किशोरावस्था में माता पिता की भूमिका अहम

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रिपन अस्पताल में नई दिशा केंद्र पर लोगों को मिल रहा उपचार, महीने में 30 से 40 किशोर पारिवारिक रिश्तों की वजह कई बीमारियों का हो रहे शिकार, जिला के शिक्षण संस्थानों में करवाई जा रही मानसिक स्वास्थ्य की कार्यशालाएं

शिमला – नितिश पठानियां

किशोरावस्था में माता.पिता की अहम भूमिका होती है। पारिवारिक रिश्ते आपस में सही न होने का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। इस वजह से बच्चे कई बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। लेकिन ऐसे बच्चों के लिए रिपन अस्पताल में नई दिशा केंद्र मददगार साबित हो रहा है।

वहीं जिला प्रशासन जिला के शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य के कई कार्यक्रम, कार्यशालाएं आयोजित करवाने पर जोर दे रहा है। नई दिशा केंद्र में महीने में औसतन 30 से 40 किशोर पारिवारिक रिश्तों के कारण कई बीमारियों से ग्रसित होकर पहुंच रहे है। इनमें प्रमुख तौर पर नशा, शराब, धूम्रपान, आत्महत्या के बारे में सोचने, तनाव आदि बीमारियों का शिकार होने के मामले सामने आ रहे है।

मगर घरों में पारिवारिक रिश्ते सही होंगे तो किशोर समय रहते ही बीमारियों से दूर रहेंगे। माता.पिता का अपने बच्चे के साथ रिश्ता जितना मजबूत होगा, उनका प्रभाव उतना ही अधिक होगा, क्योंकि बच्चे के लिए माता.पिता का मार्गदर्शन प्राप्त करना और उनकी राय और सहायता को महत्व देना अधिक संभव होगा। वास्तव में, यदि आपका बच्चा युवा वयस्क होने पर भी मजबूत संबंध रखता है स तो संभवतः वह आपके समान मूल्यों, विश्वास और व्यवहार के साथ आगे बढ़ेंगे।

माता पिता इन बातों का रखें ध्यान

  • अपने बच्चे को पारिवारिक चर्चाओं में शामिल करें, खुलकर बात करें और परिवार के निर्णयों और नियमों में उनकी राय लें। इससे आपके बच्चे को यह समझने में मदद मिलेगी कि लोग दूसरों के साथ कैसे मिलजुल कर रह सकते हैं और एक साथ काम कर सकते हैं।
  • व्यवहार के बारे में अपने परिवार के नियमों का पालन करने की कोशिश करें।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण रखें, आशावादी तरीके से सोचें, कार्य करें और बात करें।
  • अपनी गलतियों को स्वीकार करके और भविष्य में इन गलतियों से बचने के लिए आप क्या अलग कर सकते हैं, इस बारे में बात करके जिम्मेदारी लें। कोशिश करें कि जो कुछ भी गलत हो स उसके लिए दूसरे लोगों या परिस्थितियों को दोष न दें।
  • चुनौतियों या संघर्षों से शांत और उत्पादक तरीके से निपटने के लिए समस्या.समाधान कौशल का उपयोग करें। जब कोई समस्या आती है तो परेशान और क्रोधित होना आपके बच्चे को उसी तरह से प्रतिक्रिया करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • जिस तरह से आप बोलते हैं और दूसरे लोगों के प्रति व्यवहार करते हैं उसमें दयालुता और सम्मान दिखाएं।
    अपने प्रति दयालु बनें और अपने साथ उसी गर्मजोशी, देखभाल और समझ के साथ व्यवहार करें जैसा आप किसी ऐसे
  • व्यक्ति के साथ करते हैं जिसकी आप परवाह करते हैं।
  • आपके बच्चे के मित्र उसके दैनिक व्यवहार को अधिक प्रभावित करते हैं।
  • एक अभिभावक के रूप में आप अपने बच्चे के दृष्टिकोण और मूल्यों को प्रभावित करते हैं। इसमें विविधता और पहचान, रिश्ते, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रौद्योगिकी आदि जैसी चीजों के बारे में आपके बच्चे के दृष्टिकोण और मूल्य शामिल हो सकते हैं।
  • बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखे।
  • बच्चों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव न करें।
  • बच्चों के सामने धूम्रपानए नशा न करें और न ही बच्चों से नशे से जुड़ी वस्तुएं मंगवाए।
  • बच्चों के विषयों का चयन केरियर कांउसलिंग के बाद ही तय करें। पढ़ाई को लेकर बच्चे की रूचि को प्राथमिकता दें
  • स्कूल से लगातार अनुपस्थित रहने की वजह की जांच करे।
  • बच्चों के व्यवहार में अचानक बदलाव आने पर मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से परामर्श लें।
  • बच्चों पर मार्क्स का दबाव न बनाए।
  • बच्चों को समय प्रबंधन सिखाए।
  • बच्चों पर मां बाप अपने फैसले थोपना बंद करें।
  • लड़कों को इमोशनली एक्सप्रेसिव बनाए।
  • घर के कामों को लिंग के आधार पर न बांटे।
  • घर का माहौल अच्छा रखे।

