इस बार दशहरा के 20 की बजाय 18 दिन बाद क्यों मनाई जाएगी दीपावली, माता लक्ष्मी से है खास संबंध

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शाहपुर – नितिश पठानियां

भारत वर्ष में दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. सनातन धर्म से जुड़े लोगों को इस त्योहार का बेसब्री से भी इंतजार रहता है. इस साल दीपावली का त्योहार सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को है. इस बार कार्तिक मास की अमावस्या भी दशहरा शुरू होने के 20 दिन के बाद पड़ रही है.

हालांकि हर बार दीपावली का त्योहार विजयदशमी के 20 या 21 दिन के बाद मनाया जाता है, लेकिन इस बार दीपावली विजयदशमी के 20 दिन के बाद नहीं बल्कि 18 दिन के बाद मनाई जाएगी. आखिर इस बार 18 दिन बाद दिवाली क्यों मनाई जाएगी और धन की देवी माता लक्ष्मी से इस त्योहार का क्या है खास संबंध आइए विस्तार से जानते हैं.

इस बार दशहरा के 18 दिन बाद दिवाली का त्योहार

आचार्य अमित कुमार शर्मा कहते हैं, “हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक अमावस्या की शुरुआत 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है, जो 21 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 55 मिनट तक रहेगी. दिवाली के दिन निशिता काल में पूजा करने का विधान है, जिसके चलते देश भर में दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा.

दिवाली के त्योहार को लेकर सनातन धर्म में कई पौराणिक कथाएं हैं, जिसमें प्रमुख रूप से माता लक्ष्मी का जन्म भी कार्तिक अमावस्या से जुड़ा हुआ है. ऐसे में सभी लोग माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए दिवाली के दिन विशेष रूप से रात्रि के समय पूजा-अर्चना भी करते हैं.”

सनातन धर्म में दिवाली का महत्व

  • 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर कार्तिक अमावस्या की शुरुआत
  • 21 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 55 मिनट तक कार्तिक अमावस्या
  • दिवाली के दिन निशिता काल में धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा का विधान
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी समुद्र से बाहर आईं थीं
  • माता लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में दिवाली मनाने की परंपरा

तो इसलिए दिवाली के दिन होती है धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा

आचार्य अमित कुमार शर्मा ने बताया कि, “जब देवताओं और दानवों (असुरों) के द्वारा समुद्र मंथन किया गया था तो कार्तिक मास की अमावस्या के समय ही माता लक्ष्मी समुद्र से बाहर आईं थीं. इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म दिवस भी मनाया जाता है.

इसके अलावा लंका पर विजय पाकर भगवान श्री राम भी वापस अयोध्या जब पहुंचे थे तो वह भी कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था. पांडव भी जब द्वापर युग में अपना वनवास पूरा कर अपनी राजधानी हस्तिनापुर पहुंचे थे तो वह दिन भी कार्तिक मास की अमावस्या का ही था.”

दिवाली को लेकर प्रचलित हैं कई पौराणिक कथाएं

अमित विजय कुमार शर्मा के अनुसार, “द्वापर युग में भगवान कृष्ण के द्वारा नरकासुर नामक राक्षस का वध भी किया गया था. नरकासुर जनता को काफी परेशान करता था. जिस दिन नरकासुर का वध हुआ. उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी और अगले दिन अमावस्या को जब ग्रामीणों को नरकासुर के वध की सूचना मिली तो उन्होंने भी अमावस्या के दिन खूब जश्न मनाया था.

इसके अलावा भी कई ऐसी पौराणिक कथाएं शास्त्रों में लिखी गई है जो कार्तिक मास की अमावस्या से जुड़ी हुई है. ऐसे में कार्तिक मास की अमावस्या का दिन माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ अन्य कथाओं से भी जुड़ा हुआ है.”

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