हिमखबर – डेस्क
‘या तो तिरंगा लहरा कर आउंगा या तिरंगे में लिपटकर, पर आउंगा जरूर।’ यह बात कैप्टन विक्रम बतरा ने कारगिल युद्ध पर जाने से पहले अपने दोस्तों से कही थी। कैप्टन विक्रम बतरा ने कारगिल में अपनी शहादत के साथ बहादुरी की जो दास्तां लिखी, वह दशक बाद भी लोगों के जहन में जिंदा है।
पालमपुर के शूरवीर विक्रम बतरा ने दुश्मनों से प्वाइंट 4875 छीन लिया। हालांकि इसका जश्न मनाने से पहले ही सात जुलाई, 1999 को उन्होंने शहादत का चोला ओढ़ लिया। अपने एक साथी को बचाते हुए 24 साल के विक्रम बतरा ने वीरगति प्राप्त की।
विक्रम बतरा की बहादुरी को सलाम करते हुए प्वाइंट 4875 को बतरा टॉप का नाम दिया गया और यह चोटी इस वीर सपूत की वीरता की कहानी बयां कर युवाओं को प्रेरणा देती है।
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के लिए दहशत का पर्याय बन गए कै. विक्रम बतरा को शेरशाह नाम दिया गया था। ‘ये दिल मांगे मोर’ का नारा युवाओं के दिल में जोश और देश प्रेम का जुनून भर देता है।
नौ सितंबर, 1974 को जन्मे विक्रम बतरा ने छह दिसंबर, 1997 को भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से प्रशिक्षण प्राप्त कर 13 जैक राइफल में नियुक्ति पाई थी। विक्रम बतरा की बहादुरी को देखते हुए उनको कारगिल युद्ध के दौरान ही कैप्टन बनाया गया था।
कै. विक्रम बतरा पर ‘शेरशाह‘ नाम से बायोपिक भी बनाई गई है। वहीं कारगिल युद्ध में दुश्मनों पर कहर बन टूटे कै. विक्रम बतरा के पिता ने अपने ही अंदाज में पुत्र को श्रद्धांजलि दी है। कै. बतरा के पिता जीएल बतरा द्वारा ‘परमवीर चक्र विक्रम बतरा शेरशाह ऑफ कारगिल’ शीर्षक से अंग्रेजी में पुस्तक लिखी है।
फोटो छपा है, अखबार संभाल कर रखना
कारगिल युद्ध के समय विक्रम का एक पत्र उनके भाई को आया था, जिसमें लिखा था के चुनौती बहुत बड़ी है, कुछ भी हो सकता है। एक अखबार में मेरा फोटो छपा है, उसे संभाल कर रखना, वापस आकर देखूंगा। यह फोटो पहले पन्ने पर छपा था, जिसमें कै. विक्रम दुश्मनों से छीनी एंटी एयरक्राफ्ट गन के साथ खड़े थे।