न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश रंजन शर्मा ने पीजीआई के तीन चिकित्सकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कैदी की गलत तरीके से सहायता करने के मामले में कड़ा संज्ञान लिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश रंजन शर्मा ने पीजीआई के तीन चिकित्सकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। अदालत ने चिकित्सकों को निजी शपथपत्र दायर करने के आदेश दिए हैं।
अदालत ने चिकित्सकों से पूछा है कि किन परिस्थितियों में सजायाफ्ता कैदी को गलत प्रमाण पत्र जारी किया गया है। अदालत ने याचिकाकर्ता दीपराम को 24 घंटे के भीतर आत्मसमर्पण करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने पाया कि नेफ्रोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजा रामचंद्रन, संबंधित वरिष्ठ रेजिडेंट और चिकित्सा अधीक्षक नेहरू अस्पताल पीजीआई चंडीगढ़ ने कैदी की गलत तरीके से सहायता की है।
अदालत ने प्रमाण पत्र का अवलोकन पर पाया कि चिकित्सकों ने कैदी का इलाज करने के 21 दिन बाद से 15 दिनों की छुट्टी की सिफारिश की थी। इस प्रमाणपत्र को आधार बताकर कैदी ने अपने पैरोल को बढ़ाने की गुहार लगाई।
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि पिछले 14 साल से शिमला की कंडा जेल में सजा काट रहा है। स्वास्थ्य बिगड़ने पर उसने अपना इलाज करवाने के लिए जेल प्रशासन से पैरोल मांगी थी। जेल प्रशासन ने याचिकाकर्ता को एक सितंबर 2023 तक पैरोल स्वीकृत कर दी।
याचिकाकर्ता ने 6 अगस्त से 10 अगस्त तक पीजीआई में अपना इलाज करवाया। इस दौरान याचिकाकर्ता पीजीआई में दाखिल रहा। पैरोल खत्म होने के नजदीक याचिकाकर्ता ने जेल प्रशासन को चिकित्सक का प्रमाण पत्र दिखाकर पैरोल की अवधि बढ़ाने की मांग की।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष पैरोल बढ़ाए जाने की गुहार लगाई। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को पीजीआई के चिकित्सकों ने एक सितंबर से 15 सितंबर तक छुट्टी की सिफारिश की है।
अदालत ने प्रथम दृष्टतया पाया कि याचिकाकर्ता को इलाज 6 से 10 अगस्त तक किया गया और 10 अगस्त से 31 अगस्त तक कोई छुट्टी की सिफारिश नहीं की गई। पहली सितंबर से 15 दिनों की छुट्टी की सिफारिश इसलिए की गई कि याचिकाकर्ता का पैरोल एक सितंबर को खत्म हो रही थी।