62 सवर्ण छात्रों की शहादत को याद कर सवर्णों की आखों में आए आंसू

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रुमित ठाकुर सहित डीजेपी के अन्य अधिकारियों ने फिर याद दिलाई मंडल कमीशन रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश/ सोलन – जीवन वर्मा

आज देवभूमि जनहित पार्टी द्वारा प्रदेश अध्यक्ष रुमित ठाकुर के नेतृत्व में आगामी कार्यक्रमों को लेकर वर्चुअल बैठक का आयोजन किया गया। जिसमे प्रमुख्ता 7 अगस्त काला दिवस चर्चा का विषय बना रहा। गौरतलब हो कि 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई थी। जिसके बाद सैकड़ों सवर्ण छात्र छात्राओं ने आत्मदाह कर लिया था।

बैठक में कई तरह के सुझाव आए। देवभूमि जनहित पार्टी के एक पदाधिकारी के अनुसार उक्त विषय पर बात चलते ही कार्यकर्ता भावुक हो गए, बेकसूर सवर्ण बच्चों की शहादत को याद करके कई कार्यकर्ताओं की आंखों में आंसू आ गए।

देवभूमि जनहित पार्टी के सुप्रीमो रुमित ठाकुर ने उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश का सँविधान लागू होते ही सामान्य वर्ग के साथ जातीय भेदभाव होने लगा। देश के संविधान में ही जातिगत आरक्षण व्यवस्था ने सामान्य वर्ग के साथ नाइंसाफी की। लेकिन 7 अगस्त 1990 में तो सरकार ने सवर्णों की कमर ही तोड़ कर रख दी।

7 अगस्त काले दिवस को भुलाया नही जा सकता। यह एक ऐसा काला ऐतिहासिक दिन है जिसके बाद हमने कई अपनों को खो दिया। इस दौरान रुमित ठाकुर भावुक दिखाई दिए । रुमित ठाकुर ने जानकारी देते हुए बताया कि 32 साल पहले 7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के एक ऐलान के बाद समाज का ताना-बाना ही हिल गया।

उन्होंने बताया कि 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया गया था, जिसके तहत अति पिछड़ा वर्ग (OBC) को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया। यह वह काला दिन था जिसने सुंदर व पावन सनातन की नीवं तक हिलाकर रखदी। तब से देश करीब 4 साल तक आंदोलन की आग में झुलसता रहा। आरक्षण विरोधी सड़क पर उतरे, कॉलेज और यूनिवर्सिटी आंदोलन का अखाड़ा बन गए। सवर्ण छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे।

आंदोलनकारियों में सवर्णो के ऐसे ऐसे गरीब छात्र भी थे जो गरीबी का दंश झेलते हुए अपनी काबिलियत से ग्रेजुएशन पोस्ट ग्रेजुएशन तक पहुंचे थे, लेकिन नेताओं व सरकारों द्वारा सनातन में जातिवाद का जहर घोला जा चुका था, नेताओं में जातीय गणना करके अपना अपना वोट बैंक बनाने की होड़ लग गई। लेकिन सवर्णों की चीख पुकार सुनने वाला कोई नहीं था।

कइ सवर्ण छात्र छात्राओं ने आत्मदाह तक कर लिया। आगे रूह तक कंपा देने वाली जानकारी देते हुए रुमित ने बताया की सितंबर 1990 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह कर लिया।

एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी ने भी आत्महत्या करने की कोशिश की, बुरी तरह झुलसते राजीव को हॉस्पिटल में एडमिट किया 1993 में दूसरी बार राजीव गोस्वामी ने दिल्ली के इंदिरा चौक पर आत्मदाह का प्रयास किया था, काफी शरीर बुरी तरह से जुलूस जाने के कारण 2004 में राजीव की मौत हो गई थी।

इसके इलावा 24 सितंबर 1990 को पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प हुई, बिहार पुलिस की फायरिंग में चार छात्रों की मौत हो गई। इसके अलावा ओडिशा में भी प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गोली चलाई। रुमित ने कहा कि तब के आंदोलनकारियों में कुछ से मिली जानकारी अनुसार उस समय माहौल सवर्ण छात्र छात्रओं के विपरीत था।

कॉलेज/ विश्वविद्यालय प्रशासन तक सरकारों के दबाव में आकर सवर्ण विद्यार्थियों को प्रताड़ना देने लगे। कॉलेज व हॉस्टल से निकालने तक की धमकियां मिलने लगी। यहां तक की सरकार द्वारा आंदोलन को विफल करने के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो को भी आंदोलनकारियों में शामिल किया गया।

