सिरमौर- नरेश कुमार राधे
इंडियन फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट््यूट देहरादून व हिमाचल प्रदेश वन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में ग्रीन इंडिया मिशन के तहत नाहन में प्रदेशस्तरीय कार्यशाला हुई। जिला मुख्यालय नाहन में कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि डायरेक्टर जनरल आफ आइसीएफआरई देहरादून व एफआरआइ अरुण रावत ने शिरकत की। पीसीसीएफ हेड आफ फारेस्ट फोर्स हिमाचल प्रदेश अजय श्रीवास्तव कार्यशाला में मुख्य रूप से उपस्थित हुए।
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य ग्रीन इंडिया मिशन के तहत चीड़ की पत्तियों को रोजगारपरक व जंगलों को आग से बचाना मुख्य रूप से रहा। अरुण रावत ने बताया कि वनों में आग का मुख्य कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं। उत्तराखंड और हिमाचल में 30 लाख टन से भी अधिक चीड़ की पत्तियां प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती है, मगर कुल चीड़ की पत्तियों का पांच प्रतिशत भी उपयोग में लाने के बाद लाभप्रद साबित नहीं होता है।
अब चीड़ की पत्तियों से रेशा बनाए जाने की खोज कर ली गई है। इस खोज के बाद चीड़ की पत्तियों के रेशे का शत प्रतिशत उपयोग संभव हो पाएगा। जिससे न केवल जंगलों को आग से बचाने में बड़ी मदद मिलेगी, बल्कि जंगलों के आसपास रहने वाले किसानों को भी आमदनी का बड़ा जरिया मिलेगा।
उन्होंने बताया कि एफआरआइ देहरादून के साइंटिस्ट आइएफएस डाक्टर विनीत के द्वारा खोजी गई इस तकनीक को पेटेंट भी करवा लिया गया है। रेशा निकालने के लिए आसान व पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया अपनाई गई है। इससे भी अच्छी बात तो यह है कि रेशे की लंबाई 20 सेंटीमीटर व रंग पीला होता है।
यह रेशा बड़ा मजबूत और काफी नरम होता है। रेशे को कात कर हथकरघा वस्त्र एवं उत्पाद में इस्तेमाल किया जाएगा। जिससे जैकेट, कोट, वालेट, घर के पर्दे, लैंपशेड, कालीन, चप्पल, रसिया व चटाईयां आदि 100 से भी अधिक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।
तो वही प्रसिपल चीफ कंजरवेटर हिमाचल प्रदेश फारेस्ट अजय श्रीवास्तव ने बताया कि नई खोज के बाद हिमाचल प्रदेश के किसानों को आजीविका का बड़ा साधन उपलब्ध होगा।
कंजरवेटर जिला सिरमौर सरिता ने कहा कि चीड़ की पत्तियों से रेशे को बनाने की अनुमानित लागत करीब 50 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम आती है। एक किलोग्राम रेशे से कई सुंदर आकर्षक वस्तुएं तैयार की जा सकती हैं।
कार्यशाला में ये भी रहे मौजूद
हेड आफ सिल्वीकल्चर एफआरआइ देहरादून आरपी सिंह, डीएफओ हेड क्वार्टर वेद शर्मा, डीएफओ श्रीरेणुकाजी उर्वशी ठाकुर, डीएफओ पांवटा साहिब कुणाल अंगिरस, डीएफओ नाहन सौरभ सहित वन अधिकारी व ग्रामीण क्षेत्रों से आए किसान मौजूद रहे।