ज्वाली – शिवू ठाकुर
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि और देवनगरी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां कई देवी देवताओं के मंदिर है। हिमाचल प्रदेश की खास बात यह है कि पूरे प्रदेश के हर गांव में एक मंदिर जरूर है। हिमाचल प्रदेश में ऐसा कोई कार्यक्रम या उत्सव नहीं होता है, जो कि देवी देवताओं के बिना पूर्ण हो।
ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा की तहसील ज्वाली कस्बे से करीब पांच किलोमीटर दूरी पर पश्चिम छोर पर कुठेहड़ा के ऊंचे जंगल में स्थित मनसा देवी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां सुबह-शाम मंदिर में माता की आरती होती है और हर दिन दूरदराज क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का आगमन चला रहता है।
मंदिर में हर साल नवरात्र के दौरान नवमी के दिन भंडारे का आयोजन होता है, इसके साथ ही महाशिवरात्रि और ज्येष्ठ महीने की संक्रांति के अवसर पर भी भंडारे एवं जागरण का आयोजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माता मनसा यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मन की मुराद को पूरी करती है, इसलिए ही इसे मनसा देवी कहा जाता है।
मंदिर के पुजारी सहदेव जरियाल का कहना है कि उनसे पहले उनके पिता कृष्णदेव जरियाल मंदिर के पुजारी थे। मंदिर की स्थापना को लेकर कई दंतकथाएं हैं। किंवदंती है कि किसी जमाने में यह इलाका घने जंगल से घिरा हुआ था और अधिकांश लोग पैदल ही जंगल से होकर कोटला, त्रिलोकपुर, शाहपुर आदि जाने के लिए यहां से गुजरते थे। खासकर कोटला व त्रिलोकपुर जाने के लिए लोग इसी मार्ग का इस्तेमाल करते थे।
एक दिन त्रिलोकपुर गांव के लोग हरिद्वार से माता मनसा देवी की पिंडियां लेकर जा रहे थे, तो वे इस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गए और उन्होंने अपने कंधों पर उठाई हुई पिंडियों को एक जगह रख दिया। विश्राम करने के बाद जब उन्होंने पिंडियों को उठाना चाहा, तो वे पिंडियों को नहीं उठा पाए, इतने में उनके साथ जा रहे एक व्यक्ति को खेल आ गई और उसने कहा कि माता का आदेश है कि अब वह इस स्थान पर ही रहेंगी।
इस दौरान दूसरे साथी भक्त ने पूछा कि देवी मां हम तो आपको अपने गांव ले जाकर वहां मंदिर में स्थापित करना चाहते हैं। इसके जवाब में देवी ने कहा कि अब मेरा यही ठिकाना होगा और जो भी भक्त यहां आकर पूजा-अर्चना करेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। माता ने यह भी कहा कि त्रिलोकपुर गांव से पिंडियां लाकर यहां स्पर्श करके ले जाना, मैं वहां पर भी विराजमान रहूंगी।
कहा जाता है कि इसके बाद त्रिलोकपुर के श्रद्धालु ने माता के कहे अनुसार वहां से पिंडियां लाकर यहां स्पर्श करवाकर अपने गांव में मंदिर का निर्माण करवाया और हर वर्ष भंडारा या जागरण करने से पहले वे यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं।
इसके बाद वे त्रिलोकपुर में धार्मिक आयोजन करवाते हैं। पहले यहां पर माता की पिंडियां खुले स्थान पर रखी हुई थीं, इस दौरान दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले साधु व ऋषि यहां पर रुकते थे और माता की महिमा का गुणगान व पूजा-अर्चना करते थे। यह भी कहा जाता है कि पहले इस जंगल में लोग आने से कतराते थे, क्योंकि यहां पर जंगली जीवों का डर रहता था। लेकिन धीरे-धीरे यह भय खत्म हो गया और मंदिर में सुबह-शाम रौनक होने लगी।
माता के भक्तों ने पहले यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया और धीरे-धीरे यहां पर शिव मंदिर व कुटिया भी बनवाई। अब इस स्थान पर माता मनसा का भव्य मंदिर स्थापित किया गया है और लंगर के लिए पंडाल भी बनाया गया है। मंदिर में पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी बनाई गई है।
मुराद पूरी होने पर कई श्रद्धालु अपने घरों में जागरण आदि करवाने से पहले इस मंदिर से ज्योति लेकर जाते हैं और इसे अपने घर में जागरण स्थल पर महामाई की प्रतिमा के समक्ष स्थापित करते हैं। मंदिर के प्रांगण के एक छोर पर स्थापित एक कुटिया में धूणा दिन-रात जलता रहता है।
इस धूणे में चाय का प्रसाद बनाकर भी भक्तों को बांटा जाता है। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि यह धूणा 1992 से उनके पिता पुजारी कृष्णदेव जरियाल की ओर से शुरू किया गया था, जो आज तक चल रहा है। इसी धूणे से वे विभूति भी बनाकर देते थे।