आंदोलनकारी सवर्ण बच्चों ने अपने ऊपर गिरते पत्थर तक झेले। लेकिन सवर्णो की चीख पुकार समय की सरकारों के कानों में नहीं पड़ी। मारे गए सवर्ण बच्चों के माता पिता, भाई बहन सब रोते रहे, बिलखते रहे, लेकिन नेताओं द्वारा देश का माहौल ऐसे बना डाला जैसे सवर्ण इस देश का हिस्सा ही ना हो।

एक रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में 200 से अधिक युवाओं ने आत्मदाह की कोशिश की, जिसमें से 62 की मौत होने की पुष्टि हुई, लेकिन इन आंकड़ों पर आशंका जताई जा रही है, क्योंकि इनमें उन सवर्ण छात्र-छात्राओं को नहीं लिया गया जो सरकारों द्वारा दिए गए मानसिक तनाव से मारे गए। एक अनुमान के अनुसार मरने वाले सवर्ण छात्रों की संख्या 400 के करीब भी आंकी गई।

रुमित ठाकुर ने कहा की ये देश का दुर्भाग्य है कि तब से लेकर आज तक किसी ने सवर्णों की सुध नही ली। इस मौके रुमित ठाकुर ने मारे गए तमाम आंदोलनकारी छात्र छात्राओं को सनातन के शहीद करार दिया।

रुमित ने कहा कि यह सनातन धर्म का दुर्भाग्य ही था कि इतना सब हो जाने के बाद भी सवर्णों को इंसाफ देने की जगह देशभर में जातिय खेल खेला जाने लगा और जातियों के नाम पर संगठन व राजनैतिक पार्टियां बनने लगी। जिसके परिणामस्वरूप अधिकतर प्रदेशों की सत्ता ओबीसी नेतृत्व के हाथों में चली गई। इसके बाद नए गुटों ने आरक्षण की मांग शुरू की, जिसके बाद हर पार्टी के मेनिफेस्टो में आरक्षण का मुद्दा भी जुड़ गया।

रुमित ने आरोप लगाते हुए कहा कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के जिम्मेदार कोंग्रेस, भाजपा सहित कई अन्य राजनीतिक दल हैं।

ठाकुर ने कहा कि देश की मौजूदा मोदी सरकार को मंडल रिपोर्ट 2 लागू करते हुए ना तो शर्म आई और ना ही उन्हें याद रहा कि जब सनातन धर्म का अभिन्न अंग सवर्ण के बच्चे जल रहे थे, तब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी देश का ध्यान मर रहे सवर्ण बच्चों से हटाने की एवज में रथ यात्रा निकाल कर धर्म की ओर ले जाने मैं व्यस्त थे ताकि मंडल कमीशन रिपोर्ट का विरोध होना बंद हो सके।

रुमित ने कहा कि सनातन चार वर्गों पर आधारित है, जिनमे से एक भी वर्ग को अलग किया जाए तो सनातन धर्म पूर्ण नही होता, लेकिन नेताओं ने अपने अपने वोट बैंक की गणना करके सनातन को जातियों में बांटकर छिन्न-भिन्न कर दिया। रुमित ने कहा कि अब देश की जनता राजनीतिक पार्टियों की देश को धर्म और जातियों में बांटने की राजनीति को समझ चुकी है।

उन्होंने कहा कि देवभूमि के आगामी विधानसभा चुनावों में जनता देश को जाति धर्म से बांटने की राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों को सबक सिखाने का मन बना चुकी है और समानता की बात करने वाली देवभूमि जनहित पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।

इसके अलावा रुमित ठाकुर सहित देवभूमि जनहित पार्टी के वरिष्ठ नेता पंकज शर्मा व महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष पूजा पाल ने मंडल कमीशन रिपोर्ट के बाद शहीद हुए सवर्ण आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं की याद में सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट शेयर किए। देखते ही देखते उक्त पोस्ट सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गए।

देश भर से हजारों लाखों लोगों ने स्क्रीनशॉट लेकर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर शेयर किए। जिसके बाद मंडल कमीशन रिपोर्ट के कारण शहीद हुए 62 छात्रों को याद करके देश भर के अनेकों सवर्ण भावुक हो उठे।

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