देहरा, शीतल शर्मा
सरकार भले ही दावा करें कि कोई भी गरीब बिना आवास के नहीं रहेगा। दावा होता है कि कच्चे मकानों में रहने वाले गरीबों को पक्के आवास बनाकर देंगे, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अब भी कई परिवार ऐसे हैं जो सालों से पक्के मकान का इंतजार कर रहे हैं। इन्हें अभी तक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास नहीं मिला है।
ऐसा ही एक मामला आज हम आपको जिला काँगड़ा ज्वालामुखी क्षेत्र के खुन्डिया तहसील के भटवाल गांब मे रहने वाले प्रकाश चन्द (सूग्रीव) 39 वर्ष के बारे कुछ बताना चाहते है जो इतने सालों से आदिवासी जैसी जिन्दगी ब्यतीत कर रहे है। गरीबी रेखा के नीचे बी पी एल में काफी वर्ष से आज तक प्रधानमंत्री आवास योजना या अन्य किसी प्रकार की सरकारी योजना का लाभ परिवार को नही मिला है। यहां तक की घर में सौचालय तक नही है। घर की दीवारें भी इतनी कमजोर है कि बरसात में हर समय गिरने का खतरा बना रहता है।
प्रकाश चंद 1 कमरे के मकान मे रहते है और इनके साथ इनकी माता 74 वर्षीय रौशनी देवी धर्मपत्नी स्वर्गीय तहल सिंह रहती है वह भी ब्रैस्ट कैंसर से प्रभावित है और इन दोनों के आलावा इनके घर पे कोई भी नही है।
बताया जा रहा है कि प्रकाश के पिता तहल सिंह का निधन 13 वर्ष पहले हो गया था। निधन के बाद से यह लोगों के घरो मे काम करके 2 वक़्त के खाने का गुज़ारा करते है। अव्यवस्था का आलम ये है कि इतने सालों से कई सरकारे आई और गयी, कई पंचायत प्रधान आए जो इन्हें प्रोलोभन देकर गये, पर आज दिन तक न ही इनकी सुध किसी ने ली और न ही कोई इनकी सहायता करने के लिए आगे आया है।
हालात ये है कि यह सिर्फ एक कमरे मे गुज़ारा करते है और मकान की इतनी बुरी हालत हो चुकी है की कभी भी यह गिर सकता है।
इधर प्रकाश चन्द दिहाड़ी मजदूरी भी नही लगा सकते कयुंकि उनके पैर में कुछ दिक्कत है। हालांकि प्रकाश चंद इतने मेहनती है की हर अछे और बुरे वक़्त मे हमेशा गांब के लोगों के साथ चलते है और किसी भी कार्य को करने से कभी भी मना नही करते है।
तस्बीरें बता रही घर की कैसे रह रहे मां बेटा
प्रकाश के घर के अन्दर का नज़ारा देखकर तो कोई भी स्तब्ध रह सकता है। घर की तस्बीर देखकर आप खुद अंदाज़ा लगा सकते है की यह अपना जीवन यापन कैसे ब्यातित कर रहे है।
अधिकारी नहीं आते जानकारी लेने
प्रकाश ने बताया कि आज तक कोई अधिकारी हमें जानकारी देने नहीं आया है। इससे हमें पता ही नहीं चलता कि हमारी किसी योजना का हमें लाभ मिल रहा है या नहीं। इसके लिए हमें परेशान होना पड़ता है।