हिमखबर डेस्क
पिता के एक वचन की खातिर भगवान राम ने 14 साल का वनवास झेला था। वचन पूरा होने पर 14 साल का वनवास काट भगवान राम, उनकी धर्मपत्नी माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 साल के वनवास के बाद अपने धाम लौटे थे। इसी खुशी में दीपावली पूरे देश में मनाई जाने लगी, मगर क्या हो अगर हम कहें कि एक गांव ऐसा भी है, जहां वचन के खातिर दिवाली न मनाने की भी परंपरा है।
आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर न तो दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। न ही इस गांव में पटाखों की गूंज होती है, और न ही लक्ष्मी पूजा, न ही दीपमाला और ना ही मिठाई बांटने की कोई रिवाज है। इस गांव में सामान्य दिनों की तरह ही लोग दीपावली के दिन को बिताते हैं।
यह गांव हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र सुलाह का है, बता दें कि जिला कांगड़ा के उपमंडल पालमपुर के अंतर्गत सुलाह विधानसभा क्षेत्र के तहत पंचायत सिहोटु के गांव अटियाला दाई में दीपावली का पर्व नहीं मानाया जाता है। जहां दिवाली पर कोई उत्साह, कोई रोशनी नहीं होती। इस गांव में ऐसा पहली बार नहीं बल्कि हर साल ऐसा ही होता है।
कहा जाता है कि सिहोटु पंचायत के गांव अटियाला दाई व साथ लगते गांव मलोग में अंगारिया समुदाय के 60 के करीब परिवार हैं, जो कि चौधरी जाति से संबंध रखते हैं। यह सभी परिवार दीपावली का त्यौहार नहीं मनाते हैं। इसके पीछे की वजह है। इसी गांव के बुजुर्ग का वो वचन, जिसका मान यहां का हर एक बाशिंदा रख रहा है।
यह है उत्सव न मनाने की वजह
गांव के लोगों का कहना है कि वर्षों पूर्व अंगारिया समुदाय का एक बुजुर्ग भयंकर बीमारी की चपेट में आ गया था। उस समय चिकित्सा के अभाव के चलते कई लोग इस रोग के चपेट में आने लगे थे। यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था, जिस कारण गांव के लोग परेशान हो चुके थे।
इस दौरान एक बाबा ने इस रोग को जड़ से मिटाने की रास्ता सुझाया था, जिसके बाद रोग की जकड़ में आए समुदाय के एक बुजुर्ग ने अपनी भावी पीढ़ी को बचाने के लिए एक प्रण लेते हुए भू समाधि ले ली थी। कहा जाता है कि वो दिवाली का ही दिन था, जिस दिन उस बुजुर्ग ने गड्डा खुदवाकर हाथ में दीया लेकर समाधि ली थी। हालांकि इस बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन गांव के लोग अब भी इस बात को मानते हैं और परंपरा को निभा रहे हैं।
कहा जाता है कि दीपावली के दिन बुजुर्ग की मौत के कारण उस समय के बुजुर्गों ने समुदाय की भावी पीढ़ी कभी को भविष्य में दीवाली न मनाने के लिए मना किया और कहा कि अगर ऐसा न किया तो इस कुल के लोग फिर से इस चपेट में आ जाएंगे। तभी से इस समुदाय के लोग दीवाली का त्योहार नहीं मनाते हैं और बुजुर्ग के दिए हुए वचन की पालना करते आ रहे हैं।
क्या कहते हैं गांव के बुजुर्ग
अटियाला दाई गांव के अंगारिया समुदाय के बुजुर्ग बताते हैं कि अंगारिया जाति के लोग सबसे पहले पालमपुर के ही धीरा नौरा गांव के पास के गांव कोटा में रहते थे, जहां से उठकर इस समुदाय के कुछ लोग अटियाला दाई, मंडप, बोदल सहित धर्मशाला में बस गए हैं, लेकिन यह सब अपने अपने घरों में इस त्योहार को नहीं मनाते हैं।
उन्होंने बताया कि कोटा गांव में अभी भी अंगारिया जाति के 25 से 30 परिवार रहते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि उन्हें इतिहास नहीं पता कि कब क्या हुआ था, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी यह प्रथा कायम रखने में यह समुदाय वचनबद्ध है।