आयुर्वेदिक डॉक्टर पति की मौत के बाद नहीं मिली थी पेंशन; पहले ट्रिब्यूनल, फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी जंग
शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल के सरकारी कर्मचारियों को कांट्रैक्ट अवधि की पेंशन दिलाने की लड़ाई एक विधवा महिला ने लड़ी है। पिछले दिन राज्य सरकार ने इस बारे में जो कार्यालय आदेश जारी किया, उसके पीछे 13 साल लंबा कोर्ट केस है, जो ट्रिब्यूनल से हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक चला।
इस लड़ाई को लडऩे वाली घुमारवीं जिला बिलासपुर के अमरपुर गांव की रहने वाली शीला देवी हैं। शीला देवी के पति डा. प्रकाश चंद ठाकुर वर्ष 2000 में अनुबंध पर आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी नियुक्त हुए थे। आठ साल से ज्यादा का कांट्रैक्ट पीरियड लगाने के बाद 2008-09 में वह रेगुलर हुए।
23 जनवरी, 2011 को कंदरौर में पोस्टिंग के दौरान हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। विभाग ने डीसीआरजी के 39 हजार मिलाकर करीब 1.40 लाख दिए। यदि कुछ राशि नहीं निकालते, तो एनपीएस में 800 रुपए पेंशन लगनी थी।यानी 11 साल की सर्विस के बाद भी पेंशन नहीं मिली।
स्व. डा. प्रकाश चंद ठाकुर की पत्नी शीला देवी ने अगस्त, 2011 में हाई कोर्ट में केस दर्ज किया, लेकिन उसके बाद एकदम ट्रिब्यूनल बन गया। 2016 में ट्रिब्यूनल ने सभी तरह के रिटायरल बेनिफिट देने का फैसला सुनाते हुए परिवार को कुछ राहत दी। परिवार ने फेमिली पेंशन के लिए यह केस नहीं किया था, इसलिए हार नहीं मानी।
सरकार बदलने के कारण ट्रिब्यूनल बंद हो गया और मामला वापस हाई कोर्ट आ गया। हाई कोर्ट में लंबी लड़ाई के बाद न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने यह फैसला दिया कि राज्य सरकार बैड बिजनेस प्रैक्टिसेज नहीं अपना सकती।
नवंबर 2018 में इसी जजमेंट में अनुबंध की अवधि को पेंशन के लिए काउंट करने को कहा। तब राज्य सरकार ने एक साल तक इस मामले में कुछ नहीं किया और जब शीला देवी की तरफ से जुलाई, 2019 में अवमानना की याचिका दायर की गई, तो सरकार ने हाई कोर्ट में जवाब दिया कि यह पॉलिसी डिसीजन है और फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में भी लंबी लड़ाई के बाद सात अगस्त 2023 को हाई कोर्ट के फैसले को सही कराया गया। इसके बाद वर्तमान सरकार के समय भी रिव्यू पिटीशन दायर की गई और मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी ने आयुर्वेद विभाग को दोबारा सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया के पास जाने को कहा।
लेकिन रिव्यू पिटीशन खारिज हो गई और पटवालिया ने भी राज्य सरकार को सुझाव दिया कि अब कोई चारा नहीं है। इस पूरीलड़ाई में किसी कर्मचारी यूनियन या संगठन का साथ इस परिवार को नहीं मिला।
यह कहना है याचिकाकर्ता शीला देवी का
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि अब सभी कर्मचारियों को यह लाभ मिलेगा। उन्होंने तो अपने परिवार की स्थिति के अनुसार इस अन्याय के खिलाफ कोर्ट जाने का निर्णय लिया था। अब शीला देवी के बेटे डेंटल कॉलेज शिमला में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट में एडवोकेट अश्वनी गुप्ता और सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट एमसी ढींगरा ने इस केस को हल करवाने में बहुत मेहनत की है।