मंडी – डॉली चौहान
अपनी अलग संसद बैठाने वाले प्राचीन गांव मलाणा गांव में 50 से 75 प्रतिशत लोग ही सरकार बनाने में योगदान करते हैं। यहां मतदान होता तो है लेकिन नियम अपने ही चलते हैं। इस ऐतिहासिक गांव में जमलू यानी जमदग्नि ऋषि का आदेश चलता है। यही कारण है कि यहां प्रशासन हर बार 100 प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को हासिल करने के लिए टीम तो भेजता है लेकिन यह लक्ष्य मलाणा की चढ़ाई में ही दम तोड़ देता है।
2017 में 57.55 प्रतिशत चुनाव
कुल्लू सदर हलके में आते मलाणा गांव में 967 मतदाता हैं। इसमें 477 पुरुष और 490 महिला मतदाता हैं। मतदान के लिए बूथ भी मलाणा में ही बनाया जाता है और पोलिंग पार्टी दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद यहां पहुंचती है। यहां पर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में भी 843 मतदाता थे। इसमें 309 पुरुष और 184 महिला मतदाताओं ने ही मतदान किया। मत प्रतिशतता 57.55 प्रतिशत रही थी।
लोकसभा चुनाव में रहा था बेहतर मत प्रतिशत
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 456 पुरुषों और 467 महिला मतदाताओं ने मतदान किया। इसी तरह 2021 के उपचुनाव में 914 मतदाताओं में से 344 पुरुष व 354 महिलाओं ने मतदान किया। इस दौरान मत प्रतिशतता 75.62 प्रतिशत आंकी गई थी।
जागरूक हो रहे लोग
एसडीएम कुल्लू विकास शुक्ला कहते हैं कि समय के साथ गांव में बदलाव भी आया है और शिक्षा के कारण लोग जागरूक हुए हैं। उम्मीद है इस बार मत प्रतिशतता पहले से अधिक होगी।
क्यों खास है मलाणा
मलाणा गांव कुल्लू सदर के पार्वती घाटी में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए दो किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ता। गांव में प्रवेश करने के लिए पहले जमदग्नि ऋषि की मंजूरी लेनी पड़ती है। गांव में चमड़े के जूते या बेल्ट पहनना वर्जित है। लोग धूमपान या शराब नहीं पी सकते। मंदिर से जुड़ी वस्तुओं को छू नहीं सकते। यहां के लोगों को सिकंदर का वंशज माना जाता है और इनके अपने रीति रिवाज, नियम व कानून हैं। यह गांव चरस के लिए भी कुख्यात है।
गांव में बैठती है संसद, बकरे की मौत से होता है न्याय
मलाणा गांव में अपनी संसद बैठती है। इसके दो सदन हैं। पहले को ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और कनिष्ठांग (निचला सदन) कहा जाता है। ज्येष्ठांग में 11 सदस्य होते हैं। इनमें तीन सदस्य कारदार, गूर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं। शेष को ग्रामीण ही चुनते हैं। कनिष्ठांग में हर घर से एक सदस्य होता है।
यह संसद ही गांव के विवादों और कानूनी मामलों को हल करती है। अगर यहां फैसला न हो तो ऋषि जमदग्नि के पास मामला जाता है। दोनों पक्षों से बकरे मांगे जाते हैं और उनको जहर दिया जाता है। जिसका बकरा पहले मर जाता, वह दोषी माना जाता है।
ऐसे बसा मलाणा गांव
मलाणा गांव कब बसा, इसका कोई पुख्ता तथ्य नहीं है लेकिन यहां के लोग खुद को सिंकदर के वंशज कहते हैं। मान्यता ऐसी है कि जब सिंकदर ने भारत पर आक्रमण किया था तो उसके कुछ सैनिक यहां रह गए, जो मलाणा में जा बसे। इनके नियम प्राचीनकाल में बने थे, जो यहां का लोकतंत्र ही बन गए। सरकार के नियमों को अधिक मान्यता यहां नहीं है।