बिलासपुर – सुभाष चंदेल
घुमारवीं के पन्याला में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवधाम अनायास ही धार्मिक पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। मंदिर के बारे में बाबा धर्मवीर का कहना है कि इस मंदिर का प्राचीन नाम कामदानाधेश्वर था, जो कालांतर में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापना के उपरांत द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवधाम से प्रसिद्ध हो गया।
वर्ष 1995, 1997 में क्रमश: पुरातन मंदिर का जीर्णोद्धार व पिंडी स्थापना का श्रीगणेश किया गया। इसके उपरांत मंदिर सेवादल कमेटी ने श्रद्धालुओं के सहयोग से द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विधिवत स्थापना की। मंदिर की समीपवर्ती पहाड़ी पर शिव, पार्वती, गणेश जी मूर्तियों की शोभा से दृश्य कैलाश पर्वत की तरह प्रतीत होता है।
मंदिर प्रांगण में गणेश भगवान की भव्य प्रतिमा, हवन कुंड व जामियापाम, साईकसपाम, फोक्सटेल पाम, रुद्राक्ष, बिल्ब व मोर पंखी आदि इसकी शोभा को चार चांद लगाते हैं। मंदिर प्रांगण में साक्षी गोपाल जी का मंदिर भी काफी मनमोहक है। यहां एक अखंड ज्योति भी प्रज्वलित है।
वैसे तो यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन सोमवार, श्रावण मास, नवरात्रों, नाग पंचमी, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी व विशेष धार्मिक पर्वों पर यहां पर्यटकों का सैलाब उमड़ पड़ता है। प्रदेश व देश के प्रसिद्ध कथावाचकों के मुखार्बिंद से यहां भागवत कथा सप्ताह का भी विधिवत आयोजन होता रहता है। सुबह-शाम शिवधाम मंदिर में भजन-कीर्तन, आरतियों के मधुर स्वर से चारों ओर शांति व आध्यात्मिकता महसूस की जा सकती है।
लोक आस्था के अनुसार शिवलिंग साक्षात ब्रह्म का प्रतीक है, जिसके स्पर्श मात्र से भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक तापों की निवृत्ति से जीवन मंगलमय होता है। प्रतिदिन मनोकामना पूर्ति हेतु श्रद्धालुगण द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवधाम मंदिर पन्याला में पूजा-अर्चना व रुद्राभिषेक करते अकसर देखे जा सकते हैं।
शिवधाम सेवादल कमेटी जनसहयोग से इस मंदिर के समुचित सौंदर्यीकरण के लिए प्रयासरत है। इस मंदिर में आप बारहमासा आवागमन कर सकते हैं। यहां पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम प्रकृति के माया लोक में पहुंच गए हैं।
ऐसे पहुंचें मंदिर
द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवधाम मंदिर बिलासपुर मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह घुमारवीं से करीब 8 किलोमाटर की दूरी पर घुमारवीं-सरकाघाट सुपर हाईवे पर पन्याला में मौजूद है जहां बस या कार आदि से पहुंच सकते हैं।
मंदिर के साथ बहते नाले में पाए जाते हैं सोने के कण
पुजारी बताते हैं कि पहले इस स्थान पर घना जंगल था, जिसे फेटी धार के नाम से जाना जाता था। मंदिर के समीप पन्याला नाला बहता है, जिसमें सोने के कण भी पाए जाते हैं। मंदिर के साथ एक छोटे से टीले पर भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जिसे कैलाश पर्वत नाम दिया गया है। भक्तों के लिए यहां कैलाश परिक्रमा मार्ग भी बनाया गया है। हाल ही में मंदिर में साक्षी गोपाल मंदिर का निर्माण भी किया गया है।
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