शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2005 से पहले वन भूमि पर जीवन निर्वाह करने वाले प्रदेश के लाखों लोगों के इसका मालिकाना हक मिलेगा। वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानाें के तहत दावा करने वाले को 50 बीघा तक का मालिकाना हक मिल सकता है।
कब्जे नियमित करने के लिए लोगों को निर्धारित फार्म पर आवेदन करना होगा। इसके लिए ग्राम सभा का अनुमोदन और दो लोगों की गवाही जरूरी होगी। इसके अलावा कोई खर्चा नहीं होगा। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने गुरुवार को विधानसभा परिसर में पत्रकार वार्ता के दौरान यह जानकारी दी।
नेगी ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम के तहत वन भूमि पर जीवन निर्वाह के लिए कब्जा करने वालों को मालिकाना हक देने की कानूनी शक्तियां ग्राम सभा को दी गई हैं। नेगी ने कहा कि साल 2008 में पूरे देश में वन अधिकार अधिनियम की अधिसूचना हुई।
इसके तहत कई प्रदेशों में हजारों बीघा जमीन जनजातीय व गैर जनजातीय परंपारिक व वन निवासियों को दी गई। इस कानून के तहत दावेदार 50 बीघा तक भूमि प्राप्त करने का अधिकार रखता है। इस कानून के पीछे की असली मंशा सदियों से वन भूमि पर पारंपरिक रूप से रह रहे लोगों को मालिकाना हक दिलाना है।
हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनने के बाद जनजातीय क्षेत्रों में कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को इस संबंध में जागरूक किया है और वहां अच्छा काम हुआ है। गैर जनजातीय क्षेत्रों में उतना काम नहीं हो पाया है। नेगी ने कहा कि प्रदेश गैर जनजातीय क्षेत्रों के लोग भी इस कानून का भरपूर लाभ उठाएं।
लोग बिना एक पैसा खर्च किए उस भूमि का मालिकाना हक पा सकते हैं, जिस पर वे सदियों से जीवन निर्वाह कर रहे हैं। यह कानून बहुत सरल है। इसमें दावा करने वाले को सिर्फ दो पेज का आवेदन पत्र देना होगा। जिसमें नाम-पता व पत्नी का नाम देना होगा। क्योंकि पत्नी भी भूमि में बराबर की मालिक होंगी। किसी श्रेणी से हैं, उसका प्रमाणपत्र देना होगा। या नहीं है तो गांव में रहने का वोटर कार्ड या अन्य दस्तावेज दे सकते हैं।
जिस भूमि का दावा है, उसके लिए गांव के दो बुजुर्गों का बयान देना होगा। अगर भूमि का कोई राजस्व कागज नहीं है तो खुद नक्शा नजरी बनाकर दे सकते हैं। इसके बाद आवेदन ग्राम सभा के माध्यम से वन अधिकार कमेटी को भेजा जाएगा। कमेटी में अधिकतम 15 लोग होते हैं, एक तिहाई महिला सदस्य होंगी।
कानून का मकसद अतिक्रमण के मामलों को नियमित करना नहीं
कमेटी माैके पर जाकर भूमि का सत्यापन कर रिपोर्ट तैयार कर ग्राम सभा को साैंपेगी। पटवारी व वन रक्षक भी कमेटी के सदस्य होंगे। ग्राम सभा की मंजूरी के बाद मामला उपमंडल स्तर की कमेटी में जाएगा और फिर जिला स्तर की कमेटी के पास मंजूरी को जाएगा। मंजूरी मिलने के बाद दावा करने वाले को भूमि का मालिकाना हक मिलेगा।
नेगी ने कहा कि 2008 से लेकर 2012 तक भाजपा सरकार वन अधिकार अधिनियम के स्पष्टीकरण का इंतजार करती रही। 2012 से 2017 के बीच कांग्रेस सरकार ने पंचायत स्तर पर एफआरए कमेटियां गठित कीं लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
नेगी ने स्पष्ट किया कि 2005 से पहले से यदि भूमि पर कब्जा हो, चाहे यह वन भूमि है या डीपीएफ, यूएफ है या सेंचुरी एरिया है, लोगों को इसका मालिकाना हक मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसमें वे लोग भी आवेदन कर सकते हैं, जिन्होंने साल 2002 में भाजपा सरकार में शपथपत्र देकर अपने कब्जों की जानकारी दी थी । उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कानून का मकसद अतिक्रमण के मामलों को नियमित करना नहीं है।