अंगदान जागरूकता अभियान, समय की बहुत बड़ी ज़रूरत है !
पठानकोट,14अप्रैल – भूपिंद्र सिंह राजू
हमने बहुत से दानों के बारे में तो सुना है,दान तो दान होता है मगर आज अंगदान का अपना ही महत्व है I अपनी स्वेच्छा से किसी जरूरतमंद व्यक्ति को कुछ देने की क्रिया दान कहलाती है ।
दान अनेक प्रकार के होते हैं- धनदान, विद्यादान, अभयदान, कन्यादान, रक्तदान, अंगदान, देहदान आदि । विद्यादान सबसे सुखमयी दान है ।
क्षमादान तो आत्मदान है ही । सभी दान की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं । लेकिन अपना अंगदान करके किसी मानव की जिंदगी बचाना मानवता के प्रति बहुत बड़ा उपकार है ।
अंगदान से जीवनदान मिलता है, अतः यह सर्वोपरि है । हाल ही में केरला की एक लड़की देवानंदा ने अपने पिता को बचाने के लिए अपने लीवर का एक हिस्सा दान किया और वह भारत की सबसे कम उम्र की अंग-दाता बनी।
इसी तरह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की बेटी रोहणी आचार्य ने भी अपने पिता को बचाने के लिए जीते जी अपनी एक किडनी दान करके अभूतपूर्व और प्रशंसनीय कार्य कियाI
अंगदान की जानकारी भारत में बहुत कम लोगों तक सीमित हैं, यह कह लीजिये इसके बारे लोग जायदा बात भी नहीं करना चाहते I
पिछले साल भारत में 15000 अंगदान हुए जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है यह हमारे समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत भी है बहुत से किस्से-कहानियाँ हमे अपने समाज में मिल जाएंगी कि किसी का लीवर तो किसी की आंख ने ख़राब हो गई और किसी की किडनी खराब हो गई।
किसी का दिल ने धड़कना बंद हो गया और नौबत उस अंग को बदलने की आ गई हो अक्सर ऐसे मरीजों को प्रायतारोपण के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है I
अंगदान क्या है?
किसी जीवित या मृत व्यक्ति के शरीर का उत्तक या अन्य कोई अंग पीड़ित व जरूरतमंद व्यक्ति को देने की प्रक्रिया को अंगदान कहते हैं । इसमें व्यक्ति के महत्वपूर्ण अंगों को किसी दूसरे रोगी के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है ।
असल में यह बहुत ही महान कार्य है, जिससे कई रोगियों की जिंदगी बचाई जा सकती है । हमारे विशेष अंग जैसे- दिल, गुर्दे, फेफड़े, यकृत, अग्नाशय एवं आतों का दान मरणोपरांत किया जा सकता है या फिर ऐसा भी कह सकते हैं कि एक शरीर से 8 जिंदगियां बचाई जा सकती हैं ।
अंगों के खराब हो जाने के कारण बहुत से रोगियों के लिए अंगदान ही आखिरी सहारा होता है । अंगदान से एक और अभिप्राय है कि हम अपनी जिंदगी तो जीते ही हैं मगर मृत्यु के बाद भी हम अपने अंगों के माध्यम से जीवित रहते हैं ।
मरने के बाद हमारा दिल किसी दूसरे इंसान के सीने में फिर से धड़कता है । हमारी आंखों से ज्योति हीन व्यक्ति इस दुनिया को देख सकता है । यह कार्य सामाजिक कल्याण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे हम दुनिया से जाने के बाद भी मानवता की सेवा कर सकते हैं ।
दुनिया में और भी बहुत से अच्छे कार्य हैं परंतु अंगदान उनमें सर्वश्रेष्ठ है जो विशेष रूप से याद किया जाता रहेगा, क्योंकि किसी दूसरे को अपने अंग देकर उसकी जिंदगी बचाना एक परम उदाहरण हैI
उत्तक में हमारे नेत्र, त्वचा, हृदय वाल्व, हड्डियां आदि आते हैं । हमारे उत्तक जो कोशिकाओं का एक समूह हैं, उन रोगियों में लगाए जाते हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है ।
हम अपने उत्तकों को 50 से अधिक रोगियों को देकर उन्हें स्वस्थ कर सकते हैं । मरने के बाद हम अपने नेत्र दो रोगियों को लगाकर उनकी आंखों की रोशनी को वापस ला सकते हैं और उनकी अंधेरी जिंदगी में उजाले भरे जा सकते हैं ।
इससे बढ़कर महान कार्य और क्या हो सकता है कि आप मरने के बाद भी किसी परिवार की खुशी का कारण बनें । यह अमूल्य है । यह कार्य आपको मानवता की अग्रिम श्रेणी में खड़ा कर देता है ।
भाव यह है कि आप मरने के बाद भी नहीं मरते । यह कई मरणासन्न लोगों के लिए एक बहुत बड़ा उपहार है ।
अंगदान क्यों जरूरी है?
