शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में राम मंदिर में साईं की मूर्ति को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। उत्तर दिशा के ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती वीरवार को पहली बार शिमला पहुंचे थे।
शंकराचार्य देशभर में गौ हत्या रोकने और गौ माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इसी क्रम में, वे हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के राम मंदिर में गो ध्वज की स्थापना के लिए पहुंचे थे। हालांकि, उन्होंने शिमला में आयोजित कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया और राम मंदिर गए बिना ही लौट गए।
शंकराचार्य वीरवार सुबह सबसे पहले शिमला के प्राचीन जाखू मंदिर पहुंचे। वहां उन्होंने गौ ध्वज की स्थापना की। इसी दौरान उन्हें राम मंदिर में साईं की प्रतिमा न हटाने की सूचना मिली, जिसके बाद उनके स्टाफ ने जाखू मंदिर से ही एक संदेश जारी किया। संदेश में कहा गया कि साईं की मूर्ति के कारण शंकराचार्य राम मंदिर नहीं गए और उन्होंने कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया।
शंकराचार्य के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेंद्र योगिराज ने जानकारी दी कि उन्होंने पहले ही राम मंदिर प्रशासन को साईं की मूर्ति हटाने के लिए कहा था, लेकिन मूर्ति नहीं हटाई गई। इसलिए, शंकराचार्य ने जाखू मंदिर से ही गौ ध्वज फहराया और वहीं से वापस देहरादून लौट गए।
मीडिया प्रभारी ने कहा कि हिंदू धर्म में पहले से ही 33 करोड़ देवी-देवता हैं। ऐसे में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की मूर्ति का मंदिर में कोई स्थान नहीं है। शंकराचार्य उन सभी मंदिरों में पूजा नहीं करते हैं जहां साईं की मूर्ति होती है, इसलिए उन्होंने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया।
गौरतलब है कि अयोध्या के राम मंदिर में भी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने शास्त्र और वेदों के माध्यम से अयोध्या में श्रीराम मंदिर की भूमि को राम जन्मभूमि के रूप में प्रमाणित किया था। इसके अलावा, शंकराचार्य गौ माता को पशु की श्रेणी से हटाकर राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं।
22 सितंबर को अयोध्या में राम मंदिर में गो ध्वज स्थापना और जयघोष के साथ यह यात्रा शुरू हुई थी, जिसमें 33 राज्यों की राजधानियों में गो ध्वज फहराया जा रहा है। यह यात्रा 25,600 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए 27 अक्टूबर को वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में गो ध्वज फहराने के साथ समाप्त होगी। राजधानी शिमला इस यात्रा का 33 वां पड़ाव था, लेकिन राम मंदिर में साईं की मूर्ति होने के कारण शंकराचार्य ने वहां जाने से इनकार कर दिया और कार्यक्रम का बहिष्कार किया।