कांगड़ा – आचार्य अमित शर्मा
भीष्म पंचक का समय कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है और कर्तिक पूर्णिमा तक चलता है. पूरे पांच दिन चलने वाले इस पंचक कार्य में स्नान और दान का बहुत ही शुभ महत्व होता है. धार्मिक मान्यता अनुसार भीष्म पंचक के समय व्रत करने भी विधान बताया जाता है.
भीष्म पंचक का यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यों की वृद्धि करने वाला होता है. जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इन पांच दिनों का व्रत एवं पूजा पाठ दान कार्य करता है, वह व्यक्ति मोक्ष को पाने का अधिकारी बनता है.
2022 में भीष्म पंचक कब है
भीष्म पंचक आरंभ – 04 नवम्बर 2022, दिन शुक्रवार से
भीष्म पंचक समाप्त – 08 नवम्बर 2022, दिन मंगलवार पर
भीष्म पंचक के पांच दिनों को हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व दिया गया है. पौराणिक मान्यताओं और आख्यानों के आधार पर, कार्तिक माह में आने वाले भीष्म पंचक व्रत का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है. इस पर्व को पंच भीखू नाम से भी जाना जाता है. कार्तिक स्नान करने के पश्चात इस व्रत का आरंभ होता है. कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को विधि विधान के साथ करते हैं.
भीष्म पंचक – पंच भीखू कथा
प्राचीन समय की बात है. एक बहुत ही सुंदर गांव था जहां एक साहूकार अपने बच्चों के साथ रहा करता था. साहुकार के एक बेटा था और उसकी बहू भी थे. साहुकार की बहु बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह नियम पूर्वक पूजा पाठ और सभी धार्मिक कार्य किया करती थी. जब कार्तिक मास आता था तो उस माह के भी पूरे नियम करती थी. वह स्त्री कार्तिक मास में रोज सुबह उठ कर गंगा स्नान के लिए जाया करती थी.
उसी गांव के राजा का बेटा भी गंगा स्नान किया करता था. एक बार राजा के बेटे ने देखा कि कोई व्यक्ति है जो उससे भी पहले उठ कर गंगा स्नान के लिए जाता है. उस लड़के के मन में ये बात जानने कि इच्छा हुई की वो कौन है जो उससे भी पहले गंगा स्नान करता है. राजा के बेटे को पता नहीं चल पाता की वह कौन व्यक्ति है जो गंगा स्नान कर लेता है. कार्तिक माह समाप्त होने में पांच दिन ही शेष रहे होते हैं.
साहूकार की बहू जब स्नान करके जा रही थी उसी समय राजा का बेटा गंगा स्नान के लिए आ रहा होता है. बहु आहट सुन कर जल्दी-जल्दी चलने लगती है. जल्दबाजी में उसकी माला मोजड़ी (पायल) वहीं मार्ग में छूट जाती है. राजा के बेटे को उसकी माला मोजड़ी(पायल) दिखती है और वह उसे उठा लेता है.
वह मन ही मन सोचने लगता है की जिस स्त्री की यह माला मोजड़ी इतनी सुंदर है, वह स्त्री खुद कितनी सुंदर होगी. वह गांव में यह बात फैला देता है की जिसकी भी माला मोजड़ी उसे प्रात:काल में मिली थी वह स्त्री उसके सामने आए.
साहूकार के बेटे की बहू ने कहलवा दिया कि मैं ही वह स्त्री थी. मैं पूरे पांच दिन गंगा स्नान के लिए आउंगी. अगर तुम मुझे देख पाए तो मै तुम्हारे साथ रहने आ जाउंगी. राजा के बेटे ने उस स्त्री से मिलने के लिए एक तोते को पिंजरे में बंद कर गंगा किनारे रख दिया, ताकि जब वह स्त्री आए तो तोता उसे बता दे.
साहुकार की बहू सुबह के समय गंगा स्नान के लिए पहुंच जाती है. वह भगवान से प्रार्थना करती है की वह उसके सतीत्व की लाज रखे. राजा का बेटा न उठ पाए और मै गंगा स्नान करके जा सकूं. भगवान उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हैं और राजा का बेटा सोता रह जाता है.
बहु नहा-धोकर जब चलने लगती है तो तोते से बोलती है की तू मेरी लाज रखना. तोता उसकी प्रार्थना सुन कर कहता है, ठीक है मैं तेरी लाज रखूंगा. राजा का बेटा उठता है और वहां किसी को न पाकर तोते से पूछता है की कोई स्त्री यहां आई थी. तोता उसे इंकार कर देता है.
अगले दिन राजा के बेटे ने सोचा कि आज मैं किसी भी हाल में नहीं सोउंगा. वह अपनी उंगुली काट लेता है. दर्द से उसे नींद नहीं आती है. वह स्त्री आती है और भगवान से उसी तरह प्रार्थना करने लगी और राजकुमार को फिर नींद आ गई. वह स्नान कर के फिर से चली जाती है.
सुबह जब राजकुमार की नींद खुलती है तो वह तोते से फिर पूछता है. तोता इंकार कर देता है. अब राजकुमार ने सोचा की आज वह अपनी आंखों में मिर्च डाल देगा जिससे उसे नींद नहीं आएगी. वह अपनी आंखों में मिर्ची डालकर बैठ जाता है. स्त्री फिर आती है और प्रार्थना करती है जिससे राजकुमार को फिर से नींद आ जाती है.
राजकुमार ने तोते से बहू के आने की बात पूछी उसने फिर मना कर दिया. राजकुमार अब फिर सोचने लगा कि आज मैं बिना बिस्तर के ही बैठूंगा जिससे नींद नहीं आएगी. वह बिना बिस्तर के बैठ जाता है और इंतजार करने लगता है. वह स्त्री आती है, गंगा स्नान करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करती है. राजकुमार को नींद आ जाती है. वह नहाकर चली जाती है. राजकुमार जब उठा तो वह जा चुकी होती है.
राजकुमार अगले दिन अंगीठी के पास बैठ जाता है जिससे उसे नीम्द नहीं आती है. साहूकार की बहू आती है और भगवान से प्रार्थना करते हुए कह्ती है “ भगवान आपके कारण मेरा चार दिन कार्तिक स्नान हो पाया है. अब आज आखिरी दिन भी मेरे स्नान को पूर्ण करवा दिजिए”. भगवान ने उसकी बात रख ली और राजकुमार को नींद आ गई. साहुकार की बहु जब वह नहाकर जाने लगी तो तोते से बोली कि इससे कहना मैने पांच दिन पूरे कर लिए हैं मेरी मोजडी़ मुझे भिजवा दे.
राजकुमार उठता है तो तोता उसे सारी बात बता देता है. राजा के पुत्र को समझ आया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है और वह मन में बहुत दुखी होता है. कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है. राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है.
ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तभी उसका कोढ़ ठीक हो सकता है. राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है. इस प्रकार जो भी व्यक्ति श्रद्धा और सात्विक भाव के साथ इन पांच दिनों तक स्नान और पूजा पाठ करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.