हमारे देश की आबादी 135 करोड़ के पार हो चुकी है । उसी अनुपात में भारत में रोगियों की संख्या भी बहुत ज्यादा बढ़ी है । रक्तचाप, मधुमेह की बीमारी तो यहां आम बात है ।
लाखों रोगी भिन्न-भिन्न बीमारियों जैसे हार्ट फेलियर, फेफड़ों की बीमारी, गुर्दे एवं लीवर खराब हो जाना, दृष्टि हीनता, हृदय के वाल्व खराब होना और गंभीर रूप से जल जाना आदि से ग्रस्त हैं ।
यह सारे अंतिम चरण के रोग हैं जिनका इलाज प्रत्यारोपण से किया जा सकता है । भारत में इस तरह के रोगियों की संख्या बहुत अधिक है ।
भारत को प्रति वर्ष लगभग 2.0 लाख गुर्दों के मरीजों के लिए प्रत्यारोपण की आवश्यकता है । करीब 80 हज़ार ऐसे मरीज हैं जिन्हें लीवर की जरूरत है ।
50 हज़ार हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता है और इसी कड़ी में करीब एक दो लाख दृष्टिहीन मरीज हैं जिन्हें अपनी जिंदगी में उजाले की आवश्यकता है । एक रिपोर्ट के अनुसार करीब हर साल पांच लाख लोग जिन्हें अंगों की आवश्यकता होती है और उन्हें डोनर नहीं मिलता ।
जिसके कारण वह अपने प्राण त्यागने को विवश हो जाते हैं । अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में स्थापित Organ Retrieval Banking Organisation के अनुमान से भारत में प्रतिवर्ष 1.5 से 2 लाख गुर्दों के प्रत्यारोपण की आवश्यकता है और हम केवल आठ हज़ार के करीब की ही व्यवस्था कर पाते हैं ।
लिवर प्रत्यारोपण के मामले में भी जहां 40 से 50 हजार लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है वहां प्रतिवर्ष केवल 1700 से 1800 लीवर ही प्रत्यारोपित किए जाते हैं ।
इसी प्रकार पांच हजार हृदय प्रत्यारोपण की तुलना में केवल 250 हृदय प्रत्यारोपण होते हैं । यह एक बहुत बड़ा फासला है जिसको सिर्फ ज्यादा से ज्यादा जानकारी आम लोगों तक पहुंचा कर ही भरा जा सकता है ।
एक अन्य विस्तृत रिसर्च में यह पाया गया है कि भारत में अंग एवं उत्तक का बहुत ही गंभीर संकट है और जो दिन-ब-दिन गहरा होता जा रहा है । भारत में अंगदान करने वालों की बहुत कमी है ।
भारत में लगभग 15 लाख के पीछे एक व्यक्ति इस नेक कार्य के लिए आगे आता है । इतनी कमी का एक ही कारण है कि भारत में अंगदान के बारे में लोगों को बहुत ही सीमित जानकारी और भ्रम की स्थिति है, जिसके कारण लोग इस नेक कार्य को करने में परहेज करते हैं ।
लोगों में विश्वास की बहुत ज्यादा कमी है और उनमें एक वहम भी बढ़ गया है कि कहीं इसके पीछे कोई अंगदान गिरोह तो काम नहीं कर रहा क्योंकि पूर्व में इस प्रकार के कई मामले हुए थे ।
इस संबंध में सरकार लोगों में विश्वास पैदा करने में काफी हद तक कामयाब हुई है । लोगों को बहुत ही सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है ताकि भविष्य में अमूल्य जीवन बचाए जा सकें ।
अभी भी लोगों में मस्तिष्क स्तंभ मृत्यु ( Brain stem Death) के बारे में सीमित जानकारी है । लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि रोगी की मृत्यु हो चुकी है ।
