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प्रागपुर- आशीष कुमार

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प्रदेश के हर गांव व कस्बे में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का बखान करने वाली सरकार बेशक स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े दावे करे। लेकिन जमीनी हकीकत दर्शाती है कि अभी भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लोगों को तरसना पड़ रहा है। इसे विडंबना ही कह लीजिए कि क्षेत्र का एक 100 साल पुराना सिविल अस्पताल गरली अपनी दुर्दशा के कारण सुर्खियों में है।

सिविल अस्पताल गरली 100 साल पहले 1921 में क्षेत्र की एक समाज सेविका बुधा देवी के नाम पर जानने वाला अस्पताल (महिलाओं का अस्पताल) के नाम पर बनाया गया था। बुधा देवी गरली के मशहूर समाजसेवक राह बहादुर मोहन लाल सूद की माता थीं। अपनी माता के नाम पर ही उन्होंने महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की खातिर इस अस्पताल का निर्माण करवाया था।

अंदाजा लगाइए 100 साल पहले महिलाओं की मुश्किलों को समझते हुए अस्पताल जनता को समर्पित किया गया। लेकिन अंग्रेजी हकूमत से आजादी के 75 साल बाद भी इस अस्पताल का जीर्णोद्धार नहीं हो सका। आपको हैरत होगी कि अस्पताल का भवन 100 साल पुराना है। जबकि 100 साल में जो चार कमरे बने हैं वो भी विकास में जनसहयोग योजना के तहत बने हैं।

लेकिन हालात यह हैं कि स्वीकृत 30 बिस्तर वाले अस्पताल में मात्र अाठ बिस्तर से ही काम चलाया जा रहा है.अस्प्ताल में शाम चार बजे के बाद बही मरीज दाखिल किए जाते हैं जो सिर दर्द ,पेट दर्द जैसी मामूली बीमारी से ग्रस्त हों.क्योंकि व्यवस्थाएं अधिक नहीं है। आपातकाल में नादौन या फिर जवालामुखी पहुंचने से पहले ही क्षेत्र के कई लोग रास्ते में दम तोड़ चुके हैं। लेकिन व्यवस्था है कि सुधरने का नाम नहीं लेत। क्षेत्र की महिलाओं के लिए खासकर उन महिलाओं के मुश्किल है जिन्हें प्रसर्व के दौरान भी दुरवर्ती अस्पतालों में जाना पड़ता है।

100 साल पहले महिलाओं की समस्याओं की खातिर खोला अस्प्ताल

स्थानीय समाजसेवी ललित शर्मा बताते हैं कि स्वर्गीय लाला राय बहादुर मोहन लाल सूद ने 100 साल पहले अपनी माता बुधा देवी के नाम पर अस्पताल खुलवाया। यहां की पहली डॉक्टर ब्रिटिश थीं। ब्रिटिश डॉक्टर गीडियन महिला रोग विशेषज्ञ थीं। महिलाओं के लिए यह अस्प्ताल प्रसिद्ध था.यही कारण है कि जनाना अस्पताल के नाम से उस समय इसका नामांकरण हुआ। इसमें संशय नहीं है कि 100 साल बीत जाने के बाद भी सरकारें इस अस्प्ताल के लिए कुछ नहीं कर पाई।

क्षेत्र के समाजसेवी व गरली पंचायत के उपप्रधान सुशांत मोदगिल बताते हैं कि गरली धरोहर को संजोने वाला पुराना कस्बा है. सुखद है कि गरली सीनियर सेकेंडरी स्कूल, तथा अस्प्ताल यहाँ की सूद बिरादरी के समाजसेवी खोल गए. नहीं तो सरकार के हवाले से तो यहां कुछ नहीं होता।

असपताल लोगों की मूलभूत जरूरत है.समाज का पिछड़ा वर्ग ,गरीब तबका जब 100 रुपये खर्च करके दूसरी विधानसभा में इलाज के लिए जाते हैं तो दुख होता है. नजदीकी रक्कड़ सामुदायिक अस्प्ताल के लिए सुविधाएं भी 72 साल के बुजुर्ग के आमरण अनशन के बाद मिलें तो साफ दिखता है कि सरकारें जनता के प्रति कितनी वफादार हैं. बहुत जल्दी इस अस्पताल की दशा सुधरने की तरफ कदम नहीं उठाया गया तो हम जनआंदोलन खड़ा करेंगे।

हंसराज धीमान ने यह कहा

भाजपा पूर्व मंडल अध्यक्ष जसवां परागपुर हंसराज धीमान ने कहा कि यह व्यवस्था उन लोगों के लिए उदाहरण है जो दिन रात सत्तासीन नेताओं की झूठी वाहवाही करते हैं। 25 पैसे का काम करके 75 पैसे का प्रचार सत्तासीन मंत्री के चाहवानों का विकास है। धरोहर गांब में 100 साल पुराने अस्पताल की हालत पर वे लोग अधिक जिम्मेदार हैं जो पिछले चार साल से सरकार में मह्त्वपूर्ण विभागों के मंत्री हैं लेकिन क्षेत्रवाद की पट्टी के कारण परागपुर की अनदेखी की जा रही है।

ब्लॉक समिति सदस्य भड़ोली जदीद के अनुज शर्मा ने कहा कि कई सालों के संघर्ष के बाद रक्कड़ सामुदायिक अस्पताल को सुविधाओं का आश्वाशन मिला है। गरली का 100 साल पुराना अस्पताल नेताओं कि बेरुखी के कारण जस का तस है.दुःखद है कि 30 बेड के अस्पताल में 8 कि ही सुविधा है.।

स्‍नेहलता परमार ने कहा कि क्षेत्र में बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कृतसंकल्प हैं। सिविल अस्पताल गरली में पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं सहित नए बड़े भवन तथा अन्य जरूरतों को अपने स्तर पर उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर के सामने रखा है। आपातकाल में मरीजों को परेशानी का सामना न करना पड़े। इसके लिए हाल ही में एम्बुलेंस सरकार की तरफ से दी गयी है। लंबे समय तक परागपुर सरकार से दूर रहा है। पहली बार क्षेत्र को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। वर्षों से बिगड़ी व्यवस्थाएं सुधरने में समय लेंगी लेकिन सुधरेंगी जरूर।

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