नवरात्री स्पेशल : कैसे हिमाचल में हुआ 5 शक्तिपीठों का निर्माण, प्रेम विवाह से जुड़ा है इतिहास

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हिमखबर डेस्क

देश भर में दुर्गा स्वरूप मां के 51 शक्तिपीठ हैं। इनमें से 5 हिमाचल में भी मौजूद हैं। इन शक्तिपीठों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। साथ ही इन शक्तिपीठों से लोगों की असीम आस्था जुड़ी है।

मां चिंतपूर्णी, मां ज्वाला जी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां चामुंडा देवी व मां नैना देवी के दर्शन करने लोग कोसों दूर से यहां पहुंचते है। लेकिन क्या आप जानते है कि इन शक्तिपीठों का निर्माण कैसे हुआ और ये देश में केवल 51 ही क्यों है?इस खबर को पढ़कर आपको आपके सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा। साथ ही हम आपको इतिहास भी बताएंगे।

कैसे हुआ शक्तिपीठों का निर्माण

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में राक्षस हिमालय पर अपना राज करना चाह रहे थे, जोकि सृष्टि के लिए काफी नुकसानदायक था। ऐसे में देवी-देवताओं के लिए यह एक चिंता का विषय बन गया था। शिवजी के आराध्य देव भगवान विष्णु के नेतृत्व में देवताओं ने राक्षसों से युद्ध करने का फैसला लिया।

सभी देवताओं व आराध्य देव विष्णु भगवान ने एक ऐसी शक्ति का निर्माण किया, जिसके तेज से जमीन से विशाल लपटें उठने लगी। उस अग्नि के तेज से राजा दक्ष के घर में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। वह कन्या सती के रूप में प्रजापति दक्ष के घर में बड़ी हुई। इसके बाद माता सती को भगवान शिव से प्रेम हुआ। राजा दक्ष इस बात के खिलाफ थे कि उनकी पुत्री का विवाह कैलाश वासी शिव से हो।

राजा दक्ष अपनी पुत्री सती का विवाह किसी राज परिवार में करना चाहते थे, लेकिन सती भगवान शिव को ही अपना सर्वस्व मान चुकी थी। लिहाजा, माता पार्वती ने राजा दक्ष के खिलाफ जाकर भोले नाथ से प्रेम विवाह किया। राजा दक्ष बहुत अहंकारी था, उसने समस्त राज परिवार को आदेश दिए कि सती से अब कोई किसी भी तरह का संबंध नहीं रखेगा।

सती के विवाह के बाद राजा दक्ष ने एक भव्य व विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें राजा दक्ष ने सभी रिश्तेदारों को न्योता दिया, लेकिन माता सती को नहीं बुलाया। उधर, सती का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि उसके पिता ने उसे यज्ञ में नहीं बुलाया। वह शिवजी से कहने लगी कि शायद उनके पिता व्यस्तता के चलते उन्हें यज्ञ में न्यौता देना भूल गए होंगे, वह इस यज्ञ में जरूर जाएगी।

शिवजी ने माता सती को समझाने की बहुत कोशिश की कि बिना किसी निमंत्रण कभी किसी के द्वार पर नहीं जाना चाहिए। लेकिन माता सती ने उनकी एक न सुनी और वह अकेले ही यज्ञ में शामिल होने चली गई। सती जैसे ही राजा दक्ष के दरबार में पहुंची, दक्ष ने उनका तिरस्कार किया। यहां तक कि उनके पति शिवजी का भी बहुत अपमान किया।

इस पर सती का क्रोध चरम पर पहुंच गया और उन्होंने राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि में कूदकर खुद को भस्म कर दिया। जैसे ही भगवान शिव को सती के हवन कुंड में कूदने का समाचार मिला, तो वो अत्यंत क्रोधित हो गए। तुरंत  राजा दक्ष द्वारा आयोजित धार्मिक अनुष्ठान में पहुंच गए और हवन कुंड से माता सती की देह को निकाला।

सती के विरह में शिवजी देह को लेकर पृथ्वी पर इधर-उधर भटकने लगे। सभी देवी-देवताओं व आराध्य देव भगवान विष्णु चिंता करने लगे कि यदि ऐसा ही रहा तो सृष्टि का क्या होगा। ऐसे में विष्णु भगवान ने सती माता के शरीर को अलग-अलग भागों में विभाजित कर दिया।

इसके बाद पृथ्वी पर जहां भी माता के शरीर के भाग गिरे, वहीं शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। देश भर में दुर्गा स्वरूप मां के 51 शक्तिपीठ हैं। इनमें से 5 हिमाचल में हैं।

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