हिमाचल मानव अधिकार लोक बॉडी ने की अहम बैठक
नूरपुर, देवांश राजपूत
हिमाचल मानव अधिकार लोक बॉडी हिमाचल की दो महत्वपूर्ण फोरलेन परियोजनाएं, जिनमें से एक पठानकोट मंडी फोरलेन पर योजना और दूसरी शिमला मटौर फोरलेन परियोजना ।
इन दोनों विषयों पर लगातार प्रभावितों के पक्ष में सरकार से उनकी समस्याओं को लेकर गुहार लगाती आई है। क्योंकि सरकार ने इन दोनों परियोजनाओं को बहुत ही गलत तरीके से हैंडल किया है और कर रहे हैं ।
अगर पठानकोट मंडी परियोजना के पहले पैकेज कंडवाल से सिवनी तक की बात करें तो उसके दो अवार्ड हुए। करीब करीब तीन चार महीने हो चुके हैं और अभी तक लोगों को भू अधिग्रहण की राशि नहीं दी गई है।
किसी भी मुहाल के पूरे लोगों को यह राशि नहीं दी गई है और अभी तक आधे मोहालो को एक भी पैसा नहीं दिया गया। सरकार का यह ढीला रवैया लोक बॉडी की समझ से परे है।
लोक बॉडी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश पठानिया ने कहा कि हमेशा से सरकार इन प्रक्रियाओं को लटकाने का आरोप लगाती आई है। परंतु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
सरकार इस विषय पर क्या सोचती है। यह हमारी समझ से परे है। अभी सरकार ने तीसरा अवार्ड करना है। जिसकी अभी तारीख नहीं दी गई है। कब सरकार लोगों को उनके पहले अवार्ड की राशि देगी। कब उसके बाद बिल्डिंग स्ट्रक्चर की राशि तय होगी और कब लोगों को दी जाएगी।
हमें लगता है कि यह साल इसी प्रक्रिया में बीत जाएगा। हमारा यह मानना है कि यह सरकार जानबूझकर जनता के लिए समस्याएं पैदा करती है ताकि इस प्रोजेक्ट को जितना हो सके लटकाया जाए।
जब इलेक्शन थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल के लिए बड़ी सौगातओं का ऐलान किया था कि हिमाचल में बड़े प्रोजेक्ट लगेंगे तो हिमाचल विश्व पटल पर उभर कर सामने आएगा और यही सोच कर सभी लोगों ने यह सरकार चुनी थी। परंतु इस सरकार को आए हुए 4 साल बीत गए हैं परंतु अभी तक धरातल पर कुछ नहीं है और जो है वह बहुत ही बुरा है।
हमें समझ में नहीं आता कि सरकार हिमाचल को किस और ले जाना चाहती है। एक तरफ जहां सरकार लोगों की कीमती बहुमूल्य जमीनों का दाम कौड़ियों में लगा रही है। वही सड़क किनारे बसे लोगों को जिन्होंने सरकार के भरोसे बैंक से कर्ज लिए थे वे उनको नीलामी के नोटिस थमा रही है।
हमें समझ नहीं आता कि बैंक इन जमीनों का किस तरह से कुर्की करेगा।क्योंकि जमीन तो सरकार ने ले ली है। क्या सरकार इन जमीनों की नीलामी करवा देगी। जिस जमीन का मूल्य बैंकों ने और पटवारियों में 50 लाख लगाया।
वही सरकार उन्हें मुआवजा 5 लाख दे रही है। ऐसे में प्रभावितों के लिए सरकार उनको टेंट लगाकर रहने की स्थिति में भी नहीं रहने देना चाहती। आ जा कर इन फोर लाइन पीड़ितों के लिए सिवाय आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने को मजबूर कर रही है।