सिरमौर – नरेश कुमार राधे
हिमाचल के सिरमौर के ऐतिहासिक नगर नाहन ने भारत को एक ऐसी महान बेटी दी, जिसने अपने जीवन से राजशाही, सेवा और संस्कृति को एक नई परिभाषा दी है। 21 सितंबर 1943 को सिरमौर रियासत के शाही महल में जन्मीं राजकुमारी पद्मिनी देवी, न सिर्फ जयपुर राजघराने की महारानी बनीं, बल्कि समाज सेवा, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी अपना अनूठा योगदान देकर “जन-जन की राजमाता” का रुतबा हासिल किया। एक ओर वो अरबों की संपत्ति की स्वामिनी हैं, तो दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह जी की तलवार की संरक्षक।
राज परिवार में जन्म लेना अपने आप में विशेष होता है, लेकिन पद्मिनी देवी की परवरिश ने उन्हें महज एक शाही शख्सियत नहीं, बल्कि एक संवेदनशील, शिक्षित और समाजसेवी व्यक्तित्व के रूप में गढ़ा। सिरमौर रियासत के अंतिम शासक व पिता महाराजा राजेंद्र प्रकाश और माता महारानी इंदिरा देवी के संस्कारों ने समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना जगाई।
मसूरी, लंदन और स्विट्जरलैंड जैसे प्रतिष्ठित स्थानों से शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने अपनी मिट्टी,अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया। 10 मार्च 1966 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया, जब दिल्ली में जयपुर के युवराज महाराज भवानी सिंह और राजकुमारी पद्मिनी देवी का विवाह हुआ। दो शाही घरानों के इस मिलन ने दो राज्यों को ही नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों को भी जोड़ दिया। जयपुर के सिटी पैलेस की भव्यता उस ऐतिहासिक पल की गवाह बनी।
जयपुर की राजमाता बनने के बाद भी उन्होंने वैभव से अधिक सेवा को अपना ध्येय बनाया। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में उनके कार्यों ने समाज को नई दिशा दी। वे महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय की अध्यक्ष भी रहीं, और इस ऐतिहासिक धरोहर को नई ऊर्जा व पहचान दी।
पद्मिनी देवी का जीवन केवल शाही परंपराओं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने ब्रिटेन के शाही परिवार सहित विश्व भर के प्रतिष्ठित मंचों पर भारत की सांस्कृतिक गरिमा का प्रतिनिधित्व किया। वे एक सशक्त संस्कृति-दूत के रूप में जानी जाती हैं।
उनकी पुत्री दीया कुमारी ने उनकी परंपरा को न केवल राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ाया, बल्कि आज राजस्थान की उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रही हैं। वहीं, उनके दोहते पद्मनाभ सिंह अंतरराष्ट्रीय स्तर के पोलो खिलाड़ी हैं, और दोहती गौरवी कुमारी युवाओं की आवाज बनकर नारी सशक्तिकरण का प्रतीक बनी हुई हैं।
वहीं, सिरमौर के राजघराने से जुड़े लक्ष्यराज प्रकाश सिंह परंपरा, संस्कृति और सेवा के पथ पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। युवा नेतृत्व के इस प्रतीक ने समाजसेवा और सांस्कृतिक संरक्षण को अपना उद्देश्य बनाया है। आज भी राजमाता पद्मिनी देवी का दिल अपने जन्मस्थान नाहन से जुड़ा है। वे वहां के ऐतिहासिक शाही महल को एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय में तब्दील करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
उनका सपना है कि इस महल को एक ऐसा केंद्र बनाया जाए, जहां हिमाचल की गौरवशाली विरासत, संस्कृति और इतिहास को वैश्विक स्तर पर पहचान मिले। वे चाहती हैं कि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ी रहें और गर्व से अपने अतीत को जानें।
जयपुर के पूर्व महाराज भवानी सिंह भगवान राम के पुत्र कुश के 309 वें वंशज थे। इस बात की पुष्टि स्वयं जयपुर राजघराने की राजमाता पद्मिनी देवी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में की थी।
राजसी ठाठ के साथ सेवा का भाव, परंपरा के साथ आधुनिक दृष्टिकोण, और इतिहास के साथ भविष्य की सोच दिखाई देती है। वे आज भी हजारों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, और उनकी कहानी एक जीवंत उदाहरण है कि कर्म और संवेदना से महानता बनती है।
यदि आपको राजमाता पद्मिनी देवी के साथ कुछ पल बिताने का अवसर मिल जाए, तो आप महसूस करेंगे कि उनमें अहंकार की लेशमात्र भी झलक नहीं है। दोहते लक्ष्यराज प्रकाश के मंगल तिलक समारोह के दौरान, वो विशिष्ट अतिथियों को छोड़कर एक साधारण प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठकर नाहन के शाही महल में आम लोगों से आत्मीयता से बातचीत करती नजर आई थीं बहरहाल, राजसी वैभव और आध्यात्मिक विरासत का अनोखा संगम हैं “राजमाता पद्मिनी देवी”।