सिरमौर – नरेश कुमार राधे
सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन से करीब 25 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाड़ियों के बीच महामाया बालासुंदरी का भव्य एवं दिव्य मंदिर त्रिलोकपुर नामक स्थल पर स्थित है। करीब 450 साल पुराने इस ऐतिहासिक शक्तिधाम से हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित उत्तर भारत के लाखों लोगों की आस्थायें जुड़ी हुई हैं।
त्रिलोकपुर स्थित माता बालासुंदरी मंदिर में हर वर्ष दो बार चैत्र और अश्वनी मास के नवरात्रि के अवसर पर नवरात्र मेलों का आयोजन किया जाता है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर होने वाले मेले को यहां बड़ा मेला और अश्वनी मास के नवरात्र पर होने वाले मेले को छोटा मेला कहा जाता है।
इस वर्ष चैत्र नवरात्र का मेला 22 मार्च से 6 अप्रैल तक आयोजित किया जा रहा है। मंदिर ट्रस्ट और जिला प्रशासन ने मेले के सफल आयोजन के लिए सभी तैयारियां मुक्कमल कर ली हैं।
ये है मंदिर का इतिहास
महामाया बालासुंदरी के मंदिर के इतिहास की बात करें, तो जनश्रुति के अनुसार त्रिलोकपुर महामाया बालासुंदरी मंदिर की स्थापना सन् 1573 यानि सोलवीं सदी में तत्कालीन सिरमौर रियासत के राजा प्रदीप प्रकाश ने की थी।
कहा जाता है कि सन् 1573 ईसवी के आसपास सिरमौर जिले में नमक की कमी हो गई थी। ज्यादातर नमक देवबंद नामक स्थान से लाना पड़ता था। देवबंद वर्तमान में उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का ऐतिहासिक कस्बा है। कहा जाता है कि लाला राम दास सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता देवबंद से यहां आई थी।
भगत रामदास की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। कहते हैं कि भगत राम दास देवबंद से लाया नमक विक्रय करते गए, मगर काफी समय के बाद भी नमक समाप्त होने में नहीं आया। भगत को नमक के विक्रय से काफी धन प्राप्त हुआ। फिर भी नमक समाप्त नहीं हो रहा था। इससे भगत राम दास अचंभित हो गए।
भक्त ने मां को सपने में दिए दर्शन
भगत उस पीपल के वृक्ष के नीचे सुबह-शाम दिया जलाते थे और पूजा-अर्चना करते थे। इसी बीच माता बालासुंदरी ने प्रसन्न होकर एक रात्रि भगत राम दास को सपने में दर्शन दिए और कहा कि भक्त मैं तुम्हारी भक्ति भाव से अति प्रसन्न हूं, मैं यहां पीपल वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में विराजमान हूं, तुम मेरा यहां पर भवन बनवाओ।
मां बालासुसंदरी के दिव्य दर्शन के उपरांत भगत को भवन निर्माण की चिंता सताने लगी। स्वपन में भगत ने माता का आवहान किया और विनती की कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है।
जयपुर से आए कारीगरों ने किया भवन निर्माण
उन्होंने माता से आग्रह किया कि आप सिरमौर के महाराज को भवन निर्माण का आदेश दें। माता ने तत्कालीन सिरमौर नरेश राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वपन में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया। सिरमौर नरेश प्रदीप प्रकाश ने तुरंत जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य पूरा किया।
हालांकि मां बाला सुंदरी के नमक की बोरी में देवबंद से त्रिलोकपुर आने की किवदंती अधिक प्रचारित है, लेकिन मंदिर परिसर में सूचना बोर्ड में उद्वृत इतिहास, एक दूसरी किवदंती की जानकारी को भी उल्लेखित करता है।
दूसरी कहानी भी है प्रचलित
दूसरी किवदंती के अनुसार भगत लाला राम दास के घर के सामने पीपल का पेड़ था। वो वहां पर हर रोज जल चढ़ाया करते थे। एक दिन भयंकर तूफान आया और पीपल का पेड़ उखड़ गया। उस पेड़ के नीचे के स्थान से एक पिंडी प्रकट हुई।
रामदास पिंडी को उठाकर घर लाए और पूजा अर्चना करने लगे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें स्वपन में दिव्य दर्शन दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। भगत लाला राम दास ने स्वपन की चर्चा सिरमौर नरेश से की जिन्होंने श्रद्धापूर्वक त्रिलोकपुर मंदिर बनवाया।
अन्य राज्यों से भी आते हैं श्रद्धालु
मंदिर का दो बार सन् 1823 में राजा फतेह प्रकाश तथा सन् 1851 में राजा रघुवीर प्रकाश के शासन में जीर्णाेद्धार किया गया था। इस प्रकार सदियों से माता बालासुंदरी धाम त्रिलोकपुर में चैत्र और अश्विनी मास के नवरात्रों में मेले का आयोजन किया जाता है।
हजारों की संख्या में श्रद्धालु हिमाचल के अलावा साथ लगते हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से टोलियो में मां भगवती के दर्शन करने आते हैं। वर्तमान में यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर उभर चुका है।