उल्लास से परिपूर्ण उत्सव है दिवाली, जाने पूजन विधि, धार्मिक मान्यता और दीपावली की कथा

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हिमखबर डेस्क

दीपावली अथवा दिवाली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारंभ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं।

दीपावली भारत के त्योहारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है।

ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक भक्त के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। दीपावली मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से भक्तों के घर निवास करती हैं…

धनतेरस एवं छोटी दिवाली

वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी (जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है) तथा महालक्ष्मी पूजन, इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है।

इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता है। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।

पूजन विधि

लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ.-सफाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है। संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयां होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए। इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छह चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए।

फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मी जी का पूजन करें। इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बही-खातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो, घर की बहू-बेटियों को रुपए दें।

दीपदान

दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्त्व है। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छह चौमुखे दीपक दोनों थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनों थालों में सजाएं। इन सब दीपकों को प्रज्वलित करके जल, रोली, खील-बताशे, चावल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें।

लक्ष्मी पूजन

दीपावली पर लक्ष्मी जी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपए आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है।

धार्मिक मान्यता

दीपावली के दिन आतिशबाजी की प्रथा के पीछे संभवत: यह धारणा है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरंभ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।

धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा आसुरी वृत्तियों के प्रतीक रावण का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

इसका एक कारण यह भी है कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारंभ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रमी संवत का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है। अत: यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।

दीपावली की कथा

एक बार सनत्कुमारजी ने सभी महर्षि-मुनियों से कहा, ‘महानुभाव! कार्तिक की अमावस्या को प्रात:काल स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर तथा देव पूजन करना चाहिए। उस दिन रोगी तथा बालक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। संध्या समय विधिपूर्वक लक्ष्मी जी का मंडप बनाकर उसे फूल, पत्ते, तोरण, ध्वज और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं सहित लक्ष्मी जी का षोडशोपचार पूजन तथा पूजनोपरांत परिक्रमा करनी चाहिए।’

मुनिवरों ने पूछा, ‘लक्ष्मी-पूजन के साथ अन्य देवी-देवताओं के पूजन का क्या कारण है?’ इस पर सनत्कुमारजी बोले, ‘लक्ष्मी जी समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहां बंधक थीं। आज ही के दिन भगवान विष्णु ने उन सबको बंधनमुक्त किया था। बंधनमुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मी जी के साथ जाकर क्षीर-सागर में सो गए थे। इसलिए अब हमें अपने-अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबंध करना चाहिए कि वे क्षीरसागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शैय्या पाकर यहीं विश्राम करें।

जो लोग लक्ष्मी जी के स्वागत की उत्साहपूर्वक तैयारियां करते हैं, उनको छोडक़र वे कहीं भी नहीं जातीं। रात्रि के समय लक्ष्मी जी का आह्वान करके उनका विधिपूर्वक पूजन करके नाना प्रकार के मिष्ठान्न का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए। दीपकों को सर्वानिष्ट निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे या शमशान में रखना चाहिए।’

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