सिरमौर – नरेश कुमार राधे
अक्सर आपने फिल्मों में देखा होगा कि किसी हादसे या चोट लगने के चलते किसी व्यक्ति की याददाश्त चली जाती है और फिर सालों बाद दोबारा चोट लगने से याददाश्त वापस आती है और बरसों बाद व्यक्ति अपने परिवार से मिलता है। ऐसा ही फिल्मी स्टाइल किस्सा हकीकत में हिमाचल में हुआ है।
ये किस्सा हिमाचल प्रदेश में एक शख्स के साथ सामने आया है, जो जवानी में एक सड़क हादसे में अपनी याददाश्त खो चुका था। नए नाम के साथ बरसों तक नई जिंदगी जीता रहा, लेकिन जब उसे दोबारा चोट लगी तो धीरे-धीरे उसकी पुरानी यादें उसे याद आने लगी और तकरीबन 45 सालों के बाद अब वो शख्स वापस अपने घर लौटा आया है।
यकीन करना शायद आसान नहीं होगा, लेकिन 62 वर्षीय रिखी राम के साथ यह सब हुआ है। इस अवधि में उसके माता-पिता भी स्वर्ग सिधार गए, लेकिन जब परिवार में 45 सालों बाद भाई-बहनों ने उसे अपने बीच पाया तो वह फूले नहीं समाए और उसका घर लौटने पर जोरदार स्वागत किया हालांकि रिखी राम गत 15 नवंबर को वापिस लौटे थे, लेकिन इसका खुलासा अब हुआ है।
यह अनोखा मामला सिरमौर जिले के शिलाई-पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र के प्रवेश द्वार माने जाने वाले सतौन क्षेत्र के नाड़ी गांव से जुड़ा है। दरअसल हादसे में लगी एक चोट से करीब 45 साल बाद इनकी पुरानी यादें लौट आईं। ये कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। नाड़ी गांव इन दिनों असाधारण खुशी में डूबा हुआ है। गांव का बेटा रिखी राम वर्ष 1980 में महज 16 साल की उम्र में लापता हो गया था, जो करीब 45 साल बाद अपने घर लौटा है।

1980 में काम की तलाश में गया था यमुनानगर
संपर्क करने पर रिखी राम ने बताया कि “1980 में वह काम की तलाश में हरियाणा के यमुनानगर गए थे, जहां वह एक होटल में नौकरी करने लगे। एक दिन होटल के कर्मी के साथ अंबाला जाते समय उनके साथ एक गंभीर सड़क हादसा हो गया। इस हादसे में सिर पर चोट लगने से उसकी याददाश्त चली गई और उन्हें कुछ याद नहीं रहा।
रिखी राम के छोटे भाई दुर्गा राम ने कहा, “मेरे भाई रिखी राम मात्र 16 वर्ष की आयु में काम की तलाश में घर से निकल गए थे। परिवार को आखिरी बार यह जानकारी मिली थी कि वह यमुनानगर में काम कर रहे हैं, लेकिन उसके बाद उनका कोई पता नहीं चला। उस समय दूरसंचार के साधन सीमित थे, फोन या संपर्क माध्यम लगभग न के बराबर थे, जिसके कारण परिवार उनसे जुड़ नहीं सका।
इस हादसे के बाद रिखी राम का संपर्क अपने गांव और परिवार से पूरी तरह कट गया। कोई भी ऐसा शख्स नहीं था, जो उन्हें उनके परिवार तक पहुंचा पाए और न ही दूर संचार के इतने साधन मौजूद थे कि उसका परिवार उनसे संपर्क कर सके। इस हालत में उनके साथी ने ही उनका नया नाम रवि चौधरी रख दिया और इसी नाम के साथ उन्होंने नई जिंदगी की शुरुआत की। अब भी वह इसी नाम से जिंदगी जी रहे थे।