इसके अलावा हमारे और भी बहुत सारे धार्मिक मत हैं जो इस महत्वपूर्ण कार्य में बाधाएं उत्पन्न करते हैं और लोगों को नकारात्मकता की ओर ले जाते हैं ।
जीते जी अंगदान
भारतीय अधिनियम के तहत 18 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी भारतीय नागरिक अपना अंग, उत्तक या फिर दोनों दान कर सकता है । वह व्यक्ति स्वैच्छिक रूप से अपने करीबी रिश्तेदार या फिर चिकित्सकीय प्रयोजनों की पूर्ति के लिए कानून व नियमों के दायरे में अंगदान कर सकता है ।
व्यक्ति अपने जीवन काल के दौरान कुछ अंग दान कर सकता है जिससे उसके अपने जीवन पर प्रभाव ना पड़े । जैसे व्यक्ति अपना एक गुर्दा ( Kidney) दान कर सकता है । सामान्य जीवन जीने के लिए एक गुर्दा ही पर्याप्त होता है ।
इसी प्रकार यकृत (Liver) का कुछ भाग दान किया जा सकता है । यकृत कुछ समय के बाद दानी और प्राप्त कर्ता दोनों के शरीर में पुनः विकसित हो जाता है ।
अग्नाशय (Pancreas) का कुछ भाग भी दान किया जा सकता है क्योंकि आधा अग्नाशय अपने कार्यों के लिए पर्याप्त होता है ।
मरणोपरांत अंगदान
यदि किसी व्यक्ति की लंबी बीमारी से या फिर किसी दुर्घटना से अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसके परिजनों की सहमति से यह मानवीय कार्य किया जा सकता है ।
मृतक की आयु यदि 18 वर्ष से कम हो तो उस स्थिति में उसके माता-पिता या फिर प्राधिकृत रिश्तेदार की सहमति आवश्यक होती है । यहां एक बात और जो बताने योग्य है कि दान के लिए चिकित्सा उपयुक्तता, मृत्यु की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के समय पर ही निर्धारित होती है ।
अंगदान प्रतिज्ञा
किसी भी इंसान की यदि यह इच्छा है कि मरणोपरांत उसके आवश्यक अंग किसी और जरूरतमंद को लगाए जाएं तो वह स्वयं घोषणा कर सकता है । कई एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से जुड़े कार्य किए जाते हैं ।
वहां व्यक्ति फॉर्म- 7 अंग/उत्तक प्रतिज्ञा भरकर हस्ताक्षर सहित जमा कर सकते हैं । इसके बाद उसे पंजीकृत संख्या आबंटित की जाती है और पहचान पत्र दिया जाता है । जिसे हमेशा अपने साथ रखना होता है ।
वास्तव में जब हम स्वेच्छा से घोषणा करते हैं कि मरणोपरांत हमारे अंग किसी दूसरे इंसान में प्रत्यारोपित किए जाएं । तब हम सही अर्थों में इस महान कार्य को करने के लिए आगे बढ़ते हैं ।
आइए संकल्प लें कि हम अपने जीवन में और जीवन के बाद भी औरों को अपने अंग दान करके उनके जीवन में उजाला भर देंगे ।
आम इंसान को अंगदान हेतु प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिवर्ष 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है । इसी प्रकार भारत में अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए इस बर्ष 3 अगस्त को राष्ट्रीय अंगदान दिवस मनाया जाएगा ।
आइए हम सब संकल्प लें कि हम अपने जीवन में और जीवन के बाद भी औरों को अपने अंग दान करके उनके जीवन में उजाला भर देंगे ।