हिमखबर डेस्क
पितृपक्ष श्राद्ध 17 सितंबर से शुरू होने वाले हैं, जो कि 2 अक्तूबर तक चलेंगे। इस अविध में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं तथा उनकी आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं। शाहपुर हल्के के आचार्य अमित कुमार शर्मा ने बताया कि पितृ पक्ष में लोग यज्ञ करने के बाद अपने पितृ को जल और अन्न का भोग कौओं के जरिए कराते हैं।
माना जाता है कि इन कौओं में पितरों की आत्मा विराजमान होती है। हिंदू सनातन परंपरा में श्राद्धों के दौरान कौवों का काफी ज्यादा महत्व है। कौआ यमराज का प्रतीक होता है। यमराज मृत्यु का देवता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कौआ अन्न खा ले तो यमराज खुश होते हैं और उनका संदेश उनके पूर्वजों तक पहुंच जाता है।
आचार्य अमित कुमार शर्मा ने बताया कि श्राद्ध के दौरान तर्पण में एक थाली कौवे, कुत्ते और गाय के लिए भी निकाली जाती है। अगर कौवे नहीं मिल रहे हैं, तो किसी भी पक्षी को भोजन कराया जा सकता है, लेकिन कौवे को ही खिलाया जाए यही उत्तम होता हैं।
गरुड़ पुराण में लिखा है कि कौवा यमराज का संदेश वाहक है। श्राद्ध पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यम ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से यह प्रथा चली आ रही है।
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है, उतना ही जरूरी कौवों को भोजन कराना भी होता है। माना जाता है कि कौवे इस समय में हमारे पितरों का रूप धारण करके हमारे पास रहते हैं। पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैसे शादी, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीददारी वर्जित होती है।
भगवान श्रीराम ने दिया था आशीर्वाद
कथानुसार कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर भगवान श्री राम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौए की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी।
तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौआ का रूप धारण करके पहुंचा था वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।