हिमखबर- डेस्क
आज तेजी से बदलती दुनिया में हर वर्ग के लिए परिभाषाएं भी बदल रही हैं। एक तरफ जहां महिलाएं सशक्त हो रही हैं, वहीं पुरुषों की भी छवि समाज में बदलती जा रही है। कुछ वर्ष पूर्व की बात करें तो पुरुषों को लेकर समाज में ढेरों रुढ़िवादी विचार थे, जिनमें अब तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। आज International Men’s Day के इस अवसर पर हम इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर कुछ बात करेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस हर वर्ष 19 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन पुरुषों द्वारा देश, समाज व परिवार में किए गए उनके योगदान को याद करने का दिन है। साथ ही पुरुषों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य व उनसे जुड़ी भ्रांतियों पर भी चर्चा करने का दिन है।
‘बॉलीवुड फिल्म की मशहूर लाइन तो हम सभी ने सुनी होगी– “मर्द को दर्द नहीं होता” या फिर जब कोई पुरुष रोता है तो ‘मर्द बनो और रोना बंद करो’ जैसी बातें बोली जाती हैं। पिछले कई सालों से पुरुषों की समाज में संघर्षशील व कठोर छवि को प्रस्तुत किया गया है। लेकिन मर्द या पुरुष हैं कौन? जो घोड़े दौड़ाता है, शिकार करता है, या फिर जो अच्छे सूट में, चमचमाती कार में ऑफिस जाता है और घर पर भी अपनी तारीफ ही सुनना चाहता है।
असल में पिछले कुछ वर्षों में मर्द की परिभाषा में एक उदारवादी बदलाव देखने को भी मिला है। अब पुरुष या मर्द वो नहीं जो हमें फिल्में बताती हैं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा वो है जो जिम्मेदारी उठाता है, जो सिर्फ चमकदार जूते ही नहीं समाज व देश को भी चमकदार बनाने के लिए आगे आता है। जो सिर्फ महंगी गाड़ियां नहीं दौड़ाता बल्कि अपने परिवार को साथ लेकर आगे बढ़ता है।
ऐसा करते समय वो अनेक बाधाओं से तो लड़ता है लेकिन साथ में यह भी सुनिश्चित करता है कि उनके बाद किसी को भी इन बाधाओं से होकर न गुजरना पड़े। अपनी सभी जिम्मेदारियों को उठाते हुए एक पुरुष यह भी सुनिश्चित करता है कि उसकी वजह से किसी को कोई भेदभाव न झेलना पड़े। वह जेंडर इक्वलिटी के लिए अपनी आवाज बुलंद करता है।
आज का पुरुष ब्रांडेड सूट नहीं टी–शर्ट में भी ऑफिस जाता है और अपने साथ अपनी टीम को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है। जो सफलता में पीछे खड़ा रहता है लेकिन असफलताओं के मौक़े पर आगे आकर जिम्मेदारी लेता है। आज बदलते वक्त के साथ कई युवा इन जिम्मेदारियों को उठा रहे हैं और अपनी काबिलीयत व जुनून से यह साबित भी कर रहे हैं।
आज का पुरुष सिर्फ खुद को नहीं बल्कि महिलाओं के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ता है। वह यह सुनिश्चित कर रहा है कि उन्हें भी आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें व उन्हें किसी भी भेदभाव का सामना न करना पड़े। यह परिवर्तन आज सभी इंडस्ट्री जैसे मीडिया, हॉस्पिटैलिटी, बैंकिंग आदि में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, जहां महिलाएं शीर्ष पदों पर काम कर रही हैं। सिर्फ यही नहीं पुरुषों को अब महिलाओं के नेतृत्व में कार्य करने में भी झिझक नहीं महसूस होती।
ऐसे में यह हर वर्ग की जिम्मेदारी है कि पुरुषों से जुड़े किसी भी रुढ़िवादी विचार को नजरअंदाज कर उनकी बातें भी सुनी जाएं। पुरुषों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए। समाज रुपी सिस्टम के सही से चलने के लिए यह बेहद जरूरी है कि उसके सभी भाग अच्छे से चलें, फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष या कोई अन्य वर्ग। उन्हें किसी भी भेदभाव का सामना न करना पड़े। इस International Men’s Day पर हमारी यही जिम्मेदारी होनी चाहिए।
इस International Men’s Day के मौके पर हम उन सभी पुरुषों को सैल्यूट करते हैं जिन्होंने समाज के इस बदलाव को स्वीकार किया व सभी वर्गों के लिए इसे बेहतर करने की जिम्मेदारी ली। इस बदलती हुई सोच पर आपके क्या विचार हैं? क्या पुरुषों की छवि में बदलाव हो रहा है? International Men’s Day के मौके पर आप बताएं कि पुरुषों की छवि में व समाज में क्या बदलाव हो रहा है।