शीतल शर्मा, Research scholar,राजा का तालाब ।
आज मैं बात करने जा रही हूं भारतीय महिलाओं की दुर्दशा पर! जब एक बेटी पैदा भी नहीं हुई होती तभी से उस पर अत्याचार होने शुरू हो जाते हैं ! मां की कोख में क्या है लड़का या लड़की इस बात से ये पता चलता है की समाज में महिलाओं की क्या दशा है! लेकिन यह कहना भी गलत होगा की सभी महिला सशक्तिकरण के खिलाफ है बहुत से मर्द आज भी समाज में मजुद है।
जिन्होंने महिलाओं को सशक्त बनने में उनके हक में प्रसन्नतापूर्ण हस्ताक्षर किए है लेकिन कुछ इस के कट्टर वरोधी है, उन्हें डर लगता है की अगर महिलाओं को उन्होंने बराबरी का स्थान दे दिया तो उनका क्या होगा !
शुरू – शुरू में बेटी अपने पिता पर निर्भर होती है और कुछ हद तक भाई पर और शादी के बाद अपने पति पर और अंत में अपने पुत्र पर निर्भर होती है !आज मैं बात करना चाहती हूं कि इस निर्भरता को आत्मनिर्भरता में कैसे बदला जाए! सबसे पहले हम महिलाओं को एक जुट होकर ही अपनी इस दुर्दशा को सुधारना होगा ! एक मां के रूप में हमें अपनी बेटियों को उनके अधिकारों से अवगत करवाना होगा !
उन्हें शिक्षित करने की हर संभव कोशिश करनी होगी और बेटियों के साथ- साथ हमें अपने बेटों को भी यह शिक्षा देनी होगी कि औरत और मर्द एक समान हैं! चाहे क्षेत्र जो भी हो औरतों ने समाज को यह साबित कर के दिखाया है ! बेटे को जब मां पाल- पोस कर मर्द बनाती है तो ये उसका फर्ज़ है, पर उसका ये भी तो फर्ज़ है कि क्या वो मर्द केवल मर्द ही बना है या वो उसको एक इन्सान बनाने में भी कामयाब हुई है! वो उसको कैसीे शिक्षा दे रही है इसका असर उसके आने वाले जीवन पर पड़ने वाला है क्युकी समाज हम सबसे ही बनता है! जो संस्कार आज उन्होंने धारण किए है कल वो सबका भविष्य निर्धारित करेंगे !
हमारी बेटियां तभी सुरक्षित होगी जब हम हमारे बेटों को एक अच्छी मां के रूप सही- गलत का बोध करवाएंगे ! उन्हें समझाया जाएगा कि जो इज्जत तुम अपनी मां,बहन की करते हो वो ही इज्जत तुम्हें बाकी औरतों की भी करनी होगी! तब ही तुम मर्द कहलाओगे ! महिलाओं का
सशक्तिकरण केवल महिलाओं की ही जिम्मेवारी नहीं बल्कि इसमें मर्दों का साथ भी जरूरी है क्युकी आने वाले बक्त में जब उनकी अपनी ही बेटी उनसे सवाल करेंगी तो वह जवाब देने में असमर्थ खेड़े होंगे! बहुत जल्द वो समय आने वाला है जब महिलाओं को अपने हक के लिए किसी से लड़ने की जरूरत नहीं होगी ,वो हक उनके जन्म लेते ही उन्हें मिल जाएगा क्यूकि समय के साथ – साथ मर्दों की सोच बदल चुकी होगी और ये बदलाव तभी शुरू होगा जब एक मां अपने बेटे को औरत जात का महत्त्व उसके जीवन में क्या है समझाएगी! नर के बिना नारी अधूरी है, ओर नारी के बिना नर!
इसलिए सम्मान तो उन्हें देना ही पड़ेगा या तो प्यार से या हमें अपने हक की लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी, हमें इस लड़ाई में मर्दों को हराना नहीं है बल्कि उनको जीतना है और उनसे ये स्वीकार करवाना है कि जब तक आप स्वयं नहीं चाहेंगे की हम आप के बराबर हो तब तक समाज का भला कैसे होगा ! जब तक दिल से हमें बराब नहीं माना जाता तब तक हमारा जीतना कागज़ी दस्तावेजों तक सीमित रहेगा जबकि हम चाहती है कि ये समानतारूपी बदलाव दिलो से स्वीकार किया जाए!
दूसरी तरफ एक औरत जब स्वयं कमाना शुरू करती है तो वह आर्थिक रूप से मजबूत हो जाती है ! फिर उन्हें दबाया नहीं जा सकता और यह सब उसके शिक्षित होने पर ही सम्भव हो सकता है! क्यूकि जब तक वह शिक्षित नहीं होंगी तो वह अपने अधिकारों से अवगत नहीं होंगी,और उन्हें अंधकार में ही अपना जीवन यापन करना पड़ेगा!
जब वह दूसरों पर निर्भर होती है तो वह हर काम करने के लिए विवश होती है। दूसरों की मनमर्जी से जो काम वह करना भी नहीं चाहती उसे वो काम भी करना पड़ता है! इसलिए जब वह कमाने लायक होगी तो वह अपने फैसले स्वयं ले पाएगी और जब वह अपने फैसले स्वयं लेगी तो वह समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त कर पाएगी।