चिंतपूर्णी इलाके में बेकाबू हुई भीषण आग, धू-धू कर जल रहे जंगल; तिनका-तिनका हो रहा राख

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चिंतपूर्णी क्षेत्र के जंगलों में लगी भीषण बेकाबू होती जा रही है, लगातार तीसरे दिन मंगलवार को तीन जंगलों में आग की घटनाएं, जंगल के कई हेक्टेयर क्षेत्र में तिनका-तिनका राख हो चुका था और आग नियंत्रण में नहीं आई थी

ऊना – अमित शर्मा

जिला ऊना में मंगलवार को एक बार फिर से बधमाणा व सिद्ध चलेहड़ का जंगल धू-धू कर जलता रहा, साथ ही डंगोह की शामलात भूमि में भी आग ने भयंकर रूप धारण कर रखा था। चिंतपूर्णी क्षेत्र के जंगलों में लगी भीषण बेकाबू होती जा रही है।

यहां कई जगहों पर आग बुझाने के बाद फिर से लपटें नजर आ रही हैं। एक स्थान पर यदि आग पर काबू पाया जाता है तो फिर किसी दूसरे जंगल में भीषण आग भड़कने की सूचना आ जाती है। मंगलवार दोपहर बाद साढ़े 12 बजे बधमाणा के सरकारी जंगल में आग से इतना धुंआ फैल गया कि सामने कुछ दिख तक नहीं रहा था।

यह वही जंगल है, जहां दो दिन पूर्व भी आग लगी थी और विभाग व युवाओं के सहयोग से बुझाया गया था। मंगलवार शाम तक इस जंगल के कई हेक्टेयर क्षेत्र में तिनका-तिनका राख हो चुका था और आग नियंत्रण में नहीं आई थी।

सिद्ध चलेहड़ के जंगल में सोमवार शाम को वन विभाग ने लगी आग पर काबू पा लिया था, लेकिन मंगलवार को वन्य क्षेत्र के दूसरे छोर से आग फैल गई। पिरथीपुर बीट का डंगोह जंगल भी आग से धधकता रहा।

भीषण आग से गत वर्षों में किए गए पौधरोपण की भारी हानि हुई है। विडंबना यह भी है कि यह समय कई पक्षियों का प्रजननकाल भी होता है और घोंसलों में पल रहे पक्षियों के बच्चे या अंडे भी सुरक्षित नहीं रहे।

किशोरी लाल रेंज अधिकारी, वन विभाग के बोल

तीन दिन से जंगलों में आग की घटनाएं निरंतर बढ़ी हैं। जंगलों में आग को रोकने के लिए वन विभाग की टीम प्रयासरत है। जंगल को आग के हवाले करने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध पुलिस में मामला दर्ज करवाया जाएगा।

दशकों पुराने पारंपरिक तरीके ही विकल्प

जंगल में आग बुझाने के लिए पुरानी तकनीक से ही वन विभाग इस पर नियंत्रण करता है। एयर ब्लोअर और लीफ ब्लोअर जैसे आधुनिक यंत्र अभी तक विभाग के पास उपलब्ध नहीं हैं। बावजूद विषम भौगोलिक परिस्थितियों में परंपरागत साधनों से ही वन कर्मी व ग्रामीण आग को बुझाते रहे हैं और निश्चित है कि यही विधि अबकी बार भी फायर सीजन में भी काम आ रही है।

ऐसे बुझाई जाती है जंगल में लगी आग

जब वन्य क्षेत्र में भीषण लपटें उठने के बाद आग आगे बढ़ना शुरू हो जाती है तो उसे बुझाने के लिए विपरीत दिशा में आग लगाकर काबू पाया जाता है। चिंतपूर्णी क्षेत्र के सुदूर जंगलों में अग्निशमन विभाग की गाड़ी नहीं पहुंच पाती है और वहां पर पानी का भी कोई प्रबंध नहीं है।

ऐसे में वन विभाग के कर्मी आग को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कांउटर फायर (छेका) विधि को भी अपनाते हैं। हरे पेड़ों के पत्तों व टहनियों से जल रही घास को बुझाया जाता है।

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