जिला कांगड़ा करे पुकार मुख्यमंत्री बनें चौधरी चन्द्र कुमार

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कोटला – स्वयंम

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में यह शाश्वत सत्य है कि प्रदेश में सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर जाता है। हिमाचल प्रदेश निर्माण से पूर्व व पांच दशक की यात्रा में कांग्रेस पार्टी का मुख्यमंत्री हमेशा शिमला अथवा पुराने हिमाचल से बनता रहा है। छह बार के मुख्यमंत्री रहे राजा वीरभद्र सिंह कांगड़ा व विलीन क्षेत्रों की कृपा के कारण ही मुख्यमंत्री के रूप में इतनी लंबी पारी खेल पाए थे।

हालांकि उनका जिला कांगड़ा के प्रति विशेष झुकाव व प्रेम था । कांगड़ा से चुने जाने वाले कांग्रेसी नुमाइंदों ने भी स्वर्गीय राजा साहब की अगुवाई को सहर्ष स्वीकार किया था। न ही कभी राजा साहब ने कांगड़ा व हिमाचल के विलीन क्षेत्रों से कोई बेवफाई ही की। कांगड़ा जिला के बूते ही वे छः बार मुख्यमंत्री बने थे।

जिला कांगड़ा हमेशा जिला शिमला व हालीलॉज का समर्थन करता रहा है। अब वर्तमान परिस्थितियों में हालीलाज पर नैतिक दायित्व आ गया है कि राजा साहब की अनुपस्थिति में होलीलॉज कांगड़ा के नेतृत्व का समर्थन करे। बदले हालातों में हॉलीलॉज के लिए कांगड़ा का समर्थन या विलीन क्षेत्रों के प्रति एहसानमंद होने का यह उत्तम अवसर है ।

वहीं कांगड़ा को नेतृत्व देना कई मायनों में कांग्रेस के भविष्य के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। 68 विधानसभा सीटों का प्रदेश की चार लोकसभा सीटों के आधार पर अगर कांग्रेस की जीत के प्रदर्शन का अवलोकन करें तो कांगड़ा चंबा संसदीय सीट से कांग्रेस ने 17 में से 12 सीटें, हमीरपुर संसदीय सीट में 17 में से 9 सीटें, मंडी 17 में से 5 व शिमला में से करीब एक दर्जन सीटें हासिल की हैं।

इस आंकड़े में भी चंद्रकुमार कांगड़ा चम्बा संसदीय सीट से होने के नाते अन्य दावेदारों के मुकाबले अब्बल व वरीयता की स्थिति में है। दूसरे, कांग्रेस को भाजपा से भी सीख लेने की जरूरत है जिसने वर्ष 2017 में जिला मंडी से मुख्यमंत्री देकर 2022 के इन चुनावों में 10 में से 9 सीटें अपनी झोली में डाली हैं। तीसरे मायने में कांगड़ा से 10 विधायकों के साथ जीते चंद्र कुमार ओबीसी समाज के प्रमुख नेता हैं।

जिनकी ओबीसी समाज के साथ सर्व समाज में भी गहरी पकड़ है। वह कांग्रेस में न केवल वरिष्ठ हैं, 19 वर्ष तक कैबिनेट मंत्री होने का गौरव उन्हें प्राप्त है । वहीं बतौर सांसद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी व सोनिया गांधी के नेतृत्व में वे सांसद रह चुके हैं।

कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष होने के साथ-साथ चंद्र कुमार की इस बार के चुनावों में चयन समिति में टिकट आवंटन में भी अहम भूमिका रही है, इनकी सही टिकट आवंटन की नीति से ही कांगड़ा भाजपा के हाथों से निकला है और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का नेतृत्व देने वाले अध्यक्ष को अपने ही प्रदेश में मुंह की खानी पड़ी है।

चौधरी चंद्र कुमार पढ़े-लिखे और अनुभवी तो हैं ही कांगड़ा ऊना, हमीरपुर जिला के कुछ इलाकों में बड़ी तादाद में व सोलन व सिरमौर आदि जिलों के कुछ हिस्सों में बसने वाली घिरथ, बाहती व चांग समुदाय से संबंध रखते हैं। प्रदेश के ओबीसी समुदाय व समाज के हाशिए के अन्य वर्गों की आधी से अधिक आबादी के बीच में से हैं।

ऐसे में चंद्र कुमार को मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस की भावी डगर को भी मजबूत करेगा, वहीं हाशिए के समाज से मुख्यमंत्री बनाने पर देश में कांग्रेस की सोच का एक अच्छा संदेश जाएगा और सबसे बड़े जिले कांगड़ा में कांग्रेस और मजबूत होगी। स्वाभाविक रूप से भी चंद्र कुमार जीते हुए चालीस विधायकों में सबसे वरिष्ठ व अनुभवी हैं।

इसलिए कांग्रेस के रणनीतिकारों को विशेषकर होलीलॉज व केंद्रीय नेतृत्व को उमरदराज चंद्र कुमार के अनुभव व कांग्रेस के प्रति निष्ठाओं को देखते हुए और कांग्रेस के स्वर्णिम भविष्य के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए खुलकर समर्थन करना चाहिए।

ओबीसी समाज में पैठ बनाने के लिए व हाशिए के समा को सत्ता में प्रतिनिधित्व देने के लिए कांग्रेस को इस बाबत भाजपा से भी सीख लेनी चाहिए। ओबीसी समाज के जुड़ने से ही भाजपा हर जगह मजबूत हुई है। ओबीसी समाज में दस्तक देने का यह सुनहरी अवसर कांग्रेस के पास है जिसे कांग्रेस को हर हाल में भुनाना चाहिए।

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