याददाश्त जाने के बाद मुंबई का किया रुख
रिखी राम ने बताया कि ‘याददाश्त खोने के बाद वह मुंबई के दादर में काम करने पहुंचे। इसके बाद फिर नांदेड़ के एक कॉलेज में नौकरी मिलने पर वहीं बस गए। उन्होंने बताया कि वर्ष 1994 में उनकी शादी संतोषी से हुई और आज उनकी 2 बेटियां और एक बेटा है।
दोबारा हादसे ने लौटाई याददाश्त
सालों तक रिखी राम सामान्य जीवन जीते रहे और उन्हें अपना वास्तविक घर, परिजन या पूर्व पहचान कुछ भी याद नहीं था। जीवन सामान्य रूप से गुजर रहा था कि कुछ महीने पहले काम पर जाते हुए उनका दोबारा एक्सीडेंट हुआ, जिसके बाद उनकी खोई हुई यादें धीरे-धीरे लौटने लगीं। उन्हें सपनों में बार-बार आम के पेड़, सतौन क्षेत्र और गांव के झूले दिखाई देने लगे।
शुरू में उन्होंने इन सपनों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब यादें लगातार उभरती रहीं और उन्हें सपनों में बार-बार घर के पास आम के पेड़, सतौन से गुजरते सीसीआई के झूले और अपने गांव की झलक दिखाई देने लगी, तो उन्होंने इसका जिक्र अपनी पत्नी से किया।
जब यह सिलसिला लगातार बढ़ता गया, तो रिखी राम ने अपने अतीत की खोज शुरू की। ज्यादा पढ़ा लिखा न होने के कारण उसने जिस कालेज में वह काम करता था, वहां के एक छात्र से नाड़ी और सतौन से संबंधित गूगल पर कुछ जानकारियां व संपर्क नंबर ढूंढने में सहायता मांगी।
कैफे के नंबर के रूप में मिली पहली कामयाबी
रिखी राम ने बताया कि ‘खोज के दौरान सतौन के एक कैफे का नंबर मिला। कैफे से उन्हें नाड़ी गांव के रुद्र प्रकाश का नंबर मिला। रिखी राम ने अपनी पूरी कहानी रुद्र प्रकाश को सुनाई, लेकिन शुरूआत में रुद्र प्रकाश ने इसे किसी तरह की धोखाधड़ी की संभावना मानकर गंभीरता से नहीं लिया और नजरअंदाज किया।
फिर ऐसे पहुंचे परिवार तक
इसी बीच रिखी राम रोज कॉल कर अपने भाइयों-बहनों का हाल पूछते रहे। अंततः जब सभी छोर मिलने लगे, तो रुद्र प्रकाश का शक धीरे-धीरे यकीन में बदलने लगा। यकीन होने पर रुद्र प्रकाश ने रिखी राम के परिवार के बड़े जीजा एमके चौबे से उनका संपर्क कराया, जिन्होंने बातचीत के बाद माना कि सामने वाला वास्तव में रिखी राम ही हो सकता है।

सभी पक्षों की पुष्टि के बाद पहुंचे गांव
सभी पक्षों की पुष्टि होने के बाद 15 नवंबर को रिखी राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नाड़ी गांव पहुंचे। गांव में उनका स्वागत भाई दुर्गा राम, चंद्र मोहन, चंद्रमणि और बहन कौशल्या देवी, कला देवी, सुमित्रा देवी समेत बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने फूल मालाओं और बैंड से किया। अब रिखी राम को अपने बीच पाकर परिवार भी उत्साहित है और रिखी राम भी बेहद खुश है।
भावुक होकर बोला भाई, छोड़ चुके थे उम्मीद
रिखी राम के छोटे भाई दुर्गा राम ने भावुक होकर कहा, “हमें तो यह विश्वास ही नहीं था कि हमारा भाई आज भी इस दुनिया में होगा। इतने लंबे समय तक कोई खबर न मिलना हमारे लिए बहुत बड़ा डर था, लेकिन अब भाई को इतने सालों बाद अपने सामने देखकर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हमारे लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं। ऐसा लग रहा है जैसे भाई को नया जीवन मिला हो। इतने सालों बाद उन्हें अपने बीच पाना हमारे लिए बड़ी राहत और बड़ी खुशी है।

