फतेहपुर, गैरी राजपूत
क्या भाजपा फतेहपुर में किसी नए चेहरे को मैदान में उतारेगी ? यह सवाल अब फतेहपुर में सबको परेशान करने शुरू हो गया है। इसकी वजहें भी हैं। दरअसल, फतेहपुर विधानसभा में भाजपा की हार की हैट्रिक लग चुकी है। चिंता यह सता रही है कि कहीं टिकट आबंटन में कोई ऐसी चूक न हो जाए कि हार का चौक्का ही न लग जाए। ऐसे में खबरें आने शुरू हो गईं हैं कि भाजपा इस बार बीते धर्मशाला और पच्छाद उपचुनावों की तर्ज पर फतेहपुर में भी चेहरा बदल सकती है। इन दोनों जगहों पर भाजपा ने एकदम नए और युवा चेहरों को मैदान में उतारा था और जीत भी हासिल की थी।
भाजपा में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक यह चिंतन गम्भीरतापूर्वक शुरू हो गया है कि लकीर का फकीर बनने को बजाए कोई नई ऐसी बड़ी लकीर खींची जाए जिससे कांग्रेस के खाते में बन चुकी सहानुभूति की लकीर छोटी पड़ जाए? इस कड़ी में फिलवक्त एक नाम सामने आया है,वह नाम है पंकज हैप्पी। हैप्पी अभी भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष और कांगड़ा-चम्बा लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी भी हैं। फतेहपुर की भगवां सियासत में हैप्पी जाना पहचाना नाम भी हैं। उनके खाते में सबसे बड़ा सियासी प्लस प्वांइट उनकी उम्र और उनके एक्स सर्विस मैन होने के साथ-साथ पौंग डैम ऑस्टिज़ होना है।
अभी सिर्फ 42 साल के हैप्पी एयरफोर्स से साल 2012 में सेवानिवृत्त हुए थे। घर लौटते ही हैप्पी ने दो महीने बाद विधानसभा चुनाव बतौर आजाद उम्मीदवार लड़ा और पांच हजार के करीब वोट झटक लिए थे। भाजपाई पृष्ठभूमि के रहे हैप्पी का बॉयोडाटा इसलिए भी स्ट्रांग माना जा रहा है कि वह आरएसएस और बजरंग दल में भी विभिन्न स्तरों पर काम करते रहे हैं। हैप्पी की वकालत कर रहे भाजपा के बड़े लोगो का कहना है कि फतेहपुर में करीबन 65 फीसदी वोट बैंक पौंग बांध विस्थापितों का है और हैप्पी खुद भी डैम ऑस्टिज़ हैं।
जातिगत समीकरण की बात करें तो यह उसी ब्राह्मण समुदाय से हैं,जिस समुदाय से भाजपा के लिए एक वक्त में डॉ राजन सुशांत जीत का तोहफा जुटाते रहे हैं। साथ ही पूर्व सैनिक होने का तमगा भी छाती पर लगा हुआ है। यही वजह है कि भाजपाई गुणा-भाग,जमा-मनफी के रजिस्टर में हैप्पी सबको फिट नजर आ रहे हैं। फतेहपुर के सियासी पर्दे पर भले ही पहली नजर में कृपाल परमार का चेहरा नजर आ रहा है,पर जमीन पर जनता के चर्चे कुछ और ही हैं।
परमार की मोदी संग दोस्ती के चर्चों पर अचानक से तथ्यों सहित हैप्पी के नाम की पॉलिटिकल स्क्रिप्ट बिना किसी खर्चे के हिट होने शुरू हो गई है। सियासी माहिर भी यह मान रहे हैं कि मोदी-युग में कुछ भी सम्भव है। आम विधानसभा चुनावों के लिए अब दो साल का अरसा भी नहीं बचा है। फतेहपुर में पार्टी की जीत-हार का संदेश साल 2022 तक काम करेगा। ऐसे में कोई अचंभा नहीं होगा कि पार्टी किसी नए चेहरे को आगे लाकर टक्कर देने का मन बना ले। यही वजह है कि फतेहपुुुर में यह गुनगुनाया जाने शुरू हो गया है कि चेहरा क्या देखते हो,जमीन पर उतर कर देखो न.
जवान बनाम जवान
पंकज की उम्र कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी भवानी पठानिया से कम है। पंकज ने रिटायरमेंट के बाद से सियासी जमीन छोड़ी नहीं है और करियर के कारण भवानी सालों बाद जमीन को देखा है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि हैप्पी के खाते में भाजपाई खाते से एक भी माइनस प्वाइंट नहीं है। जब उन्होंने पहला चुनाव लड़ा था तब वह भाजपा से नहीं जुड़े थे।
ब्राह्मण बनाम राजपूत ही मिली थी भाजपा को जीत
भाजपा फतेहपुर में तभी जीती थी,जब सुजान सिंह पठानिया से डॉ राजन सुशांत की भिड़ंत हुई थी। सुशांत के बाद भाजपा ने साल 2009 में बलदेव चौधरीनको मैदान में उतारा। नतीजा हार रहा। इसके बाद साल 2012 में फिर पठानिया के खिलाफ बलदेव ठाकुर को उतारा। फिर हार नसीब हुई। इसके बाद 2017 में कृपाल परमार को टिकट दी। हार की हैट्रिक लग गई।इतिहास गवाही दे रहा है कि भाजपा तभी जीती जब ब्राह्मण को मुकाबले में उतारा। ऐसे में अब भाजपा के सामने खड़ा यह इतिहास डराने की वजह बन गई है। एक तरफ युवा चेहरा है तो दूसरी तरफ पीएम मित्र कृपाल परमार।
अचानक हिल उठी है सियासत
पहली बार हो रहा है कि भाजपा को फतेहपुर में चुनाव से पहले ही विवादों से जूझना पड़ रहा है। बीते एक हफ्ते से परमार को परदेसी बाबू बताने के लिए अभियान शुरू हो गया है। कांग्रेस से भिड़ने से पहले भाजपा को अपने लोगों से ही निपटना पड़ रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए भी यह जरूरी हो गया है कि वह कांग्रेस से भिड़ने से पहले घर को सैटल कर ले। परमार के खिलाफ सुशांत के हमले भी बहुत प्रखर और मुखर हैं।
खतरा बहुत बड़ा है
फतेहपुर उपचुनाव को सत्तारूढ़ भाजपा किसी भी एंगल से हल्के में नहीं ले सकती। साल 2022 में फतेहपुर की हार-जीत का सुख-दुःख बराबर चलेगा। फतेहपुर में डॉ सुशांत के तीखे तेवरों से भाजपा अभी से खासी परेशान है। जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर वह भाजपा से ज्यादा सीएम जयराम ठाकुर की जड़े खोदने में लगे हुए हैं।
फ्लैगशिप पर लगातार हमलों से बचने के लिए सियासी माहिर भी यह मान रहे हैं कि भाजपा तभी कांग्रेस से भिड़ पाएगी जब सुशांत को साइड पर लगा कर रास्ता साफ हुआ हो। खतरा बहुत बड़ा है और हल यही है कि किसी ऐसे चेहरे को उतारा जाए जिसके खिलाफ सुशांत वैसे ही कुछ न बोल पाएं,जिस तरह से वह कांग्रेस के खिलाफ नहीं बोल पा रहे हैं।