पौंग झील में घट रहा मछली उत्पादन, बंद होने की कगार पर पहुंचा मछुआरों का कारोबार

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15 सोसायटीज में 2500 मछुआरे कर रहे मछली पकडऩे का कारोबार, कम उत्पादन होने से पुश्तैनी काम से बनाई दूरी।

ज्वाली – अनिल छांगू 

पौंग झील में दिनोंदिन घट रहा मछली का उत्पादन के कारण मछुआरा वर्ग अपने पुश्तैनी कार्य को बन्द करने की कगार पर पहुंच चुका है तथा धीरे-धीरे इस कार्य से दूर हो रहा है।

पौंग झील में वर्षों से मछली पकडऩे का कार्य रहे मछुआरों का कहना है कि इस झील में पहले मछली उत्पादन काफी अच्छा होता था तथा हम आसानी से अपने घर का खर्च चला लेते थे लेकिन पिछले आठ-दस सालों से झील में मछली उत्पादन में काफी गिरावट आई है।

मछुआरों का कहना है कि अब तो कभी एक किलोग्राम मछली ही फंसती है तो ज्यादातर बार खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। परिवार का पालन.पोषण करना मुश्किल हो रहा है।

मछुआरों ने कहा कि पौंग झील में जब से प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हुआ है तब से ही मछली उत्पादन में गिरावट होती जा रही है।

प्रवासी पक्षी मांसाहारी होते हैं जोकि झील में डाले गए मछली बीज सहित अन्य मछलियों को अपना शिकार बना लेते हैं। अधिकतर प्रवासी पक्षी तो पानी के अंदर आधा-आधा घंटे तक डुबकी लगाए रहते हैं तथा अंदर से ही मछलियों को खा जाते हैं।

सालभर में करीब छह माह तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं तथा छोटी-छोटी मछलियों को चट कर जाते हैं तथा इन पक्षियों के वतन वापस लौट जाने के बाद भी झील में मछुआरों के जालों में मछली नहीं फंसती है।

पौंग झील के अधीन 15 फिशरीज सोसायटीज हैं तथा करीब 2500 मछुआरे हैं। मछुआरों ने कहा कि कुछेक लोग तो इस कारोबार को अलविदा कह गए हैं तथा अन्य भी अलविदा कहने की तैयारी में हैं।

इन मछुआरों द्वारा रोजाना सुबह जालों में फंसी हुई मछली को सोसायटीज में पहुंचाया जाता है। रोजाना सुबह एकत्रित होने वाली मछली को ठेकेदार द्वारा मछली मंडी पठानकोट, तलवाड़ा व दिल्ली में भेजा जाता है तथा इन मंडियों में मछली ठेकेदार को मछली का दाम भी अच्छा मिल जाता है।

मत्स्य विभाग के निदेशक सतपाल मेहता के बोल

मत्स्य विभाग के निदेशक सतपाल मेहता ने बताया कि हर साल मार्च माह में एक साल का उत्पादन निकाला जाता है, जिसके तहत मार्च 2022 में 253994 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ था। उन्होंने कहा कि आंकड़ों अनुसार इस साल मछली उत्पादन बढ़ा है।

मछली की प्रजातियां

पौंग झील में राहु, कतला, सिंगाड़ा, मोरी, महाशीर व सोल इत्यादि प्रजाति की मछली पाई जाती है। सिंगाड़ा प्रजाति की मछली सबसे अधिक पाई जाती है, जबकि राहु प्रजाति की मछली को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

मछुआरों पर संकट

पौंग बांध फिशरीज एसोसिएशन के प्रधान जसवंत सिंह ने कहा कि मछली उत्पादन कम हो रहा है। मछुआरों को परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो गया है। सरकार व मत्स्य विभाग को चाहिए कि मछुआरों के हित में कारगर नीति बनाई जाए।

अतिरिक्त राहत भत्ता मिले

एसोसिएशन महासचिव केवल सिंह कुटलैहडिया ने बताया कि झील में हर साल लाखों रुपए का मछली बीज डाला जाता है, परंतु प्रवासी पक्षी इनको चट कर जाते हैं।

मछुआरों को मछली नहीं फंसती तथा मछुआरों को रोजी.रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं तब तक मछुआरों को अतिरिक्त राहत भत्ता मिलना चाहिए।

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