नौवे नवरात्र पर जानिए माता बाला सुंदरी मंदिर का इतिहास, वैष्णो देवी का माना जाता है कन्या रूप

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हिमखबर डेस्क

आज चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है यानी आज माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। तो आइये माता सिद्धिदात्री का नाम लेकर आपको महामाया बाला सुंदरी मंदिर की और ले चले।

जानिए, महामाया बाला सुंदरी मंदिर का इतिहास 

उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध महामाया बाला सुंदरी का भव्य मंदिर सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन से करीब 22 किलोमीटर दूर त्रिलोकपुर नामक स्थल पर विराजमान है। मंदिर में विशेषकर नवरात्रों में मेले के दौरान हिमाचल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तराखंड से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां आते हैं।

मंदिर में पूजा-अर्चना करके देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे श्रद्धालुओं को एक अलग सी अनुभूति प्राप्त होती है।मां बाला सुंदरी सिरमौर जिला के अलावा साथ लगते हरियाणा व उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की भी अधिष्ठात्री देवी है। इन्हें वैष्णो देवी का कन्या रूप भी माना जाता है।

देवबंद से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई माता बाला सुंदरी

लोक गाथा के अनुसार महामाई बाला सुंदरी उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के देवबंद स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थी। लाला रामदास त्रिलोकपुर स्थान में नमक का व्यापार करते थे और उन्हीं की नमक की बोरी में महामाई 1573 ई. में त्रिलोकपुर पधारी थीं।

कहा जाता है कि लाला रामदास ने देवबंद से जो नमक लाया था, उसे अपनी दुकान में बेचने के बाद भी बोरी से नमक कम नहीं हुआ। इस पर लाला रामदास अचंभित हुए। लाला रामदास त्रिलोकपुर में नित्य प्रति उस पीपल को जल अर्पित करके पूजा करते थे।

एक रात्रि महामाया बाला सुंदरी लाला रामदास के सपने में आई और उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि-‘‘मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं इस पीपल के नीचे पिंडी रूप में स्थापित हो गई हूं। तुम इस स्थल पर मेरा मंदिर बनवाओ।’’ लाला रामदास को मंदिर निर्माण की चिंता सताने लगी।

उन्होंने इतने बड़े भवन के निर्माण के लिए धनाभाव तथा सुविधाओं की कमी को महसूस करते हुए माता की अराधना की। इसी बीच मां बाला सुंदरी ने अपने भक्त की पुकार सुनते हुए राजा प्रदीप प्रकाश को स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया।

राजा प्रदीप प्रकाश ने जयपुर से कारीगरों को बुलाकर तुरंत ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। यह भवन निर्माण सन 1630 में पूरा हो गया। त्रिलोकपुर मंदिर क्षेत्र का एक सुप्रसिद्ध मंदिर है, जहां साल भर बड़ी संख्या में नवरात्री पर तीर्थयात्री आते हैं।

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