सिरमौर – नरेश कुमार राधे
सिरमौर जनपद के गिरिपार क्षेत्र में सदियों पुरानी लोक संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने वाला और साल का सबसे खर्चीला व शाही माघी त्योहार शनिवार से शुरू हो गया है। यह चार दिवसीय पर्व पारंपरिक व्यंजनों और विशेष रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है।
पहले दिन पारंपरिक व्यंजन जैसे मुड़ा, तेलवा, और शाकुली तैयार किए गए, जबकि रात को अस्कली, तेलपाकी, सतोउले परोसे गए। दूसरे दिन “खेंड़ा” खिचड़ी और पोली बनाने की परंपरा निभाई जाती है।
गिरिपार क्षेत्र के करीब 3 लाख लोगों की 154 पंचायतों में सदियों से यह त्योहार इसी धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के दौरान क्षेत्र में बर्फ और ठंड के बावजूद खरीदारी और उत्सव का माहौल देखने को मिलता है। हालांकि दिसंबर माह की शुरुआत से ही मांसाहारी लोग अन्य दिनों से ज्यादा मीट खाना शुरु कर देते हैं।
मांसाहारी और शाकाहारी परंपराओं का संगम
माघी त्योहार के पहले तीन दिनों में मांसाहारी परिवारों में बकरे काटने की परंपरा जारी है। इस बार भी त्योहार के चलते बकरों की कीमत 550 प्रति किलो तक पहुंच गई। वहीं, शाकाहारी लोगों के लिए मूड़ा, तेलवा, शाकुली, सीडो, पटांडे, और अस्कली जैसे पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
लोक संस्कृति और परंपराओं का उत्सव
14 जनवरी तक चलने वाले माघी त्यौहार मकर संक्रांति, जिसे “साजा” के नाम से जाना जाता है, पर घर-घर में पटांडे और अस्कली, सतोउले जैसे व्यंजन पकाए जाते हैं। माघी त्यौहार को खुड़ियांटी, डिमलांटी, उत्तरांटी अथवा होथका व साजा अथवा संक्रांति के नाम से मनाया जाता है।
इस दिन किसी भी घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनता। लोग अपने कुल देवता को अनाज और घी चढ़ाकर पूजा करते हैं। त्योहार के पहले दिन किसी भी घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनता।
बाजारों में रौनक और यातायात की समस्या
त्योहार के चलते बाजारों में खरीदारी का दौर चरम पर है और सामान्य दिनों की तुलना में अधिक भीड़ देखी जा रही है। हालांकि, बसों की कमी के चलते लोग पिकअप, टैंपो, और मालवाहक वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं।
गिरिपार क्षेत्र के लोग पारंपरिक त्योहार को पूरे जोश और उल्लास के साथ मना रहे हैं, जिससे क्षेत्र की लोक संस्कृति और परंपराएं संजीवित हो रही हैं।
माघ मास के पहले दिन किसी भी घर में मांसाहारी भोजन नही पकता। साजे के नाम से मनाई जाने वाली मकर संक्रांति पर लोग अपने कुल देवता को अनाज व घी की भेंट चढ़ाते हैं।
गिरिपार में लोक संस्कृति का उत्सव, बकरों की बढ़ी मांग
गिरिपार क्षेत्र के संगड़ाह, शिलाई और राजगढ़ उपमंडलों में लगभग 90% किसान परिवार पशुपालन करते हैं। हालांकि, पिछले चार दशकों में युवाओं का रुझान सरकारी नौकरियों, नकदी फसलों और व्यवसाय की ओर बढ़ने से बकरियां पालने का चलन घटा है।
मांसाहार के लिए मीट कारोबारियों द्वारा राजस्थान, सहारनपुर, नोएडा और देहरादून की मंडियों से बड़े- बड़े बकरे क्षेत्र में उपलब्ध करवाए जाते हैं।
विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के सर्वेक्षण के अनुसार, लोहड़ी के अवसर पर मनाए जाने वाले माघी त्योहार पर हर साल गिरिपार में लगभग 40,000 बकरे काटे जाते हैं। त्योहार का यह जोश और उत्साह गिरिपार क्षेत्र की समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखे हुए है।