16 अप्रैल को आठवे नवरात्रि पर पढ़े मां बाला सुंदरी मंदिर से जुड़ा इतिहास व मान्यताएं
हिमखबर डेस्क
आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है यानी आज मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। ग्रह बाधा व भय दूर करने के लिए माता की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन देवी की पूजा से रोग का नाश होता है व शत्रुओं पर विजय मिलती है।
मां के चार हाथ हैं एक में खड्ग व तलवार, दूसरे में लौह अस्त्र, तीसरे हाथ में अभय मुद्रा व चौथा वरमुद्रा में है। माता कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों पर मां दुर्गा की विशेष कृपा बनी रहती है।
तो आइए माता कालरात्रि का नाम लेकर आपको माता भंगायणी मंदिर की और ले चले।
जानिए क्या है मां भंगायणी मंदिर का इतिहास
भंगायणी माता मंदिर हिमाचल के सिरमौर जिला के गिरिपार इलाके में स्थित है। मां भंगायणी देवी को सिरमौर जिले की सबसे शक्तिशाली देवी के रूप में जाना जाता है।
सिरमौर के जिला मुख्यालय नाहन से मंदिर लगभग 100 किलोमीटर दूर हरिपुरधार नामक एक छोटे से कस्बे में स्थित है। रियासत काल में सिरमौर रियासत के महाराज हरि प्रकाश द्वारा हरिपुर किला का निर्माण करवाया गया था।
कस्बे से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर दुख हरने वाली देवी मां भंगायणी साक्षात रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि इस शक्ति स्वरूपा देवी का मात्र नाम लेने से ही मनोवांछित फल मिलता हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी होती हैं।
नवरात्रों तथा संक्रांति के दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हरिपुरधार मार्ग के चारों ओर बान,देवदार व बुरांस के हरे-भरे घने जंगल मंदिर की शोभा को बढ़ाते है।
गर्मियों के मौसम में लाल बुरांस के फूलों से लदे वृक्षों का विहंगम दृश्य अनूठे आनंद की अनुभूति देता है। पूर्व दिशा में चूड़धार की ऊंची हिमाच्छादित चोटियां व बहते झरने स्वर्गानुभूति प्रदान करती है।
जानिए क्या है माता की उत्पत्ति की कथा
मां भंगायणी मंदिर का इतिहास चूड़ेश्वर महादेव (चूड़धार) से जुड़ा हुआ है। इतिहास बताता है कि माता भंगायणी के आशीर्वाद की मदद से शिरगुल महादेव को एक मुगल राजा की कैद से बचाया गया था।
इस घटना के बाद चूड़ेश्वर महादेव ने माता भंगायणी को अपनी धर्म बहन के रूप में माना और कहा कि जो भी मेरी यात्रा पर आएगा तेरे दर्शन के बिना उसकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी।
मां भंगायणी मंदिर हरिपुरधार में शिवालिक पर्वतमाला की तलहटी में स्थित है जो हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले की सीमा पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
मान्यता यह भी है कि सिरमौर स्टेट गजेटियर के अनुसार भंगायणी देवी के मन्दिर के स्थान पर एक ऊंचा-सा पत्थर था। जहां गांव डसांकना तथा टिकरी गांव के ग्वाले गाय तथा बकरियां चराने जाते थे।
कौतूहल वंश ग्वालों ने पत्थर तोड़ दिया, लेकिन जब वे दूसरे दिन गए तो यह देखकर हैरान हुए कि तोड़ा गया पत्थर अपनी पहली अवस्था में था। दूसरे दिन भी पहले दिन वाली घटना की पुनरावृत्ति देखकर लोगों को हैरानी हुई।
तब देवी ने लोगों को सपने में दर्शन दिए और कहा कि मैं इस पत्थर में विराजमान हूं यहां मेरा मंदिर बनाओ मैं तुम्हारे वंश की रक्षा करूंगी। जिसके बाद यहां मंदिर का निर्माण करवाया गया, जिसके पुजारी भाट थे।
माता की मूर्ति पत्थर की है जिसे वस्त्र नहीं पहनाए जाते। माता भंगायणी देवी को धारों वाली माता के नाम से भी जाना जाता है।
दूर-दूर से लोग माता के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते है। भूमि, विवाद, आपसी दोष व झगड़ों के निपटारे में देवी की सहायता ली जाती है। अपार शक्ति व तत्काल दंड देने के कारण माता की दूर-दूर तक मान्यता है।
किसी कारणवश यदि देवी माता कुपित हो जाए तो उन्हें मनाने व दोष निवारण के लिए तत्काल शिरगुल देवता की शरण लेनी पड़ती है।