सरकारी कार्यलयों में सूचना देने वाले अधिकारी सीधे मुँह बात भी नहीं करते, सूचना प्रदान करने वाले अधिकारी सूचना के अधिकार के बारे में समझ बना के रखे
बिलासपुर, सुभाष चंदेल
जिला कांग्रेस महासचिव संदीप सांख्यान ने कहा कि सरकारी कार्यलयों का हाल यह हो चला है कि यदि कोई सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अधीन कोई सूचना मांगी जाए तो सरकारी कार्यलयों के अधिकारी और कर्मचारी इस तरह से व्यवहार करते है जैसे कि उनकी सैलरी से का कोई हिस्सा या उनकी की जमीन जायदाद मांग ही ली हो।
सरकारी कार्यलयों में सूचना प्रदान करने वाले डीलिंग हैंड जरूरी तौर पर मांगी गई सूचना के पत्र में जबरदस्ती गलती निकालने की कोशिश करते हैं या फिर मांगी गई सूचना की विषय वस्तु पर प्रश्न चिन्ह लगा देंगे यदि वह भी सम्भव नहीं हुआ तो मांगी गई सूचना की अवधि पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने की कोशिश करते है।
जिला कांग्रेस महासचिव ने कहा कि यह वाक्य उनके साथ जिला उपायुक्त के कार्यलय के साथ साथ बिजली विभाग के कार्यलय वह अन्य सरकारी कार्यलयों में भी घट चुका है। जबकि सूचना देने वाले अधिकारी व कर्मचारी को याद रखना चाहिये कि सूचनाएं का अधिकार 15 जून 2005 को इसे अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन।
सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। इस अधिकार अधिनियम के द्वारा कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण।
दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना आदि के बारे में जानकारी मांगी और दी जा सकती है। इसके साथ ही सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना है भी इस अधिकार में सम्मलित है। इसमे सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना,प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लाॅपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
सूचना का अधिकार अधिनियम् 2005 के प्रमुख प्रावधान इस तरह से है कि समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी भी बनाए गए हैं, लेकिन उनका व्यवहार सामान्यतः ठीक नहीं होता। इसके अलावा जो भी सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार्य होते है, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध करवानी पड़ती है।
जनसूचना अधिकारी का दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध जानी चाहिए। इन डीलिंग हैंड और जनसूचना अधिकारी को यह समझना चाहिए कि यदि वह आवेदन लेने से मना करता है या तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है।
साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी। यहां तक कि लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है।
लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। तो ऐसे में सूचना का अधिकार का प्रयोग करना हर नागरिक को सविंधान ने दिया है ऐसे में सूचना उपलब्ध करवाने वाले अधिकारी अपने व्यवहार में व्यवहारिक लाएं ताकि जो जनाक्रोश जो सूचना लेने वालों का सरकार व सरकारी विभागों के खिलाफ उमड़ रहा है उससे बचा जा सके।