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मंडी – अजय सूर्या

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ग्रामीणों की आय का जरिया बनने वाली जंगली गुच्छी में काली गुच्छी के दाम छह हजार और सफेद गुच्छी के दाम पांच हजार पहुंच गए हैं। जबकि बीते साल 15 से लेकर 20 हजार रुपये प्रति किलो तक ग्रामीणों को दाम मिले थे।

चीन से आयात होने वाली गुच्छी के चलते जंगली गुच्छी के दाम गिर गए हैं। पॉलीहाउस में गुच्छी तैयार होने से भी जंगली गुच्छी के दामों में असर पड़ने लगा है। इससे ग्रामीणों को बड़ा झटका लगा है।

ग्रामीणों की आय का जरिया बनने वाली जंगली गुच्छी में काली गुच्छी के दाम छह हजार और सफेद गुच्छी के दाम पांच हजार पहुंच गए हैं। जबकि बीते साल 15 से लेकर 20 हजार रुपये प्रति किलो तक ग्रामीणों को दाम मिले थे।

नाचन और सिराज घाटी में गुच्छी स्थानीय लोगों के लिए आय का अतिरिक्त जरिया है। सुबह होते ही महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे जंगलों की तरफ कूच कर देते हैं और शाम को गुच्छी एकत्र कर चोखी कमाई करते हैं।

इस बार दाम गिरने से ग्रामीणों में मायूसी है। क्षेत्र के जंगल आजकल गुच्छी की फसल से महक उठे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली गुच्छी के दाम में गिरावट का असर ग्रामीणों की आर्थिकी पर पड़ सकता है।

नाचन और सिराज में गुच्छी एकत्र करने की परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। गुच्छी की सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है और हिमाचल में स्टेट गेस्ट जब भी आते हैं तो उन्हें गुच्छी की सब्जी परोसी जाती है।

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