ज्वाली – शिवू ठाकुर
बाबा शिब्बो गौगावीर के परम प्रिय शिष्य है। जिन पर गोगावीर की कृपा सदैव रहती है। शिब्बो थान गौगावीर का एक मात्र ऐसा मन्दिर है जो उनके भक्त शिब्बो के नाम पर है, यहां जहरवीर की पूजा बाबा शिब्बो के नाम से होती है।
हिमाचल प्रदेष देवभूमि है, हिमाचल प्रदेष में सबसें प्राचीन एवं श्रद्धा व आस्था के प्रतीक अनगिनत चमत्कारी स्थान एवं देवी देवताओं के मन्दिर है, जो प्राकृतिक दैविक एव दिव्य सम्प्रदा से सुषोभित हैं जहां श्रद्धालु नतमस्तक होकर दैविक शन्ति को प्राप्त करते हैं। हिमाचल प्रदेष में कुछेक ऐसे सुप्रसिद्ध नाग मन्दिर है, जहां जंगली व विषैले सर्पो के विष का निवारण होता है। इसमें सिद्ध बाबा शिब्बो थान का अपना अलग महत्व है।
विशेष रूप से सिद्ध वावा शिब्बो थान का मन्दिर पठानकोट से 40 कि.मीटर व ज्वालीमुखी से 60 किलो मीटर , कांगडा से 65 किलोमीटर व गगल एयरर्पोट से 45 किलोमीटर व पौंग बांध से 38 किलोमीटर दूर भरमाड – रैहन सर्म्पक मार्ग के किनारे एवं कांगडा घाटी रेलवे मार्ग के स्टेशन भरमाड से 150 मीटर की दूरी पर जिला कांगडा की ज्वाली तहसील के गांव भरमाड में स्थित है।
भारत में सिद्ध बाबा शिब्बो थान एक मात्र ऐसा जहरवीर गोगा का स्थान है, जहां उनकी आराधना बाबा शिब्बोथान के नाम से होती है। महन्त हेम राज, महन्त रविन्द्र नाथ भोला ने मन्दिर के प्राचीन इतिहास की जानकारी देते हुए बताया की वावा शिब्बो जी का जन्म 1244 लगभग ंसिद्धपुरघाड नामक स्थान पर हुआ। इनके दो भाई व एक छोटी वहन षिव्वा थी।
बाबा शिब्बो वचपन से अपंग थे और सदा भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। इनकी बहन षिव्वा का रिस्ता नजदीक गांव में तय हुआ लेकिन विवाह से पूर्व इनकी वहन के मंगतेर की अचानक मौत हो गई। तभी इनकी वहन षिव्वा ने सोलहा सिंगार करके अपने पति के साथ सती हो गई। आज भी सिद्ध पुर घाड में माता षिव्वा देवी का मन्दिर बना हुआ है।
मगंल कार्य के उपरान्त लोग कुल देवी के मन्दिर में जाकर अपनी मनत चढाते है। वहन के सती होने के वाद शिब्बो के मन में वैराग पैदा हो गया, वचपन से उन्हे पूर्व जन्म का ज्ञान था। अव उनकी तपस्य का समय आ चुका था। उन्होने रात के समय अपना घर का त्याग कर भरमाड के घने जंगलों में आ गए।
रात के समय घनघोर जंगल में उन्हे शिव लिंग आकार का शक्ति पंुज दिखाई दिया, शिब्बो जी वहीं तपस्य करने बैठ गए और अपने ईष्ट देव के ध्यान में लीन हो गए। शक्ति पुंज के पास बैठ कर वावा शिव्वो ने कई साल तक तप किया। तपस्या का प्रभाव तीनों लोकांे में फैल गया।
बाबा शिब्बो घोर तपस्य से भगवान शिव प्रसन्न हो गए। तभी शिव ने गोगावीर का रूप धारण कर शिव मानव लील करते हुए अपनी मंडली के साथ आकाष पर विचरण करने लगे। तत्काल एक दम उनका नील अश्व वाहन रूक गया बार बार प्रयत्न करने पर अष्व टस से मस नही हो रहा था।
