देहरा- आशीष कुमार
विश्व विख्यात कांगड़ा लघु चित्रकला के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु एक पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन तहसील देहरा के अंतर्गत नंदपुर गांव में स्थित राजा गुलेर महल में शुभारंभ हुआ। भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा कांगड़ा एवं इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान मे कांगड़ा लघु चित्रकला गुलेर शैली पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ पहाड़ी चित्रकला जन्म स्थान गुलेर में हुआ।
ज्ञात रहे कि कांगड़ा लघु चित्रकला जो कि अपनी लयात्मक रेखाओं एवं स्वच्छ सुंदर रंगो के लिए विख्यात है के चित्र भारत ही नहीं दुनिया में सभी संग्रहालय में सराहे जाते हैं। माननीय प्रधानमंत्री के लोकल फॉर वोकल अथवा वन डिस्टिक वन प्रोजेक्ट के माध्यम से इस कला को एक नया बल मिला है।
कांगड़ा लघु चित्रकला एक समय पर विलुप्त हो गई थी इस कार्यशाला का आयोजन इस चित्रकला की जन्म स्थली गुलेर में हुआ जहां आज से 400 वर्ष पहले इसकी नींव रखी। इतिहास साक्षी है कि राग रागिनी, गीत गोविंद, राग माला, विषयों पर कृष्ण राधा पर प्रेम प्रसंग को दर्शाते हुए इन चित्रों को गुलेर के राजा दिलीप चंद एवं उनके पुत्र राजा गोवर्धन चंद ने भरपूर संरक्षण दिया।
कालांतर में कांगड़ा के राजा संसार चंद ने इसे आगे बढ़ाया और गुलेर के विख्यात चित्रकार पंडित सेऊ और उनके विश्व विख्यात चितेरे पुत्रों मानक व नैनसुख अपनी चित्रकला की बारीकियों के लिए जो विश्व के कला प्रेमियों के लिए शोध का विषय है गुलेर चितेरा घराने के थे। हाल ही वर्षों में उनके बने चित्रों का करोड़ों रुपयों में नीलाम होना इन चितेरो की काबिलियत को दर्शाता है।
इस कार्यशाला में लगभग 25 शिक्षकों ने भाग लिया। शिक्षक के रूप में जिला कांगड़ा के सुप्रसिद्ध चित्रकार धनीराम, मोनू कुमार व पूनम देवी ने प्रशिक्षुओं को कांगड़ा चित्रकला की बारीकियां सिखाई। जिसमें माइंन ऑफ आर्ट के प्रशिक्षुओं ने अपनी चित्रकला दिखाई।