चम्बा – भूषण गुरुंग
बकलोह के आसपास के इलाको गोरखा समुदाय की महिलाओ के द्वारा आज हरितालिका तीज का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया। यह व्रत कृष्ण जन्मआष्ट्मी के ठीक ग्यारह दिन के बाद ही मनाया जाता है। इस व्रत का सभी महिलाओं को बहुत ही बेसब्री के साथ इंतज़ार रहता है।
व्रत से एक दिन पहले सभी महिलायें अपने पारम्परिक वेशभूषा में पूरी तरह से सुहाग का वस्त्र के साथ पूरे गहने पहनकर एक दुसरो के घरों में जाकर सुहाग गीत गाकर पूरे सुहागिनों को फल मिठाई और सुहाग के हर चीजो को एक दूसरे को साथ बाटा जाता है। सुहाग गीत गाकर नाच गाना किया जाता है।
जिस दिन व्रत होता है उस दिन सुबह सभी घरो के देवी दवताओं के पूजा अर्चना के बाद दोपहर मे सभी महिलाये शिव मंदिरों मे जाकर पूजा अर्चना के बाद भगवान शिव को भाग, धतूरा, जो, तील, चावल,दूध ,दही और फल जो भी भगवान को चढ़ता है वो उनको चढ़ाया जाता है। ये व्रत महिलाये अपने पति के दीर्घ आयु के लिए लिया जाता है।
सुबह से ही महिलाएं निराहार बिना कुछ खाय पियें इस व्रत को लेते है। रात को भर सभी महिलाये अपने अपने गॉव के शिव मंदिरों मे अपने स्थानीय पंडितों के द्वारा भगवान शिव का पूजा अर्चना करवाया जाता है। सभी महिलाये अपनी पति के दीर्घ आयु के लिए एक बड़ा दिया भगवान शिव पार्वती के आगे एक दीया जलाया जाता है।
जिसे सुबह तक नही बुझने नही दिया जाता है दीया बुझने से अब सगुन माना जाता है और रात भर भजन कीर्तन किया जाता है सुबह ठीक पांच बजे आरती के बाद सूर्य उदय से पहले अपने पति के पाउ को धोकर उसका जल ग्रहण करने के बाद ही अपने वर्त को तोड़ा जाता है। और दूसरे दिन ही सुबह जल ग्रहण करने के बाद है ही भोजन ग्रहण किया जाता है