बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
मुंबई – व्यूरो रिपोर्ट
अगर कोई व्यक्ति बिना किसी गलत इरादे के लड़की की पीठ पर हाथ फेरता है तो उसे छेड़छाड़ नहीं माना जाएगा। यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने 2012 के मामले में फैसला सुनाते हुए एक 28 वर्षीय युवक को दोषमुक्त करार दिया है।
उक्त व्यक्ति के खिलाफ साल 2012 में 12 साल की लड़की की लज्जा भंग करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। पीड़िता का कहना था कि आरोपी ने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेरत हुए कहा था कि वह बड़ी हो गई है।
कोर्ट ने इस मामले में युवक को निर्दोष करार देते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति गलत मंशा के बिना नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर हाथ फेरता है तो इससे किसी भी तरह की मर्दादा भंग नहीं होती।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे की सिंगल जज वाली पीठ ने मयूर येलोरे नाम के आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि दोषी का कोई गलत इरादा था, बल्कि उसकी बात से लगता है कि वह पीड़िता को बच्ची के तौर पर ही देख रहा था।
न्यायाधीश ने कहा कि किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के लिए, किसी का उसकी लज्जा भंग करने की मंशा रखना महत्वपूर्ण है। यह किसी तरह की प्रताड़ना का मामला नहीं है। इसमें व्यक्ति ने केवल लड़की के सिर और पीठ पर हाथ फेरा था।
उन्होंने कहा कि 12-13 वर्ष की पीड़िता ने भी किसी गलत इरादे का उल्लेख नहीं किया। उसने कहा कि उसे कुछ अनुचित हरकतों की वजह से असहज महसूस हुआ। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता की मंशा लड़की की लज्जा भंग करने की थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार 15 मार्च 2012 को अपीलकर्ता 18 वर्ष का था और वह कुछ दस्तावेज देने लड़की के घर गया था। लड़की उस समय घर अकेली थी। उसने लड़की के सिर और पीठ पर हाथ फेरा जिससे वह घबराकर मदद के लिए चिल्लाने लगी।
लड़की के परिजनों ने इस बात को लेकर केस दर्ज कराया था। निचली अदालत द्वारा मामले में दोषी ठहराने और छह महीने की सजा सुनाने के बाद व्यक्ति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत का फैसला उचित नहीं था और प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि व्यक्ति ने बिना किसी गलत नियत के, बिना सोचे समझे वह आचरण किया।