नाहन, 17 अप्रैल – नरेश कुमार राधे
ये रियल कहानी, हिमाचल की सिरमौर रियासत के एक ऐसे हाथी की है जो सिरमौर रियासत की शान हुआ करता था। शायद हिमाचल प्रदेश में कोई स्थान होगा, जहां पर हाथी की कब्र बनी होगी।
खैर हाथी की कब्र से नाहन शहर का बच्चा बच्चा वाकिफ है। लेकिन कुछ सालों से हाथी की कब्र के समीप स्थित “सिंबल” के पेड़ का एक हिस्सा हूबहू हाथी के पैरों की तरह आकार ले रहा है। जिसे देखकर हर कोई अचंभित हो जाता है।
हाथी की कब्र के समीप रहने वाले महबूब अली का कहना कि जब से होश संभाला है तब से इस स्थान के प्रति गहरी आस्था है।
करीब आठ साल से हाथी की कब्र के साथ पेड़ में कई बदलाव महसूस किये है। तने के बिलकुल निचले हिस्से ने हाथी के पांव का आकार ले लिया है। इसके ठीक ऊपर घुटने भी महसूस होते है।
बता दे कि ऐतिहासिक नाहन शहर में शिमला रोड़ पर हाथी की कब्र स्थित है।
ये है हाथी के इतिहास से जुड़ी बातें…
1858 में तत्कालीन शासक शमशेर प्रकाश का विवाह बाल्यकाल में हो गया था। शिमला की क्योंथल रियासत के राजा महेंद्र सेन की दोनों बेटियों से शादी हुई। बारात जुन्गा गई थी।
छोटी रानी जल्द ही दुनिया को छोड़ गई। बड़ी रानी की कोख से पैदा बेटा-बेटी कुछ समय बाद ही स्वर्ग सिधार गए। इसके पश्चात राजा शमशेर प्रकाश ने तीर्थ यात्रा की योजना बनाई।
शासक कंवर सुरजन सिंह व वीर सिंह के साथ विक्रमी संवत 1915 (1858 ई.) में तीर्थ यात्रा पर रवाना हुए। इस दौरान मथुरा, प्रयाग व पटना जी पहुंचे। कोलकात्ता होते हुए श्री जगन्नाथ की यात्रा भी की।
वापसी में राजा शमशेर प्रकाश ने मथुरा के सेठ लक्ष्मी चंद से एक हाथी खरीदा था। यह हाथी उस समय डील-डौल में कुछ बड़ा नहीं था, लेकिन बाद में वो बहुत ही खूबसूरत हुआ। इस हाथी का नाम बृजराज रखा गया, बृजराज का अर्थ है मथुरा के हाथियों में सबसे बड़ा हाथी।
राजा अपने हाथी को लेकर सकुशल नाहन आ गए। वापस पहुंचने पर रियासत में जमकर खुशियां मनाई गई, क्योंकि यात्रा दुर्गम व खतरों से भरी समझी जाती थी। रास्ते में डाकू-लुटेरों का भय भी रहता था।
बृजराज से शासक को मोहब्बत हो गई थी। शाही महल के दरवाजे के निकट ही एक पक्का हाथी घर भी बनवाया था, वो उसे दिन में एक बार अवश्य मिलने जाया करते थे। हाथी भी राजा का आदेश मानता था।
विशेषकर मस्ती की हालत में हाथी अपने महावत के आदेश की परवाह नहीं करता था, मगर राजा के आदेश को कभी नहीं टालता था। हाथी का रंग भूरा व कद 10 फुट 5 इंच था। कद-काठी मुनासिब व सुंदर थी।
बृजराज साहसी था। जंगली हाथी से मुकाबला करने में हिम्मत दिखाता था। इतिहास के मुताबिक राजा शमशेर प्रकाश ने बृजराज को मथुरा के सेठ लक्ष्मी चंद से खरीदा था।
एक बार बृजराज बीमार हुआ था तो उसके महावत ने दवा की ओवरडोज दे दी थी। जिस कारण उसकी मौत हो गई। उस वक्त दवा के रूप में ठंडा मसाला दिया जाता था। 1890 में बृजराज ने दुनिया को अलविदा कहा था।
जब बृजराज को मौजूदा शिमला मार्ग पर दफनाया गया था, उस समय सिंबल का पेड़ भी रोपित किया गया था, जो आज भी मौजूद है।
इसे देखकर इस कारण हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है, क्योंकि पेड़ के कई हिस्से हाथी के अंगों की तरह नजर आते हैं।
132 साल बाद भी आज बृजराज शहरवासियों के जहन व स्मृति में रहकर मनोकामना पूरी करता है।