हिमखबर डेस्क
यह कहानी इंसानियत और सामाजिक उदासीनता के बीच के अंतर को दर्शाती है। शहर के बीचों-बीच, एक वृद्ध महिला का जीवन दुखद और दर्दनाक हालात में गुज़र रहा था। 70 वर्षीय नेत्रहीन कौशल देवी की आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुंची, आखिरकार भूख और प्यास से संघर्ष करते-करते संसार को अलविदा कह गईं।
दो दिनों तक उनका शव शवगृह में पड़ा रहा। रिश्तेदारों का कोई अता-पता नहीं था। पुलिस ने अंततः नया बाजार के रिश्तेदारों की तलाश की, तब जाकर दो दिन बाद उनका अंतिम संस्कार हो पाया। इस दुखद घटना में भी एक मानवीय पहलू छिपा था।
करीब 12 दिन पहले, आस्था वेलफेयर सोसाइटी को सूचना मिली कि एक महिला को खाने के लिए तरसना पड़ रहा है। तत्परता से सोसाइटी ने वृद्धा के लिए निःशुल्क टिफिन सेवा शुरू की। पर यह सुनिश्चित करना ज़रूरी था कि खाना सही व्यक्ति तक पहुंच रहा है या नहीं।
इसी बात को लेकर सोसाइटी ने शैलजा को वृद्धा के घर भेजा वो हालात देखकर स्तब्ध रह गईं। यह घर शहर के एक प्रमुख क्षेत्र में स्थित था, लेकिन अंदर की हालत इतनी अमानवीय थी कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह जगह बेहद मैली थी।
आस्था वेलफेयर सोसाइटी की समन्वयक रूचि कोटिया को जैसे ही इस बारे में जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत विशेष स्कूल के बच्चों, संजू और शुभम, को कर्मी जस्सो देवी की निगरानी में घर की सफाई करवाई। सोसाइटी की अन्य सदस्य, ऋतांजलि और अर्चना, ने भी वृद्ध महिला की देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी।
लेकिन दुर्भाग्य से महिला की हालत बिगड़ती चली गई और सोसाइटी के वॉलंटियर्स उन्हें अस्पताल ले गए, जहां चंद रोज पहले उनका निधन हो गया। उल्लेखनीय है कि महिला अपने मायके के घर में एकल जीवन व्यतीत कर रही थी। इस घटना ने समाज के कई सवालों को उजागर किया। महिला की बहन मंडी में रहती थी, लेकिन वह आने में असमर्थ थीं।
शायद महिला का आधार कार्ड भी नहीं बना था, जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया। वहीं, सोसाइटी के प्रयासों ने यह साबित कर दिया कि आज भी समाज में मानवता जीवित है। पर सवाल यह भी उठता है कि शहर के जन प्रतिनिधियों को इस महिला की हालत का पता क्यों नहीं चला? क्या वे जानबूझकर अनजान बने रहे, या फिर वास्तव में वे इस दुखद परिस्थिति से अनभिज्ञ थे?
इस दुखद घटना ने यह भी दिखाया कि कैसे हम अक्सर अपने आस-पास हो रहे अन्याय और दर्द को नजरअंदाज कर देते हैं। हालांकि, आस्था वेलफेयर सोसाइटी के प्रयासों ने यह साबित किया कि समाज में आज भी मानवता जीवित है, परंतु इस घटना ने यह भी दिखाया कि हमारे आस-पास कई ऐसे लोग हैं जिन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है।
शहर के बीचों-बीच ऐसी दर्दनाक घटना की कल्पना करना भी कठिन है। जहां महिला का घर था, वहां से मात्र 200-300 मीटर की दूरी पर एसडीएम का आवास था। अगर समय रहते सही जानकारी अधिकारियों तक पहुंचती, तो शायद कौशल देवी की जीवन के अंतिम क्षण कम कष्टमय होते।
अगर आपके आस-पास भी कोई बुजुर्ग, विशेषकर नेत्रहीन या असहाय स्थिति में हो, तो कृपया आस्था वेलफेयर सोसाइटी या किसी अन्य समाजसेवी संस्था को इसकी सूचना दें। एक छोटी सी मदद किसी की जिंदगी बचा सकती है।