जव जहरवीर ने अपने दिव्य दष्टि से देखा कि वामी के बीच से ओंम जहरवीराय नमः की ध्वनी गुजयमान है। उनका भक्त शिव लिंग के पास उनकी तपस्य में लीन है और भक्ति का प्रकाश पुज उनके चारों और फैला हुआ है । सभी देव गण वडे हर्षित हुए और फूलो की बिछौर करने लगे।
अपने भक्त की मनोकामना की पूर्ति के लिए जहरवीर अपनी देव मंडली सहित आकाश से धरती पर उतरे और वावा शिब्बो को पुकारा ,भक्त मेैं तेरी तपस्य के वशभूत होकर तूझे मनचाहा वरदान देने आया हूं जो मन में इन्छा है वर मांगो। अपने इष्टदेव को सन्मुख पाकर वावा शिब्बो जी भक्ति के समुंदर में गोते खाने लगे जहरवीर ने प्रेम विभोर होते हुए बाबा जी को गले से लगाया।
उसी समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और देवी देवता धन्या घन्या कहकर पुकारने लगे। इस दृृष्य को देख कर देवी देवता पुलकित व आन्नदित हुए । ज्यांे ही जहरवीर के चरणों को बाबा शिब्बो ने स्पर्ष किया त्ंयो ही वह अपंगपन से मुक्त हो गए और 12 साल की आयु को प्राप्त हो गए। तब वावा शिब्बो ने जहरवीर से कहा कि आप मेरे साथ चारपासा खेले यह मेरी अभिलाषा है।
तभी बाबा शिब्बो और जहर वीर आपस में चारपासा खेलने लगे और भगवान शंकर निणर्यक बने। इस खेल में 12 वर्ष तक न भक्त हारा न भगवान हारा। तभी जहर वीर ने नर लीला करते हुए वावा शिब्बो को भूख से अति व्याकुल कर दिया। वावा शिब्बो ने जहरवीर से आज्ञ मांगी वह घर जाकर भोजन करके वापिस आयेगा।
जब बाबा शिब्बो घर में पंहुचे तो माता अपने पुत्र को देख कर पुलकित हो उठी और दुलार करने लगी। शिब्बो ने कहा कि माता मुझे भूख ने व्याकुल कर दिया भोजन करने की इच्छा है। जब माता शिब्बो को भोजन कराने लगी तो मातृ प्रेम के सागर में माता के प्रेम को देखकर बाबा शिब्बो सारा भोजन खा गए।
जब माता को सुध आई तो चिंता करने लगी की मै तत्काल भोजन कैसे बनाउंगी माता को चिंता के सागर में डूबे देखकर शिब्बो ने कहा कि माता आप चिंता छोड़ सभी वर्तनों साफ करके सफेद बस्त्र से ढांप दो माता बैसे ही किया और पुनः सभी बर्तन यथावत हो गए।
जब पिता जी घर को भोजन लेने के लिए जा रहे थेे और शिब्बो वापिस खेल स्थान को जा रहे थे तो रास्ते में पिता पुत्र का मिलन हुआ रास्ते में पिता आलम देव मिले आलम देव ने कहा कि आसमान पर बादल है फसल कटी हुई है जाकर लयोड की बेलें ले आ फसल को बांध कर एक स्थान पर सुरक्षित रख देगें।
पिता की आज्ञ मानकर शिब्बो लसोड़ की वेले जंगल से ले आए और खेत में रखदी ं बाबा के स्पर्ष से सभी बेले सर्पो में बदल गई । माता पिता दोनो को चमत्कार दिखाकर वावा षिब्वो पुनः खेल स्थान पर आ गए । तभी जहरवीर गोगा ने कहा कि हे मेरे परम प्रिय भक्त शिब्बो अव मेै पूर्ण रूप से तेरी भक्ति के अधिन हूं जो चाहे वही वर मांग । तव वावा जी ने तीन वरदान मांगे
