शिमला, जसपाल ठाकुर
प्रदेश में क्लीनिकल साईकोलाॅजिस्ट और फिजियोथैरेपिस्ट की कमी को पूरा किया जाना आवश्यक है ताकि दिव्यांगजनों को इनकी सेवाओं से वंचित न रहना पडे़। विशेष ओलंपिक भारत की अध्यक्ष डाॅ. मल्लिका नड्डा ने कला संस्कृति, भाषा अकादमी के साहित्य कला संवाद के दौरान चर्चा में यह विचार व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि विलम्बित दिव्यांग अधिकार कानून दिसम्बर, 2016 में लागू किया गया, जिसके तहत दिव्यांगजनों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के प्रति बल दिया गया। इसके तहत 3 प्रतिशत से बढ़ाकर इनके लिए 4 प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण की सुविधा की गई है तथा दिव्यांग पात्रता की 7 श्रेणियों से बढ़ाकर इसमें 21 श्रेणियां शामिल की गई है, जिसके प्रति जागरूकता और जानकारी होना आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1998 में बिलासपुर में चेतना संस्था का गठन कर मानसिक दिव्यांगता से ग्रसित व्यक्तियों के लिए कार्य शुरू किया गया था ताकि इन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इसके तहत दिव्यांगजनों को दिव्यांगता प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने के लिए सप्ताह में एक दिन शनिवार को मेडिकल बोर्ड को प्रत्येक जिले में बिठाने के प्रति निर्णय लिया गया था ताकि दिव्यांगजन को उसका दिव्यांगन प्रमाण-पत्र मिल सके, जोकि परम्परा आज तक चली आ रही है।
उन्होंने चेतना संस्था द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्रों के माध्यम से व्यवसायिक प्रशिक्षण और स्वरोजगार कौशल प्रदान कर समाज के कमजोर वर्गों की सहायता व उत्थान के लिए कई कार्यक्रमांे को निर्देशित किया है।
विशेष ओलंपिक भारत के तहत देश के विशेष बच्चों को एक नई पहचान दिलवाने के उद्देश्य से विभिन्न खेलों का राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया गया। लगभग 10 हजार से अधिक विशेष एथेलिट हिमाचल प्रदेश के अध्याय से पंजीकृत है और यह खिलाड़ी नियमित तौर पर राज्य, राष्ट्रीय व विश्व स्तर के खेलों में भाग ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त देश के अन्य दिव्यांग खिलाड़ियों को भी इससे प्रोत्साहन मिला है।
डाॅ. मल्ल्किा नड्डा ने राजनीतिक परिवेश से संबंध होने के बावजूद सामाजिक परिवर्तन और व्यक्ति निर्माण की दिशा में कार्य करने के प्रति अपना योगदान प्रदान करने के लिए अपना प्रेरणा स्त्रोत सदा शिव देवधर जी को बताया।
नई शिक्षा नीति के तहत चर्चा करते हुए बताया कि इसमें दिव्यांगजनांे को 6 से 18 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा, स्कूलों में स्पैशल एजुकेटर की नियुक्ति करने ताकि उन्हें सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने का अवसर मिल सके तथा अन्य संगठनात्मक व मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने का निर्णय इसमें लिया गया है ताकि उनका शैक्षणिक विकास संभव हो सके।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में विशेष ओलंपिक हिमाचल चैप्टर की शुरूआत कर इन बच्चों को खेलों की ओर प्रोत्साहित किया ताकि इनके परिवार और समाज में इनके प्रति पनपने वाली सोच को बदला जा सके और इन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि हमारे देश के दिव्यांग खिलाड़ियों ने विश्व शीतकालीन खेलों में श्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त किया है जबकि सामान्य खिलाड़ियों ने अभी तक इस स्पर्धा में कोई भी उपलब्धि अर्जित नहीं की है जोकि बहुत बड़ी उपलब्धि है।
उन्होंने कहा कि दिव्यांगजनों की क्षमताओं को देखते हुए उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए जाए। विशेष रूप से खेल जगत में उन्हें आर्थिक तौर पर सम्मानित करने जैसे कदम उठाने के भी प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक क्षेत्र में इनकी प्रतिभाओं को देखते हुए सभी का दायित्व है कि इन्हें विविध मंच प्रदान कर आगे बढ़ने का मौका दिया जाए ताकि इनकी कला सामने आ सके।
चर्चा के दौरान जिला लोक सम्पर्क अधिकारी संजय सूद ने खेलों के साथ-साथ दिव्यांगजन संस्कृति और सांस्कृतिक चेतना में भी अत्यधिक क्षमता रखते है के प्रोत्साहन के संबंध में डाॅ. मल्लिका नड्डा ने इसके लिए सभी के सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
इस अवसर पर अकादमी के सचिव डाॅ. कर्म सिंह ने डाॅ. मल्लिका नड्डा द्वारा समाज के उपेक्षित वर्गों के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए विश्वास जताया कि आने वाले समय में दिव्यांग कलाकारों को भी संवाद कार्यक्रम के माध्यम से मंच प्रदान किया जाएगा।
विश्वविद्यालय में डाॅ. वाई.एस. परमार चेयर के प्रमुख डाॅ. ओम प्रकाश ने डाॅ. मल्लिका नड्डा द्वारा किए जा रहे कार्यों को प्रेरक बताया। उन्होंने कहा कि इससे न केवल सम्पूर्ण देश के दिव्यांग खिलाड़ियों अपितु प्रदेश के खिलाड़ियों को भी सम्मान मिला है।
कार्यक्रम के संपादक हितेन्द्र शर्मा ने डाॅ. मल्लिका नड्डा का सम्पूर्ण परिचय दिया और चर्चा के दौरान उनके द्वारा सांझा किए गए अनुभवों को अत्यंत लाभकारी बताया।
सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन भारती कुठियाला द्वारा किया गया, जिन्होंने विविध विषयों के संबंध में डाॅ. मल्लिका नड्डा के विचारों से अवगत करवाया।