कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस, बदलाव के लिए वोट करते हैं कांगड़ा के मतदाता

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हिमखबर डेस्क

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हिमाचल की राजनीति में अहम स्थान रखने वाला कांगड़ा जिला फिलहाल कांग्रेस प्रत्याशी की घोषणा की बाट जोह रहा है। भाजपा ने यहां चुनाव प्रचार भी आरंभ कर दिया है। नूरपुर निवासी डाॅ. राजीव भारद्वाज को भाजपा ने इस बार चुनावी मैदान में उतारा है। भारद्वाज आरएसएस के साथ भाजपा के विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। फिलहाल कांग्रेस में प्रत्याशी की खोज के लिए माथापच्ची जारी है।

इस सीट पर कांग्रेस व भाजपा दोनों को मिश्रित रूप से जनता ने बारी-बारी चुना है। आरंभ को छोडें तो दोनों दलों को लोगों ने एक बार आजमा कर दोबारा चेंज किया है। विधानसभा में कांगड़ा के लोग हमेशा सत्ता के खिलाफ वोट करने के लिए जाने जाते हैं। लोकसभा में एक-दो अपवाद को छोड़ दें तो लोग यहां भी किसी एक नेता या एक पार्टी का प्रभुत्व नहीं स्वीकारते हैं।

कांगड़ा व चंबा जिलों से बने इस लोकसभा क्षेत्र में 17 विधानसभा क्षेत्र हैं। कांगड़ा 13 विधानसभा क्षेत्रों के अलावा चंबा के चार विधानसभा क्षेत्र इस संसदीय सीट के अंतर्गत आते हैं। 1952 में यहां पहले चुनाव में कांग्रेस के हेमराज जीते। 1957 में दलजीत सिंह यहां से सांसद रहे, वह भी कांग्रेसी थे। 1962, 1967 में कांग्रेस के हेमराज ने 10 सालों तक कांगड़ा का प्रतिनिधित्व किया।

1971 में विक्रम चंद महाजन कांग्रेस के टिकट पर जीते। एमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में 1977 में भारतीय लोकदल के कंवर दुर्गा चंद पहले गैर कांग्रेसी सांसद बने। 1980 में दोबारा विक्रम चंद महाजन कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचे। 1984 में राज परिवार से संबंध रखने वाली कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी ने यहां से चुनाव जीता। 1989 में भाजपा के दिग्गज नेता शांता कुमार पहली बार लोकसभा पहुंचे।

1991 में भाजपा के डीडी खनौरिया यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे। फिर 1996 में कांग्रेस के दिग्गज सत महाजन कांग्रेस के टिकट पर जीते। उसके बाद 1998 व 1999 में हुए  चुनाव में शांता कुमार ने बाजी मारी। 2004 में वर्तमान कैबिनेट मंत्री चंद्र कुमार कांग्रेस के टिकट पर जीते। 2009 में बीजेपी के डाॅ. राजन सुशांत ने चुनाव में जीत हासिल की। 2014 में शांता कुमार फिर से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे।

2019 की मोदी लहर में शांता कुमार को उम्र की बाधा के चलते टिकट से महरूम रहना पड़ा। उनके शिष्य रहे प्रदेश सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री किशन कपूर लोकसभा पहुंचे। इस बार उनका टिकट ही काट दिया गया।

कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र में यदि जातीय गणित पर नजर दौड़ाई जाए तो राजपूत, ओबीसी, ब्राह्मण व गद्दी समुदाय की संख्या सबसे अधिक है। किशन कपूर गद्दी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। शांता कुमार के रूप में कांगड़ा को कैबिनेट मंत्री भी मिला। स्व. अटल सरकार में उन्हें खाद्य एवं आपूर्ति के अलावा ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों में कैबिनेट रैंक का दर्जा मिला।

भाजपा ने यहां पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए इस बार ब्राह्मण कैंडिडेट को मैदान में उतारा है। जातीय गणित को देखते हुए कांग्रेस को यहां हैवीवेट कैंडिडेट की दरकार है। साथ ही कांग्रेस अपने इंटरनल सर्वे के आधार पर लोकप्रियता को प्रमुख मापदंड बनाकर टिकट आबंटन करने में जुटी है। इस बार कांग्रेस में चंबा जिला से उम्मीदवार देने की भी बात चली। मगर वोटरों की संख्या को देखते हुए नहीं लगता कि चंबा को इस सीट पर प्रतिनिधित्व मिल पाएगा।

सारी स्थिति तो टिकट मिलने के बाद ही साफ होगी। मगर कांगड़ा में कांग्रेस व भाजपा दोनों दल अपना पूरा जोर चुनाव में लगाएंगे, क्योंकि कहा जाता है कि शिमला का रास्ता कांगड़ा ही तय करती है। इस लोकसभा सीट को जीतने के लिए हर चुनाव में दोनों दल पूरी ताकत झौंकते हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद धर्मशाला में कैंप कर कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल रहे हैं।

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