कांगड़ा – राजीव जसवाल
पुराना कांगड़ा में ऊंची पहाड़ी पर स्थित मां जयंती के दरबार में पंचभीष्म मेले कल से शुरू हो रहे हैं। यह मेले पांच दिन तक चलेंगे। हर वर्ष कार्तिक मास की एकादशी से मेले शुरू होते हैं। इस दौरान तुलसी के गमले में लगा कर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों और केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है।
मां के दरबार में पांच दिन तक पांच दीये अखंड जलाए जाते हैं। मां जयंती कांगड़ा किले से पांच सौ फीट की ऊंचाई में पहाड़ी पर स्थित मां दुर्गा की छठी भुजा का एक स्वरूप है। यहां हजारों श्रद्धालु इन मेलों में मां के दरबार पहुंचते हैं।
पुराना कांगड़ा से जयंती माता मंदिर की सीढिय़ों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, इसके बाद करीब चार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके मंदिर में पहुंचते हैं।
यह जुड़ी है कहानी
कांगड़ा में माता का यह मंदिर द्वापर युग में निर्मित हुआ था। जयंती माता जहां जीत का प्रतीक है वहीं वह पापनाशिनी भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है। महाभारत के युद्ध के समय युधिष्ठर को मां जयंती ने स्वप्न दिया था कि उनकी इस युद्ध में जीत होगी और यह भी निर्देश दिया था कि पांडव मां चामुंडा का आशीर्वाद लें।
भीष्म पितामह से जुड़ा है यह इतिहास
भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे अनुरोध किया कि वह पांडवों को ज्ञान प्रदान करें। मृत्यु शैय्या पर लेटे पितामह भीष्म सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे पितामह भीष्म ने श्रीकृष्ण के अनुरोध पर पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया।mभीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानी पांच दिन तक चलता रहा।
भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिन में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में ‘भीष्म पंचक’ के नाम से जाना जाएगा। इसके बाद से जयंती माता मंदिर में इस आयोजन का आरंभ हुआ जो अभी तक चल रहा है।
इंद्र की रक्षा के लिए मां ने धरा था चामुंडा का रूप
एक अन्य कथा के अनुसार जब इंद्र को राक्षस ने युद्ध में घेर लिया था तो मां जयंती ने मां चामुंडा का रूप धारण करके देवराज इंद्र की सहायता भी की थी। कहा जाता है कि जयंती माता के दर्शन से पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। जयंती माता को गोरखा समुदाय की कुलदेवी भी कहा गया है।
ऐसे पहुंचे मां जयंती मंदिर कांगड़ा तक
जयंती माता मंदिर कांगड़ा बस अड्डा से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गगल स्थित कांगड़ा एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर तथा कांगड़ा रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कांगड़ा बस अड्डा से पुराना कांगड़ा चार किलोमीटर है। यहां के लिए बस सुविधा उपलब्ध है, पुराना कांगड़ा ने नंदरूल मार्ग पर स्थित जयंती माता मंदिर की पैदल चढ़ाई : डेढ़ किलोमीटर व करीब 100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।