उपायुक्त अनुपम कश्यप के बोल

जिला के शिक्षण संस्थानों में बच्चों की काउंसलिंग करवाई जा रही है। कई कार्यक्रम उनके स्वास्थ्य और करियर से जुड़े आयोजित हो रहे है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर  स्कूलों में बच्चों को कई विषयों पर मार्गदर्शन दे रहे हैं। इस वजह से बच्चों को लाभ भी मिल रहा है। उन्होंने माता पिता से अपील की है कि बच्चों के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव लाए। बच्चों को एक स्वस्थ माहौल देने के लिए माता पिता कार्य करें ताकि बच्चे गलत राह पर न जा सके।

डॉ दीपा राठौर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, नई दिशा केंद्र, रिपन अस्पताल के बोल

कोविड के बाद पारिवारिक रिश्तों को घर के बच्चों पर साफ दिख रहा है। पिछले कुछ समय से महीने में औसतन 30 से 40 किशोर ओपीडी में पहुंच रहे हैं। पारिवारिक रिश्ते सही न होने के कारण किशोर नशे, स्मोकिंग, आत्महत्या के बारे में सोचने, स्ट्रेस, तनाव आदि बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

मां बाप को चाहिए है कि वे पहले अच्छे पति.पत्नी बनकर अपने रिश्ते सही रखे और बच्चों के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखें। बच्चों पर पढ़ाई को लेकर किसी भी तरह का दबाब नहीं बनाया जाना चाहिएए बल्कि कैरियर काउंसलिग के आधार पर बच्चों की स्ट्रीम चयनित करवाने चाहिए। माता.पिता और बच्चों के व्यवहार में जरा भी बदलाव नजर आए तो नई दिशा केंद्र में आकर काउंसलिंग करवा सकते हैं।

केस स्टडी.1

16 साल का लड़का 10वीं करने के बाद शिमला में आगे की पढ़ाई के लिए मां के साथ आया था और यहां पर मां के साथ ही रहता था जबकि पिता गांव में रहते थे। घर वालों ने उसे प्लस वन में नाॅन मेडिकल रखने के लिए दबाब बनाया जबकि लड़के की रूचि नाॅन मेडिकल में नहीं थी। लेकिन घर वालों ने उसकी नहीं सुनी। कक्षा में उसे पढ़ाई में दिक्कत पेश आना शुरू हो गई। जब परीक्षा पास आना शुरू हुई तो उसने कक्षा से बंक मारना शुरू कर दिया।

नौबत यहां तक पहुंच गई कि उसका नाम स्कूल से काट दिया गया। फिर उसके घर वालों को स्कूल बुलाया गया। जब पिता को इस बात का पता चला तो दीन दयाल उपाध्याय रिपन अस्पताल में चल रहे नई दिशा केंद्र में क्लीनिकल साईकोलाॅजिस्ट के पास काउंसलिंग के लिए ले आए। यहां पर जब बच्चे की काउंसलिंग की गई तो बच्चे ने बताया कि पढ़ाई के स्ट्रेस की वजह से उसने क्लास से बंक मारने शुरू किया था।