सर्वव्याधि विनाष्नम अर्थात मेरे दरवार आने वाले हर प्राणी जहर व व्याधि से मुक्त हो । जाहरवीर ने कहा कि तूने जगत कल्याण के लिए वरदान मांगा है । तेरे परिवार का काई भी पुरूष अपने हाथ से तीन चरणमृत की चूली किसी भी प्राणी को पिलायेगा तो वह जहर मुक्त हो जायेगा ।
2 जो मेरे दरवार पर नही आ सकता उसका क्या उपचार होगा । जिस स्थान पर बैठ का तूने मेरे साथ चारपासा खेला है उस स्थान की मिटटी को पुजारियो द्धारा वताई गई विधि अनुसार जो भी प्रयोग करेगा वह भी देष- विदेष में जहर से मुक्त होगा ।
3 मेरे दरवार पर आने वाले हर प्राणी की समस्त मनोकामना पूर्ण हो :- यह स्थान तेरेे नाम सिद्ध बाबा शिब्बो थान के नाम से विख्यात होगा व मेरी पूजा तेरे नाम से होगी एवं तेरे दरवार में आने वाले हर प्राणी की हर मनोकामना पूर्ण होगी ।
मै अपने वरदानों की प्रमाणिकता के लिए तेरे दरवार दो विल और वेरी के वृक्ष है इन्हे में कांटों से मुक्त करता हूं । इन दोना बृक्षो के दर्षन मात्र से संकटो से मुक्ति मिलेगी।
अंत में जाहरवीर गोगा जी (जहरवीर गोगा को हिन्दू वीर व मुसलमान पीर कहते है) ने बाबा शिब्बो को अपना दिव्य विराट रूप दिखाया और इसी दिव्य रूप में शिब्बो स्थान पर स्थिर हो गए । तदोपरान्त वावा षिव्वो जहरवीर की षक्ति में समा गए ।ं आज बाबा जी के वंषज बाबाजी की परम्परा के अनुसार इस स्थान की महिमा को यथावत रखे हूए है ।
मन्दिर कमेटी की ओर से भेाजन, ठहरने व पानी की पूर्ण सुविधा उपलव्ध करवाई है । श्रावण व भादमास के हर रविवार को बाबा जी का मेला लगता है । षनिवार, रविवार व सोंमवार को बाबा जी का संकीर्तन होता है । गोगा नौमी के नौवें दिन बाबा जी के नाम का भंडारा होता है। गोगनोमी के पावन दिनों में बाबाजी के आठ सद्धियों पुराने संगलों को मन्दिर के गर्भागृह में पूजा के लिए रखा जाता है ।
मन्दिर के गर्भगृह में स्थित मुर्तियों का विवरण:-
बायें ये दाये श्री गुरू मछन्दर नाथ, गुरू गोरखनाथ , बाबा क्यालू, कालियावीर, अजियापाल, जहरवीर मंडलीक,माता बाछला, नारसिंह, कामधेनू, बहन गोगडी, वासूकी नाग, बाबा शिब्बो । प्रचीन षिवलिंग, त्रिदेव की तीन पिंडिया उसके सामने सात षक्ति की प्रतिक पिंडियां बायें ये दाये तृतिया बाबा शिब्बो थान की पिंडि । मन्दिर के सनमुख बाबा का धूना व धूने के साथ बरदानी बेरी का वृक्ष बूरी के सामने बाबा जी के भंगारे के दर्षन
भंगारे की प्रयोग विधि
प्रातःकाल एवं सासंकाल शुद्ध पानी का लोटा ले उसमें चुटकी भर भंगारा डाल दे जिस मनोरथ के साथ प्रयोग करना है उसका सुमरण करो फिर तीन चूली चरणामृत व घर में जन का छिड़काव कर दो । जिस स्थान पर जहर का जख्म हो उसपर लेप कर दें ।