अमित शर्मा, वरिष्ठ संवाददाता, हिमख़बर
मुक्तेश्वर महादेव धाम द्वापर युग में पांडवों द्वारा अपने वनवास के 12 वर्ष में स्थापित किया गया था । पांडव अपने प्रवास के क्रम में दसूहा जिला होशियारपुर से होते हुए माता चिंतपूर्णी के दर्शन करते हुए आए तथा इस शांत तथा निर्जन स्थान को अपने निवास के लिए चुना।
मान्यता है कि इस स्थान पर वे करीब 6 माह तक रुके पांडवों ने यहां पर पांच गुफाओं का निर्माण किया तथा शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव को जागृत कर होने वाले संभावित युद्ध के लिए उनसे विजय का वरदान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त एक अखंड धूना एवं रसोई घर का भी निर्माण किया जिसे आज द्रोपदी की रसोई के नाम से जाना जाता है समय के कालक्रम में एक गुफा बंद हो चुकी है पांडव अपनी अज्ञातवास के प्रारंभ होने के पहले ही रावी नदी पार करके विराट राज्य की सीमा में प्रवेश कर गए जिसका केंद्र आज जम्मू कश्मीर के अखनूर से माना जाता है ।
मुक्तेश्वर महादेव के महात्म्य का वर्णन स्कन्द पुराण के कुमारखंड में भी मिलता है।
धाम में स्थापित शिवलिंग में खड़ी अथवा सीधी रेखाएं दर्शित होती है जो कि रक्त शिराओं को प्रतिबिंबित करती हैं जो कि वस्तुत ओज एवं ऊर्जा का प्रतीक है संपूर्ण विश्व में आज इस प्रकार का एकमात्र शिवलिंग है गुफा नंबर 3 की ऊपरी भाग में चक्र अंकित है जिसके नीचे बैठकर पांडव ध्यान योग एवं क्रिया साधना किया करते थे प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि चैत्र चतुर्दशी वैशाखी एवं सोमवती अमावस्या को धाम परिसर में विशाल मेला लगता है इस पावन अवसर पर स्नान एवं बाबा के दर्शन करने पर हरिद्वार के बराबर पुण्य प्राप्त होता है ।
व्यक्ति यहां अपने संबंधियों की अस्तियाँ भी प्रवाहित करते हैं ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके तथा वैशाखी के अवसर पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं इसलिए मुक्तेश्वर धाम छोटा हरिद्वार के नाम से विख्यात है।