पौंग बांध विस्थापितों की लडा़ई अभी भी जारी, पुनर्वास के आदेश पर न मुआवजा मिला न मिला ब्याज

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लंज- निजी संवाददाता

पौंग बांध के लिए अधिग्रिहित भूमि के कारण हुए विस्थापित पुनर्वास और मुआवजा की कानूनी अधिकार लड़ाई पिछले 60 सालों से लड़ रहे हैं। प्रशासन के ढुलमुल रवैए से तंग आकर आखिर विस्थापितों ने न्यायालय में याचिका दायर की और माननीय न्यायालय ने उनका पुनर्वास करने के आदेश पारित किए। न्यायालय द्वारा मुआवजा को ब्याज सहित देने के भी आदेश दिए गए हैं। लेकिन प्रशासन द्वारा अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया।

यह बोले संघर्ष समिति के अध्यक्ष

पौंग विस्थापित संघर्ष समिति के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने बताया कि उन्होंने मुआवजा न मिलने व पुनर्वास न होने के कारण बड़ी मुश्किल से मकान बनाया था। अब यह मकान फोरलेन की जद में आ गया है और प्रशासन ने मकान को गिराने का नोटिस दे दिया गया।

उन्होंने कहा कि बड़ी मुश्किल से उन्होंने परिवार के लिए मकान बनाया था, लेकिन अब इसे गिरकर दूसरी जगह मकान नहीं बना सकते। ऐसे और भी पौंग विस्थापित परिवार हैं जिन्होंने विस्थापित होने के बाद सरकार ने पुनर्वासित नहीं किया लेकिन आसपास जमीन खरीद कर मकान बनाए है और अब फोरलेन बनने के कारण दोबारा उखाड़ने की जद में आ गए हैं।

उन्होंने कहा कि कोई भी कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों के साथ इतना अत्याचार नहीं कर सकता। यदि राज्य को भूमि अधिग्रहण करने की शक्ति है तो उस का यह भी दायित्व है कि संवैधानिक नियमों की पालना करते हुए पुनर्वास नीति के अनुसार विस्थापितों का पुनर्वास करें।

उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार से निवेदन किया है कि उन्हें या तो उचित मुआवजा दिया जाए या फिर पुनर्वास किया जाए। या फिर उनके मकान को तब तक न गिराया जाए जब तक उनको उनका पुनर्वास न हो और 1968 में अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा भी दिया जाके।

उन्होंने कहा कि पौंग बांध के लिए अधिकृत की गई भूमि की मुआवजा प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई और जिला प्रशासन कांगड़ा द्वारा विस्थापन का एक और तुगलकी फरमान जारी कर दिया गया। यह फरमान फोरलेन राष्ट्रीय राज मार्ग निर्माण को लेकर किया है।

उन्होंने मामले को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह पौंग बांध विस्थापित हैं और उन की भूमि 1968 में भू-अधिग्रहण अधिकारी राजा का तालाब द्वारा इस शर्त पर अधिग्रहण की गई थी कि उन्हें भूमि का उचित मुआवजा दिया जाएगा और विस्थापन से पहले उनका पुनर्वास किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि बड़े दुःख की बात है की प्रशासन द्वारा रातों रात उन्हें पुनर्वास से पहले ही 1973 में विस्थापित कर दिया और विस्थापन के 60 वर्ष बीत जाने पर भी प्रशासन द्वारा कोर्ट के आदेश के बावजूद न ही पुनर्वास किया गया और न ही उचित मुआवजा दिया गया।

इस पर तुर्रा यह कि विस्थापन का एक और नोटिस एसडीएम कार्यालय शाहपुर द्वारा दे दिया गया। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि फोरलेन विस्थापन से पहले उचित मुआवजा देकर प्रभावितों का पुनर्वास किया जाए।

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