पैसों की तर्ज पर ATM से दवाइयां भी निकलेंगी, ऐसे काम करेगा सिस्टम

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शिमला – नितिश पठानियां

अब पैसों की तर्ज पर एटीएम से दवाइयां भी निकलेंगी। एनआईटी हमीरपुर के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन विभाग के तृतीय व अंतिम वर्ष के छात्रों ने एटीएम की तर्ज पर ऑटोमेटिक ड्रग डिस्पेंसर मशीन तैयार की है। विद्यार्थियों ने इसके लिए एक मोबाइल एप भी डिजाइन की है। इसके माध्यम से मरीजों को मशीन के जरिये दवाइयां वितरित होंगी।

इस एप पर डॉक्टर और मरीज दोनों को लॉगइन करना होगा। एप के जरिये मरीज को टेस्ट से लेकर दवाइयां सब ऑनलाइन मिलेंगी। एनआईटी हमीरपुर के विद्यार्थियों ने इस सिस्टम को ऑटोमेटिक ड्रग डिस्पेंसर नाम दिया है। इस एप पर लॉगइन करने से मरीज की बीमारियों का ऑनलाइन डाटा भी एक जगह होगा।

बीमारियों और इलाज की पूरी जानकारी एप पर होगी। विद्यार्थियों ने इस सिस्टम को महज 10 हजार की लागत में तैयार किया है। हालांकि अभी इस सिस्टम में डिजाइन एप को नाम दिया जाना बाकी है। अस्पताल में बड़े स्तर पर इस सिस्टम को लागू करने में अधिक लागत आएगी।

इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशन विभाग के प्रोफेसर एवं प्रोजेक्ट के इंचार्ज अशोक कुमार की निगरानी में तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों कमल, अरुण, अक्षत और अंतिम वर्ष के छात्र अभिषेक तथा कृष्णा गंभीर ने इस प्रोजेक्ट का प्रोटोटाइप तैयार किया है। जल्द ही इस प्रोटोटाइप का पेटेंट भी फाइल किया जाएगा। इस सिस्टम से मरीजों को सरकारी अथवा निजी काउंटर पर लाइनों में नहीं लगना होगा। टेस्ट की रिपोर्ट भी एप पर ऑनलाइन ही मरीज को प्राप्त हो पाएगी।

ऐसे काम करेगा सिस्टम

दरअसल इस सिस्टम को जिला अथवा सिविल अस्पतालों में स्थापित करना होगा। मोबाइल एप पर पंजीकरण करने के बाद जब मरीज डॉक्टर के पास जाएगा तो डॉक्टर की ओर से दवाई लिखते ही एक क्यूआर कोड तैयार होगा। इस क्यूआर कोड को ऑटोमेटिक ड्रग डिस्पेंसर पर स्कैन करना होगा।

क्यूआर कोड के स्कैन होते ही दवाइयों की सूची कीमत के साथ मशीन में प्रदर्शित होगी। यूपीआई से पेमेंट करते ही सूची में लिखी दवाइयां मशीन से बाहर निकल आएंगी। यदि कोई दवाई मशीन में उपलब्ध नहीं होगी तो उसे सामान्य फार्मेसी अथवा अन्य मशीन से लिया जा सकेगा। हालांकि लैब और सामान्य फार्मेसी में कर्मचारियों के फोन में यह एप होना जरूरी होगा।

इस एप के जरिये फार्मेसी और लैब के कर्मचारी मरीज को रिपोर्ट और दवाइयां देंगे। एप में इलाज और बीमारी का विवरण में मौजूद रहेगा, जिससे इलाज में चूक की संभावना भी शून्य होगी। जिला और ब्लाॅक स्तर के अस्पताल में इस सिस्टम को लागू करने में एक लाख से अधिक लागत आएगी।

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