकृत उपग्रह प्रणाली के रूप में काम करेंगे। बता दें कि यह प्रक्षेपण इसरो के पीएसएलवी-सी59 रॉकेट से किया गया। यह इसरो का 61वां पीएसएलवी मिशन है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्स पर पोस्ट करके जानकारी दी कि पीएसएलवी-सी59 ने अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरकर एक नया इतिहास रच दिया है। यह मिशन एनएसआईएल के नेतृत्व में और इसरो की अग्रणी तकनीक के सहयोग से ईएसए के अत्याधुनिक प्रोबा-3 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने का एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और भारत की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। प्रोबा-3 मिशन सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है। कोरोना सूर्य का बाहरी वातावरण है, जो सूर्य की सतह से कहीं ज्यादा गर्म होता है। यह अंतरिक्ष के मौसम का भी स्रोत है, जिससे यह वैज्ञानिकों के लिए खास रुचि का विषय है।
प्रोबा-3 मिशन में दो उपग्रह हैं- कोरोनाग्राफ (310 किलोग्राम) और ओकुल्टर (240 किलोग्राम)। ये दोनों उपग्रह मिलकर एक अनोखा प्रयोग करेंगे। ओकुल्टर उपग्रह सूर्य की डिस्क को ढक लेगा, जिससे कोरोनाग्राफ उपग्रह सूर्य के कोरोना का स्पष्ट रूप से अवलोकन कर पाएगा। यह तकनीक सूर्य के कोरोना के बारे में अध्ययन करने में मदद करेगी।
मिशन का एक मुख्य उद्देश्य सटीक फॉर्मेशन फ्लाइंग का प्रदर्शन करना भी है। दोनों उपग्रहों को एक साथ, एक के ऊपर एक, निर्धारित कक्षा में स्थापित किया गया है। इस तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए नए रास्ते खोलेगा।