जहां वे रहता था वहां के आसपास के दोस्तों के साथ वीकेंड पर सिगरेट पीना शुरू कर दिया था। क्लीनिकल साईकोलाॅजिस्ट ने पिता की काउंसलिंग भी की और बेटे पर पढ़ाई को लेकर किसी भी तरह का दबाब न बनाने की सलाह थी। बेटे के प्रति व्यवहार में परिर्वतन करने को कहा। अब बेटे ने स्मोकिंग भी छोड़ दी है और माता पिता ने साईंस से आर्टस में विषय भी बदलवा दिया है।

केस स्टडी 2

अगस्त माह में ओपीडी में 17 साल की लड़की आई जोकि प्लस वन में मेडिकल की स्टूडेंट थी। माता पिता और खुद की भी मेडिकल स्ट्रीम रखने की रूचि थी। माता पिता गांव में रहते थे जबकि शिमला में वह अकेली रहती थी। परिवार वाले बात.बात पर लड़की के साथ नकारात्मक व्यवहार करते थे। माता पिता के बिगड़ते व्यवहार के कारण लड़की स्ट्रेस में आने लगी। नौबत यहां तक आ गई कि वह सुसाइड करने के बारे में सोचने लगी।

फिर एक दिन लड़की के पड़ोस में रहने वाली लड़की उसे नई दिशा केंद्र ले आई जहां पर लड़की के माता पिता को भी काउंसलिंग के लिए बुलाया गया। किशोर बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिए उसके बारे में विस्तृत से माता पिता को बताया गया। अब उक्त बेटी पूरी तरह स्वस्थ है और मां बाप के साथ भी रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। अब बेटी ने पढ़ाई में सुधार कर लिया है।

केस स्टडी 3

नवंबर माह में 14 साल की बच्ची स्कूल में अचानक बेहोश होने के कारण रिपन अस्पताल ले जाया गया और फिर इस बच्ची को नई दिशा केंद्र में रेफर किया गया। जब बच्ची की काउंसिलिंग की गई तो बच्ची ने बताया कि मम्मी पापा आपस में लड़ते है। पिता मारते है मम्मी को भी और उसे मम्मी को कोई खर्च भी नहीं देते है। घर में सारा सामान ताला लगाकर रखते है। एक.एक बात पर निगरानी करते है।

अगर पापा के हिसाब से काम नहीं करेंगे तो वह गंदी गालियां देते है। स्कूल में लड़की का एक लड़का दोस्त बन गया। पिता ने एक दिन लड़की को उस लड़के के साथ देख लिया तो उस बच्ची को बहुत मारा। बच्ची पहले ही अपने पापा से कोई बात शेयर नहीं करती थी फिर उसने स्मोकिंग शुरू कर दी और पापा की तरह गंदी गालियां देना भी शुरू कर दिया था।

कुछ दिनों से अचानक कभी कभी बेहोश होने लगी। बच्ची ने काउंसलिंग में बताया कि उसके पापा कभी उसे सपोर्ट नहीं करते है। ढंग से समझाते नहीं है। ड्रेसिंग सेंस को लेकर हमेशा सवाल उठाते रहते है। इन सब बातों से तंग आकर वह सुसाइड के बारे में सोचने लग गई थी।

फिर बच्ची के पिता और मां दोनों को काउंसलिंग के लिए बुलाया गया। पहले तो पिता अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था लेकिन काफी देर काउंसलिंग के बाद उसने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा हमारे साथ भी ऐसा ही व्यवहार हमारे मां बाप करते थे। घर के काम लड़कियों को करने होते है। लेकिन नई दिशा केंद्र की काउंसलिंग के बाद पिता के व्यवहार के काफी बदलाव आया और लड़की ने स्मोकिंग भी छोड़ दी है।

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