डाडासीबा- आशीष कुमार
अरसा बीत जाने के बाद भी बाबा का वह गिरता हुआ कच्चा मकान आज सरकारी घोषणाओं का भी कच्चा चिट्ठा खोलता नजर आता है, जो बेहद अचरज भरा तो है ही, बल्कि शर्मसार भी करता है। मैं समझता हूं कि इस विषय पर गहन चिंतन और कोई तत्काल निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है, जिससे पहाड़ी गांधी के नाम को बट्टा लगने से बचाया जा सके।
बुलबुल-ए-पहाड़ के नाम से विश्व विख्यात पहाड़ी गांधी- बाबा कांशी राम का भारतीय स्वतंत्रता की जंग-ए-आजादी में जिन महान विभूतियों का सहयोग रहा, योगदान रहा, उनमें कांगड़ा जिला के डाडासीबा के साथ लगते गांव पदियाल पंचायत गुरनवाड़ के बाबा कांशी राम का नाम उनकी 500 से अधिक लिखी कविताओं और गीतों व लगभग आठ ओजस्वी क्रांतिकारी कहानियों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।
बाबा कांशी राम के पौत्र विनोद शर्मा ने कहा कि हमारे हिमाचल प्रदेश के ही जिला कांगड़ा के डाडा सीबा में पंडित लखणू राम और माता रेवती के घर आज ही के दिन 11 जुलाई, सन् 1882 को जन्मे कांशी राम यानी बुलबुल-ए-पहाड़ के खिताब से स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू द्वारा नवाजे भी गए थे।
अपने देश भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई जारी रखते हुए ही और जब तक लड़ाई खत्म नहीं हो जाती व हिंदोस्तान आजाद नहीं हो जाता, तब तक काले कपड़े ही पहनने का निर्णय लेने वाले इस शख्स को स्याहपोश के नाम से भी जाना जाता है।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन्हें पहाड़ी गांधी का संबोधन करके एक अतुलनीय गरिमा भी प्रदान की थी, जिससे हमारे प्रदेश का नाम सुशोभित तो हुआ, साथ ही गौरवान्वित भी हुआ। बाबा कांशी राम ने अपने कविता साहित्य से सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाकर अपनी स्वतंत्रता के प्रति रुझान और लगाव का पूर्ण परिचय दिया था।
हिमाचल सरकार ने एक बड़ी पहल करके बाबा कांशी राम की अंतिम निशानी इनके पैतृक घर को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संग्रहित और संजोए रखने का निर्णय लिया था। यह हम सबके लिए बड़े ही हर्ष का बात साबित हो सकती थी, जबकि 10 जुलाई, 2017 को ही प्रदेश सरकार ने बाबा कांशी राम के पैतृक गांव में स्थित संपत्ति को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में स्वीकार करने की घोषणा कर साहित्य संसार और आम जनमानस की भावनाओं को सम्मान दिया।