कांगड़ा – राजीव जसवाल
मेडिकल कॉलेज टांडा से किडनी विभाग के हेड व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राकेश चौहान, सुपरिटेंडेंट मेडिकल कॉलेज टांडा डॉक्टर मोहन सिंह और ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर अंकेश चौधरी ने आज विशाल सुपुत्र हरवंस निवासी हटवास जिसके एक्सीडेंट में ब्रेन डेड होने के उपरांत परिवार द्वारा अंगदान के लिए सहमति जताई गई और उसके उपरांत उसके अंग मेडिकल कॉलेज टांडा में पहली बार निकालकर पीजीआई चंडीगढ़ में किसी दूसरे व्यक्ति को लगाए गए उसके घर जाकर परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की और उस दिव्य आत्मा को ईश्वर के चरणों में जगह मिले ऐसी प्रार्थना की।
उन्होंने विशाल के परिवारजनों को नीम का पौधा भेंट स्वरूप दिया जिसे परिवार द्वारा विशाल की याद में वहां पर स्थापित किया गया। टांडा की इस टीम ने परिवार जनों का अंगदान करने के इस महान पुण्य कार्य लिए आभार व्यक्त किया।
साथ ही आज मेडिकल कॉलेज टांडा प्रशासन द्वारा ब्रेन डेड व्यक्ति के हिमाचल में पहली बार सफल ऑर्गन निकाले जाने पर प्रशासन ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज टांडा भानु अवस्थी द्वारा की गई और मौके पर किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के हेड और एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राकेश चौहान भी मौजूद रहे, जिन्होंने हिमाचल में पहली बार ऑर्गन निकालने का कार्य किया।
कॉन्फ्रेंस दौरान सर्वप्रथम प्रिंसिपल भानु अवस्थी ने उस परिवार के प्रति संवेदनाएं और उस दिव्य आत्मा को नमन किया जिसके अंग निकाले गए जिसका नाम विशाल सुपुत्र हरवंस हटवास निवासी है।
प्रिंसिपल भानु अवस्थी ने बताया कि डॉ राकेश चौहान के प्रयासों के कारण मेडिकल कॉलेज टांडा को यह उपलब्धि प्राप्त हुई है और उन्होंने कहा इसमें सरकार और प्रशासन का पूरा सहयोग रहा।
उन्होंने बताया कि 2021 में हमें 5 वर्ष के लिए इसकी रजिस्ट्रेशन प्राप्त हुई है और हमने इस दिशा में पहला कदम पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा हमारा प्रयास है कि आगे अंग लगाने का कार्य भी टांडा में किया जाए इस पर कार्य किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस कार्य के टांडा में हो पाने का हिमाचल प्रदेश सरकार को पूरा श्रेय जाता है। सरकार ने इस कार्य को यहां हो पाने के लिए पूरा सहयोग दिया। उन्होंने इसे सरकार की सफलता भी बताया।
उन्होंने कहा कि समाज को अंगदान के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है क्योंकि पूरे भारतवर्ष में लाखों की संख्या में एक्सीडेंट होते हैं। और बहुत से ऐसे केस होते हैं जिनका ब्रेनडेड पाया जाता है।
इसलिए यदि लोग इस बात के लिए जागरूक हो जाएं तो उनके अंगों को किसी ऐसे मरीज को ट्रांसफर किया जा सकता है जो किसी हस्पताल में इन अंगों के अभाव के कारण दयनीय हालत में है।
किडनी ट्रांसप्लांट हेड और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ चौहान ने बताया कि किडनी अंग निकालने की प्रक्रिया उसी व्यक्ति पर की जाती है जिसका ब्रेन डेड हो। इसमें सबसे जरूरी ब्रेन डेड व्यक्ति के परिवार की सहमति है। बिना सहमति के इस कार्य को कभी नहीं किया जाता है।
उन्होंने बताया किडनी निकालने के बाद उसे लगभग 12 से 24 घंटे के अंदर दूसरे शरीर में लगाना जरूरी है।
उन्होंने बताया विशाल सुपुत्र श्री हरबंस हटवास निवासी के शरीर से निकाली गई किडनी पीजीआई चंडीगढ़ में दूसरे व्यक्ति को लगा दी गई है और वह व्यक्ति अब रिकवर कर रहा है।
इस मौके पर प्रिंसिपल भानु अवस्थी सहित डॉ राकेश चौहान, अधिकारी व डॉक्टर मौजूद रहे।